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बिहार में बच्चियों से यौनशोषण के मामले का सच क्या बाहर आ पायेगा?

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संतोष कुमार 
मुजफ्फरपुर के बालिकागृह में यौन शोषण मसले पर आज जहां विपक्ष के तेवर हमलावर हैं वहीं सत्तापक्ष इसे बिहार की छवि खराब करने से जोडकर अपना बचाव कर रही है. लेकिन इसकी समग्र जांच के लिए क्या राजनीतिक साहस बिहार के राजनीतिक दायरे में है? उधर एक जिले के बालिका गृह में यौन शोषण के तार कई और जिलों से जुड़ते दिख रहे हैं. इस मामले को उठाने में शुरू से सक्रिय और पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार इस मामले की तह में जाने की कड़ी में स्त्रीकाल में सिलसिलेवार लिखेंगे: 

विधान परिषद के बाहर राबडी देवी के नेतृत्व में आवाज उठाता विपक्ष 

दिनेश कुमार शर्मा, ADCPU(Assistant Director Child Protection Unit)द्वारा महिला थाना मुजफ्फरपुर में मई, 2018 के आख़िरी सप्ताह में इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई, जिसका आधार बनी टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल सांयसेज (TISS),मुम्बई की सोशल ऑडिट रिपोर्ट. 26 मई को सब्मिट की गयी सोशल ऑडिट रिपोर्ट के पेज नम्बर 52 में उल्लिखित है कि" The girl children in Muzaffarpur run by 'Seva Snkalp Evam Vikash Samiti' was both find by us to running highly questionable manner along with grave instance of violation that was reported by the residents. Several girls reported about violence and being abused sexually. This is the very serious and need to be further investigation promptly. Immediate legal procedure must be followed to enquire into the charges and corrective measures be taken"इसी को आधार बनाकर प्राथमिकी 30/05/2018 को की गई जिसे 31/05/2018 को महिला थाना ने  केस नवम्बर 33/18 को u/s 120(B)/376/34 IPC & 4/6/8/10/12 POCSO Act के तहद मामला दर्ज हुआ।



एफआईआर दर्ज होने के बाद बच्चियों ने न केवलपुलिस पदाधिकारियों के सामने बल्कि धारा 164 में मजिस्ट्रेट के सामने भी अपनी आपबीती सुनाई जो रूह कांप जाने वाला है। अपनी आपबीती में बच्चियों बताया कि एक बच्ची ने जब जबरन यौन शोषण का विरोध किया तो उसे इतना मारा-पीटा गया कि उसकी वहीं, यानी बलिकागृह में ही मौत हो गई। उसके शव को उसी के अहाते में कहीं दफना दिया गया।  पॉक्सो कोर्ट ने डीएम को मजिस्ट्रेट की निगरानी में वीडियो रिकार्डिंग के साथ उस जगह की खुदाई के लिए आदेश दिया था। प्रतिनियुक्त दंडाधिकारी शीला रानी गुप्ता सहित अन्य सीनियर पुलिस ऑफिसर की निगरानी में 23/07/2018 को न्यूज चैनलों के कैमरे की नजरों के बीच खुदाई शुरू हुई। ख़ुदाई शुरू होने से पूर्व उन तीन बच्चियों को उस जगह को शिनाख़्त करने के लिए पटना से लाया गया जिन्होंने हफ्तों पहले इसके बारे में बताया था। सोमवार के सुबह से न्यूज चैनलों के ओवी वैन, कमरों के साथ-साथ आस-पास के लोगों का जमावड़ा होने लगा था।

जगह की निशानदेही के लिए पटना से लायीगयी बच्ची को सीधे उस परिसर में, जहां जेल में बंद बलिकागृह-संचालक ब्रजेश ठाकुर का आवास भी है, लाया गया। निशानदेही पर मिनी जेसीबी बॉब कट मशीन से खुदाई की गई। करीब चार फीट गहरी खुदाई के बाद लाश दफन किये जाने का साक्ष्य नही मिला। नीचे जायजा लेने पर एक सुरंग दिखा पर शव का कोई अवशेष नहीं मिला। मजिस्ट्रेट के आदेश पर दूसरी जगह भी खुदाई की गई। इसके लिए स्वान डॉग की भी मदद ली गई।



एसएसपी ने बलिकागृह का रजिस्टर देखने केबाद कहा कि यहां तीन अन्य किशोरियों  की पहले मौत हुई है? फिर यह सवाल अनुत्तरित है कि मरने के बाद शव का पोस्टमार्टम कराया गया या नही? समाज कल्याण विभाग ने इस पर क्या कार्यवाही की? मर चुकी किशोरियों के परिजनों का क्या कहना है? इस तमाम बिन्दुओं को लेकर जांच टीम गठित की गई है।

मालूम हो कि इस कांड में मुजफ्फरपुर बालिकागृहमें 29 किशोरियों, जिनमे 7 बच्चियां हैं, के बलात्कार की पुष्टि पीएमसीएच(पटना मेडिकल कालेज एवं हॉस्पिटल) के डॉक्टरों की टीम द्वारा हो चुकी है। बलिकागृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर एवं बलिकागृह के 7 अन्य कर्मियों के साथ बाल कल्याण समिति के सदस्य विकास कुमार एवं मुजफ्फरपुर के बाल संरक्षण पदाधिकारी रवि रौशन(कुल 10) की गिरफ्तारी हो चुकी है। बाल कल्याण समिति , के अध्यक्ष, दिलीप वर्मा, जिन्हें फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट का अधिकार है की गिरफ्तारी के लिए पुलिस लम्बे समय से कोशिश कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार 

इस बीच कई सवाल उठ रहे हैं. सवाल है कि क्याइस मामले की जांच का हस्र सृजन घोटाले की जांच जैसा ही हो जायेगा? विपक्ष की मांगों के बावजूद सरकार सीबीआई जांच से क्यों घबड़ा रही है?  सवाल शहर से भी है कि इन मासूम बच्चियों के लिए वह इतना उद्द्वेलित क्यों नहीं जितना कभी गोलू अपहरण कांड के लिए हुआ था? कहा यह भी जा रहा है कि ऐसे मामले राज्य के अन्य जिलों में भी हो सकते हैं. आज बिहार विधानपरिषद में प्रतिपक्ष की नेता राबड़ी देवी ने सीबीआई जांच की मांग उठायी, सवाल है कि क्या विपक्ष इसे बच्चियों को न्याय मिलने तक मुद्दा बना सकेगा?

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मंत्री के पति का उछला नाम तो हाई कोर्ट में सरेंडर बिहार सरकार: सीबीआई जांच का किया आदेश

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संतोष कुमार

मुजफ्फरपुर बालिका-गृह में बच्चियों से बलात्कार मामले में बिहार सरकार में सामाजिक कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम सामने आ जाने के बाद इस मामले में तह तक पहुँचने का एक रास्ता जहाँ खुलता है, वहीं एक भ्रम भी पैदा होता है कि मसला सुलझ गया. लेकिन राज्य के राजनीतिक संगठन और सामाजिक संगठन इस नये खुलासे को आख़िरी अंजाम नहीं मानते. इस भेद का असर आज पटना हाई कोर्ट में देखने को मिला.

पति चंद्रेश्वर वर्मा के साथ मंत्री मंजू वर्मा 


एक ओर मेरी जनहित याचिका पर सुनवाईके दौरान हमारी कोशिश थी कि इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से हो वहीं राज्य सरकार कोर्ट को यह कन्विंस करती रही कि चूकी इस मामले में चार्जशीट तैयार है इसलिए अब आगे की जांच का कोई औचित्य नहीं है. सरकार ने यहाँ तक कह डाला कि याचिका करता बिहार के ‘कुरूप चेहरे’ (अगली फेस) हैं. पलटकर कोर्ट ने पूछा कि यदि आपने तहकीकात पूरी कर ली है और चार्जशीट भी तैयार कर लिया है तो यह बताइये कि वहां से गायब चार लडकियां कहाँ हैं. सरकार के जवाब न दे पाने पर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता नहीं यह मामला राज्य का ‘कुरूप चेहरा’ है. कोर्ट का सख्त रुख देखते हुए इस मसले पर सरकार ने सीबीआई जांच की स्वीकृति जरूर दे दी है लेकिन हमारी कोशिश होगी कि जांच का दायरा पूरे बिहार के बालिका-संरक्षण गृहों तक विस्तारित हो. पटना उच्च न्यायालय में इसकी अगली सुनवाई 6 अगस्त को होने वाली है.
संस्था संचालक ब्रजेश ठाकुर, अबतक मुख्य आरोपी 


मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम आने के बादऔर इस मामले से सामाजिक कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का नाम जुड़ जाने के बाद दो असर होते हैं- एक अभी तक इस मामले में मुख्य किरदार और मुजफ्फरपुर बालिका संरक्ष्ण गृह के डायरेक्टर ब्रजेश ठाकुर और उसने जुड़े नेताओं से ध्यान हट कर सारा ध्यान मंजू वर्मा तक केन्द्रित हो जाता है, दूसरा ऐसे मामले में काम कर रही पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति को एक और तर्क मिल जाता है-महिलाओं का दुश्मन महिलायें. जबकि सच्चाई यह है कि इस मामले की और राज्य भर के सारे बालिका-गृहों की जांच हो तो इसमें और बड़े नाम सामने आ सकते हैं, कई नाम आ सकते हैं-हमें कोशिश करनी होगी कि सरकार इसकी आंच अपने तक आने से रोकने के प्रयास में बच्चियों को मिलने वाले न्याय को ही कुंद न कर दे.

मंत्री का इनकार

हालांकि मंत्री मंजू वर्मा ने कहा कि वेएक बार पति के साथ वहां गईं थीं. लेकिन, उसके बाद पति वहां कभी नहीं गए. मेरे पति का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है. मंत्री ने कहा कि यह उनकी और पति की छवि को खराब करने तथा परिवार को बदनाम करने की सोची-समझी राजनीतिक साजिश है. प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर गंदी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके मुजफ्फरपुर जाने के बाद आरोपित रवि रौशन की पत्‍नी से बयान दिलवाया गया है. पहले तेजस्वी यादव अपने गिरबान में झांकें.

इस मामले में देश भर में आक्रोश है.संसद में सांसद पप्पू यादव और रंजीता रंजन ने मसला उठाया और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जांच का आश्वासन दिया तो भी आजतक बिहार सरकार का रवैया इससे बचने का ही रहा, जब तक कोर्ट सख्त नहीं हुआ.



दिल्ली में बिहार भवन पर प्रदर्शन

इस बीच 30 जुलाई को राइड फॉर जेंडर फ्रीडम, नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इन्डियन वीमेन (एनएफआईडवल्यू) और स्त्रीकाल सहित कई संगठनों ने इस मामले में समग्र जांच और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग करते हुए बिहार भवन पर एक प्रदर्शन का आह्वान किया है. मुजफ्फरपुर के ही रहने वाले राकेश पिछले चार सालों से देश भर में ‘जेंडर-फ्रीडम’ के लिए सायकिल यात्रा कर रहे हैं. उनकी पहल पर इस प्रदर्शन का आह्वान किया गया है.

क्या है पूरा मामला: जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें : बिहार में बच्चियों के यौनशोषण के मामले का सच क्या बाहर आ पायेगा? 

संतोष कुमार सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उन्होंने इस मामले में जनहित याचिका दायर की है 

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अश्लील बातचीत के आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ शिकायत लेने से पुलिस ने की थी आनाकनी

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स्त्रीकाल डेस्क
गया कॉलेज गया, मगध विश्वविद्यालय, बिहार केअंग्रेजी विभाग के एक प्रोफेसर, वकार अहमद ने पीजी में पढ़ने वाली एक छात्रा को प्रोजेक्ट में मदद करने के बहाने फोन किया और उससे अश्लील बातें कीं. और उसे अच्छे नंबर से पास कराने के नाम पर यौन संबंध बनाने के लिए कहा.



परेशान छात्रा ने  प्रोफेसर की शिकायत पुलिससे की और उससे बातचीत का एक ऑडियो पुलिस तक पहुंचा दिया. इस ऑडियो क्लिप में प्रोफेसर ने कबूल किया है कि वे पहले भी लड़कियों की ऐसी मदद कर चुके हैं. जैसे ही यह मामला सामने आया छात्रों ने कॉलेज परिसर में जमकर हंगामा किया. प्रोफेसर ने छात्रा को फर्स्ट क्लास मार्क्स के लिए घर पर आकर उनकी तमन्ना पूरी करने के लिए कहा.

छात्रा और प्रोफेसर की बातचीत का ऑडियोअब वायरल हो चुका है, जिसमें प्रोफेसर को उससे अच्छा नंबर देने की एवज में लिए अश्लील बातें करते हुए सुना जा सकता है. छात्रा ने पुलिस को बताया कि अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर वकार अहमद ने प्रोजेक्ट में मदद करने के नाम पर उससे उसका मोबाइल नंबर लिया था. वीडियो में छात्रा का बयान:




छात्रा की  धमकी भी की अनसुनी 

जब प्रोफेसर वकार छात्रा से अश्लील बातें कर रहे थे तो उसने प्रोफेसर को फोन पर ही बताया कि आपकी बातचीत फोन में रिकॉर्ड कर रही हूं. इसकी शिकायत थाने में करूंगी. छात्रा ने बताया कि प्रोफेसर ने उसकी लाइफ बर्बाद करने की भी धमकी दी. हालांकि इस धमकी के बाद भी प्रोफेसर को फर्क नहीं पड़ा. छात्रा के अनुसार उसने ने एक बार नहीं कई दफे फोन किया.24 जुलाई को पहला फोन 1.53 दोपहर में किया था. फिर 24 जुलाई की ही शाम को 6.05 बजे फिर फोन किया. 25 जुलाई को दोपहर 1.39 बजे फिर फोन कर प्रोफेसर ने फर्स्ट क्लास मार्क्स के लिए छात्रा से घर आने की बात कही. तब छात्रा ने पूछा कि घर आकर वह क्या करेगी, तो प्रोफेसर ने कहा, 'हमारी इच्छा पूरी करोगी, तो पैरवी कर नंबर बढ़वा देंगे'.

पुलिस ने शिकायत लेने में की आनाकानी 

अपने दोस्त की सलाह पर छात्रा ने पूरी बातचीत रिकार्ड कर ली थी,  जिसके बाद मामला दर्ज कराने जब वह रामपुर थाना पहुँची तो पुलिस ने थाने में मामला दर्ज कराने को लेकर आनाकानी की. थाने में छात्रा को डराने की कोशिश की गई. थाने में पुलिसकर्मी ने उसे कहा कि केस करोगी तो गवाही के लिए बार बार आना पड़ेगा, बोलो तो प्रोफेसर को बुलवाकर मांफी मंगवा देते हैं. इसके पहले भी एक छात्रा की शिकायत पर प्रोफेसर के खिलाफ कॉलेज कार्रवाई कर चुका है, वह निलम्बित हो चुका है.  इस मामले की जांच पुलिस क्र रही है. प्रोफेसर से बात सम्भव नहीं हो पायी.

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नीतीश सरकार के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन 30 जुलाई को

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स्त्रीकाल डेस्क 

मुजफ्फरपुर बालिका-संरक्षण गृह में बच्चियों से बलात्कार के मामले में यद्यपि राज्यसरकार ने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया है, लेकिन सरकार के खिलाफ जनाक्रोश और व्यापक हुआ है.  कहा जाता है कि 25 जुलाई को न्यायालय में जनहित याचिका की सुनवाई और विपक्ष के व्यापक दवाब में राज्यसरकार ने सुनवाई के पहले ही सीबीआई जांच की घोषणा कर दी थी. लेकिन स्त्रीकाल में याचिकाकर्ता की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट में सरकार का रुख याचिकाकर्ताओं के खिलाफ घृणा वाला था और घटना पर वह पर्देदारी के पक्ष में दिख रही थी.



राज्यसरकार को कारगर कार्रवाई में भी दो महीने लग गये, जबकि मुख्य आरोपी के बड़े कनेक्शन की कहानियाँ मीडिया और सोशल मीडिया में खूब उछलीं. यहाँ तक कि मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर को पुलिस रिमांड पर लेने में भी पुलिस सफल नहीं हुई. इस बीच इस मामले में मंत्री-कनेक्शन भी सामने आया. यह सब देखते हुए मामले की व्यापक जांच, जांच का दायरा राज्यभर में फैलाने की मांग और राज्य के मुखिया का स्टेट संरक्षित इस शोषण की जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफे की मांग तेज हो रही है.

'राइड फ़ॉर जेण्डर फ्रीडम'की कॉल पर राइड फ़ॉर जेण्डर फ्रीडम, एनएफआईडवल्यू और स्त्रीकाल द्वारा बिहार भवन, दिल्ली पर 30 जुलाई को 2 बजे से प्रदर्शन की घोषणा के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन की तैयारी की खबर है. इस मुहीम से पहले वेब पोर्टल टेढ़ी उंगली जुड़ा और देखते देखते देश भर से लोग जुड़ने लगे. अभी तक कई शहरों में प्रदर्शन की खबर है.

पढ़ें : बिहार में बच्चियों के यौनशोषण के मामले का सच क्या बाहर आ पायेगा?

'राइड फॉर जेंडर फ्रीडम'के तहत देश भर  में चार साल से सायकलिंग कर रहे राकेश ने कहा कि 'मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह में बच्चियों से बर्बरता स्टेट संरक्षित यौन हिंसा का एक पैटर्न है, जिसके पूरे राज्य में फैले होने की संभावना है. इस मामले में पूरे राज्य की बालिका-आश्रय गृहों की जांच और इसकी जिम्मेवारी लेते हुए राज्य के मुखिया नीतीश कुमार के इस्तीफे की हमारी मांग है.'उन्होंने बताया कि 'अब प्रदर्शन का स्वरूप व्यापक हो गया है. 30 जुलाई को10 बजे से 5 बजे तक देश भर में एक साथ कई शहरों में होंगे प्रदर्शन।'

पढ़ें  मंत्री के पति का उछला नाम तो हाई कोर्ट में सरेंडर बिहार सरकार: सीबीआई जांच का किया आदेश

प्रदर्शन को समूह को-आर्डीनेट कर रही श्वेता यादव ने सोशल मीडिया में पोस्ट लिखकर सूचित किया है कि तमाम शहरों के उन साथियों का नंबर शेयर कर रही हूँ जो इन शहरों में प्रोटेस्ट को कोआर्डिनेट करेंगे.. इन साथियों के अलावा भी आप अपने-अपने शहरों से अपने हिसाब से जुड़ने के लिए स्वतंत्र हैं.. बैनर आपका पोस्टर आपका बस दुःख और लड़ाई साझी ... एक बात साफ़ कर दूँ इसे किसी एक का प्रयास नहीं बल्कि साझा प्रयास समझा जाए.. क्योंकि जब दुःख साझें हो तो उससे लड़ाई भी साझी ही लड़नी होगी ...

समूह को-आर्डीनेटर-
श्वेता यादव, सुशील मानव

8587928590, 6393491351

दिल्ली-
एनी राजा- 9868181992, राकेश- 9811972872
संजीव चन्दन- 8130284314,

बनारस-
स्वाति सिंह - 8423571891, 8808365427
बिहार-
मकेश्वर रावत - 9932534537
आजमगढ़
पूनम तिवारी, कमला सिंह -9455356786
गोरखपुर -
धीरेन्द्र प्रताप -8960043920
गोधरा
नरेंद्र परमार -9978368373
चेन्नई -
भारती कन्नान -9940220091
वर्धा-
नरेश गौतम-8007840158,
नूतन मालवी -9325222427
देहरादून-
स्वागता -7409426643
इलाहबाद-
सुनील मानव -6393491351
जौनपुर-
श्वेता यादव -8587928590
हिमांचल प्रदेश-
मिनहास -7018520132
जयपुर-
संदीप मील-9116038790
छत्तीसगढ़-
संदीप यादव -9560554552

श्वेता के अनुसार और भी लोग इस मुहीम से जुड़ते जायेंगे. 

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बिहार के 14 संस्थानों में बच्चों का यौन शोषण: रिपोर्ट

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रोहिण कुमार 


कुछ महीने पहले बिहार सरकार की पहल पर टाटा इंस्टिट्युट ऑफ सोशल साइंसेस (टीआईएसएस या टिस) ने बिहार के बालगृहों का एक सोशल ऑडिट किया था. टिस की ‘कोशिश’ यूनिट ने बिहार के 38 जिलों में घूमकर करीब 110 बालगृहों की ऑडिट रिपोर्ट 27 अप्रैल, 2018 को समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी. ‘कोशिश’ मुख्यत: शहरी गरीबी के ऊपर काम करती है. टीम में कुल आठ सदस्य थे, पांच पुरुष और तीन महिलाएं.



बिहार समाज कल्याण विभाग के मुख्य सचिव अतुल प्रसाद के मुताबिक टीआईएसएस की रिपोर्ट को तीन श्रेणियों में बांटा गया- 'बेहतर', 'प्रशासनिक लापरवाही'और 'आपराधिक लापरवाही'. मुजफ्फरपुर का 'सेवा संकल्प एवं विकास समिति'आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में पाया गया था.

‘कोशिश’ की यह रिपोर्ट 26 मई को समाज कल्याण विभाग ने अपने सभी क्षेत्रीय पदाधिकारियों को बुलाकर उनसे साझा की. विभाग ने अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई का आदेश दिया. इसके आधार पर पुलिस ने पहली प्राथमिकी 31 मई को मुजफ्फरपुर के 'सेवा संकल्प एवं विकास समिति'पर किशोर न्याय अधिनियम और पॉक्सो ऐक्ट के तहत दर्ज किया.

पुलिस ने 3 जून को इस संस्था से जुड़े ब्रजेश ठाकुर, किरण कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, इंदु कुमारी, चंदा देवी, नेहा कुमारी और हेमा मसीह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने इस बालगृह में रखी गई 44 में से 42 लड़कियों को पटना, मधुबनी और मोकामा के विभिन्न बालिका गृहों में स्थानांतरित कर दिया. कोशिश यूनिट के सदस्यों के अनुसार, जून में ही पटना पीएमसीएच ने मेडिकल परीक्षण में पाया था कि 42 में से 29 लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ था.

पढ़ें: नीतीश सरकार के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन 30 जुलाई को

सेवा संकल्प एवं विकास समिति मेंरहने वाली कुछ लड़कियों ने पुलिस को दिए गए अपने बयान में बताया कि एक लड़की को वहां के कर्मचारियों ने बात न मानने पर पीट-पीटकर मार डाला था. बाद में उसे बालिका गृह परिसर में ही दफना दिया गया. सोमवार 23 जुलाई को मुजफ्फरपुर पुलिस बालिका गृह की खुदाई करने पहुंची. तब मामले ने तूल पकड़ लिया. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह मामला सदन में उठाया. इसके बाद  देश भर के मीडिया की नज़रें मुजफ्फरपुर की ओर मुड़ गईं. हालांकि फिलहाल मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री ने कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बिहार सरकार ने गुरुवार को इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश जारी किए हैं.

लेकिन यह मामला सिर्फ मुजफ्फरपुर तकसीमित नहीं है. टाटा इंस्टिट्युट ऑफ सोशल साइंसेस की उसी रिपोर्ट में बिहार के 14 और शेल्टर होम्स में उत्पीड़न की बात उजागर हुई है. अफसोस इसपर न मीडिया की नज़र गई न ही प्रशासन ने तत्परता से अबतक कार्रवाई की है.
मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम की खुदाई 

नवभारत टाइम्स की ख़बर के मुताबिक, मुजफ्फरपुर बालिका संरक्षण गृह के अधिकारी रवि कुमार रोशन की पत्नी शीबा कुमारी सिंह ने समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति पर संदेह जताया है. शीबा का आरोप है कि मंजू वर्मा के पति चंद्रेश्वर वर्मा अक्सर बालिका गृह आते रहते थे. जब वे आते थे तो बालिका संरक्षण गृह के सभी अधिकारियों को ऊपर की मंजिल खाली करवा कर नीचे भेज दिया जाता था.

खैर मुजफ्फरपुर की घटना तो अब शासन प्रशासनकी नज़र में है और इस पर कार्रवाई भी होती दिख रही है, लेकिन टिस की जिस रिपोर्ट पर यह सारी जानकारी सामने आई थी उसमें 14 अन्य बालगृहों के ऊपर भी उंगली उठाई गई थी. टिस के शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट का यह हिस्सा न्यूज़लॉन्ड्री (यह खबर वहीं से साभार) के साथ साझा किया है. यहां हम उन सभी संस्थाओं का नाम और उस पर दी गई संस्तुतियां दे रहे हैं. बिहार समाज कल्याण विभाग के निदेशक राज कुमार से जब पूछा ने जानना चाहा कि बाकी 14 संस्थानों पर कार्रवाई का क्या स्टेटस है तो वो एक दूसरा ही दर्द बयान करने लगे. उनका गुस्सा मीडिया पर था. उनका कहना था, “बिहार सरकार की तारीफ की जानी चाहिए जिसने स्वत: ही टिस से सोशल ऑडिट करवाया. उसके बाद ही यह सारी जानकारी सामने आई. पर मीडिया यह बात किसी को नहीं बता रहा है.”


1. सेवा संकल्प एवं विकास समिति, मुजफ्फरपुर (बालिका गृह)

यह एकमात्र बालिका गृह है जहां ऑडिटरिपोर्ट के बाद प्रशासन हरकत में आया है. रिपोर्ट में बताया गया कि सेवा संकल्प एवं विकास समिति में बच्चियों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न और हिंसा की शिकायतें हैं. लड़कियों की किसी भी खुली जगह में आवाजाही पर मनाही थी और वे सिर्फ रात के खाने के लिए कमरे से बाहर निकाली जाती थीं.

2. निर्देश, मोतीहारी (बाल गृह)

'निर्देश'मोतीहारी स्थित बाल गृह है. रिपोर्ट के अनुसार, यहां सभी बच्चों के साथ मारपीट होती है. मारपीट का खास पैटर्न है, अगर एक भी बच्चा शरारत करता है तो सभी की पिटाई होती है. बच्चों के मुताबिक, बदमाशी करना, भागने की कोशिश करना, आपस में लड़ाई करने पर बाल गृह का कर्मचारी सभी बच्चों की पिटाई करता है.  अपनी रिपोर्ट में कोशिश कहता है कि बच्चों के साथ यौन शोषण और हिंसा हो रही है, जिस पर अविलंब कार्रवाई और विस्तृत जांच की ज़रूरत है.

3. रुपम प्रगति समाज समिति, भागलपुर (बाल गृह)

भागलपुर के इस बालगृह एनजीओ के सचिव पर रिपोर्ट में गंभीर सवाल उठाए गए. संस्थान का एक कर्मचारी जो बच्चों के समर्थन में था, उसे सचिव द्वारा परेशान किया जाता था. ऑडिट टीम ने संस्थान में लगी शिकायत पेटी की पड़ताल की और उसमें आरटीओ रेखा के खिलाफ कई शिकायत पायी. बच्चों ने हिंसा की कई वारदातों का जिक्र लिखित शिकायतों में किया था. बताया गया कि रेखा बच्चों के साथ शारीरिक हिंसा और गाली-गलौज करती है. संस्थान ऑडिट टीम को शिकायत पेटी की चाभी नहीं देना चाह रही थी. उन्होंने चाभी खो जाने का बहाना बनाया.

4. पनाह, मुंगेर (बाल गृह)

मुंगेर के पनाह बाल गृह की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है.यह एक बैरक जैसे ढांचे के भीतर चलता है. पनाह का निरीक्षक बालगृह के परिसर में ही रहता है. वह बच्चों से सफाई और खाना बनवाने का काम करवाता है. बच्चों के मना करने पर वह बच्चों को मारता-पीटता है. एक बच्चा जो निरीक्षक के लिए खाना बनाता है, उसने अपने गाल पर लगभग 3 इंच लंबा निशान दिखाया. यह निशान कथित तौर पर निरीक्षक की पिटाई का था. चोट के कारण उसे अब बोलने और सुनने में समस्या आती है.

पढ़ें:मंत्री के पति का उछला नाम तो हाई कोर्ट में सरेंडर बिहार सरकार: सीबीआई जांच का किया आदेश

एक दूसरा बच्चा, जिसकी उम्र करीब 7 साल है, वह भी सुनने की समस्या से ग्रस्त है. बच्चे ने ऑडिट टीम से निरीक्षक की शिकायत में बताया कि निरक्षक ने उसके सुनने की मशीन छीन ली है. ऑडिट टीम ने उसकी मशीन वापस करवाई.



5. दाउदनगर ऑर्गनाइजेशन फॉर रुरल डेवलपमेंट (डीओआरडी), गया (बालगृह)

यह संस्थान किसी कैदखाने की तरह और शोषणकारीमाहौल में संचालित हो रहा है. लड़कों ने ऑडिट टीम को बताया कि महिला कर्मचारी लड़कों से पेपर पर बेहूदे संदेश लिखवाती हैं और दूसरी महिला कर्मचारियों को देने को विवश करती हैं. बच्चों ने पिटाई की बात स्वीकारी है. ऑडिट टीम ने शक जाहिर किया है, यहां कर्मचारी बच्चों का अन्य कामों में इस्तेमाल करते हैं.

6. नारी गुंजन- पटना, आरवीईएसके- मधुबनी, ज्ञान भारती- कैमूर (ए़डॉप्शन एजेंसी)

ये तीनों ही संस्थान दयनीय स्थिति में संचालित हो रहे हैं. नवजात शिशुओं और बच्चों के अनुपात में केयरटेकर्स की संख्या बेहद कम है. तीनों ही जगह अस्वच्छ थे. ऑडिट टीम ने बच्चों को भूखा और नाखुश पाया. कर्मचारियों ने शिकायत किया कि उन्हें लंबे वक्त से तनख्वाह नहीं मिली है.


7. ऑबजर्वेशन होम, अररिया 

यह सीधे तौर पर सरकार द्वारा संचालित बाल गृह है. लड़कों की शिकायत है कि यहां बिहार पुलिस का एक गार्ड लड़कों के साथ 'गंभीर'मारपीट करता है. एक बच्चे ने ऑडिट टीम को छाती पर चोट का निशान दिखाया. देखने से ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी छाती को जोर से दबाया गया था, जिसकी वजह से छाती में  सूजन भी थी.

गौरतलब हो कि अररिया स्थित इस ऑब्जर्वेशन होम में हिंसा की जानकारी निरीक्षक को थी. चूंकि गार्ड की नियुक्ति बिहार पुलिस ने की थी, निरीक्षक ने कार्रवाई की बात पर बेचारगी जाहिर किया. बच्चों के मन में गार्ड के प्रति गुस्सा था. एक बच्चे ने ऑडिट टीम से कहा, "इस जगह का नाम सुधार गृह से बदलकर बिगाड़ गृह कर देना चाहिए."

8. इंस्टिट्युट ऑफ खादी एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलपमेंट (आइकेआरडी), पटना (महिला अल्पावास गृह)

लड़कियों ने यहां हिंसा की शिकायत की है. कई खोई हुई लड़कियों को यहां रखा गया हैं. कुछ लड़कियों के पास अपने घरवालों के नंबर थे लेकिन संस्था के कर्मचारी उन्हें मां-बाप से संपर्क करने नहीं दे रहे. पिछले साल एक लड़की ने रोजमर्रा की हिंसा से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी. एक अन्य उत्पीड़न की शिकार लड़की अपना मानसिक संतुलन खो चुकी है. लड़कियों के पास कपड़ों और दवाइयों की कमी है. समूचे तौर पर उनके रहने की स्थिति दयनीय है.

9. सखी, मोतीहारी, महिला अल्पावास गृह

यहां मानसिक बीमारी से पीड़ित लड़कियों व महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा की बात सामने आई है. हिंसा के सभी आरोप काउन्सलर पर हैं. लड़कियों ने सेनेटरी पैड न मिलने की शिकायत की है. यहां भी रहने का माहौल ठीक नहीं है और तुरंत कार्रवाई की जरूरत है.

10. नोवेल्टी वेल्फेयर सोसायटी, महिला अल्पावास गृह, मुंगेर

संस्था ने बिल्डिंग का एक हिस्सा किसी परिवार को रेंट पर दे दिया है और उससे 10,000 रुपये प्रति माह का किराया वसूल रहे हैं. लड़कियों ने कुछ ज्यादा नहीं  बताया, सिर्फ इतना कि बाथरूम में अंदर की कुंडी नहीं है. ऑडिट टीम ने संस्थान का एक बंद कमरा खुलवाया और उसमें से एक मानसिक रूप से बीमार महिला को बाहर निकाला. वह महिला ऑडिट टीम की सदस्य को पकड़कर रोने लगी.

11. महिला चेतना विकास मंडल, महिला अल्पावास गृह, मधेपुरा

ऑडिट टीम ने महिला चेतना विकास मंडल को निर्दयी पाया. एक लड़की ने शिकायत में कहा, उसे सड़क से जबरदस्ती उठाकर लाया गया है और उसे परिवार से संपर्क करने नहीं दिया जा रहा है. ऑडिट टीम लड़की के केस के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा करना चाह रही थी लेकिन उस वक्त संस्थान में रसोइया के अलावा और कोई नहीं था. रसोइया बहुत डरा हुआ था. लड़कियों के पास सोने की चटाई और दरी नहीं थी. वे जमीन पर सोती हैं.

12. ग्राम स्वराज सेवा संस्थान, महिला अल्पावास गृह, कैमूर

लड़कियों ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की है.  सुरक्षा गार्ड यौन उत्पीड़न शामिल रहा है. लड़कियों और महिलाओं ने कहा, गार्ड भद्दी टिप्पणियां करता है और उसका लड़कियों के प्रति व्यवहार भी अनुचित है. चूंकि गार्ड ही संस्था के सारे कामकाज की देखरेख करता है, वह लड़कियों पर शासन करता है.

13. सेवा कुटीर, मुजफ्फरपुर 

मुजफ्फरपुर का यह सेवा कुटीर ओम साईं  फाउंडेशन द्वारा संचालित होता है. लड़कियों ने गाली-गलौज और हिंसा की शिकायतें की है. इन लड़कियों को काम का हवाला देकर यहां लाया गया था. ऑडिट टीम को संस्था से जुड़े दस्तावेज नहीं मिले क्योंकि संस्था के कर्मचारी ने अलमारी की चाभी नहीं होने की बात कही. अलमारी की चाभी दूसरे कर्मचारी के पास थी जो ऑडिट के दिन छुट्टी पर था.
लोकसभा में इस मसले पर बयान देते गृहमंत्री राजनाथ सिंह 


14. सेवा कुटीर, गया

मेटा बुद्धा ट्रस्ट, गया स्थित सेवा कुटीर को संचालित करती है. यह वृद्धाश्रम है. ऑडिट टीम ने सेवा कुटीर के लोगों को बहुत दुबला पतला पाया.  लोगों से बातचीत करते समय ऑडिट टीम ने संस्थान सदस्यों को इशारे करते देखा. बहुत ही शासकीय तरीके से संस्थान चलाया जा रहा था. यहां मानसिक रूप से बीमार लोगों की संख्या काफी ज्यादा थी.

स्थानीय अख़बार प्रभात खबर के मुताबिक दिसंबर 2015 में सुजाता बाईपास के निवासियों ने सेवा कुटीर के संचालकों के खिलाफ शिकायत की थी. गांववालों का कहना था कि सेवा कुटीर के सदस्य जबरन भिखारियों को पकड़ लाते हैं और जबरदस्ती उनका इलाज करवाया जाता है.

15. कौशल कुटीर, पटना

यह संस्था डॉन बॉस्को टेक सोसायटी द्वारा संचालित की जाती है. यहां महिलाओं और पुरुषों दोनों के साथ गाली-गलौज की जाती है. बहुत सख्ती के साथ महिलाओं और पुरुषों को अलग रखा जाता है. वे क्लास एक साथ अटेंड करते हैं लेकिन आपस में बातचीत करने की मनाही होती है. उन्हें खुले जगह में भी जाने नहीं दिया जाता.

पढ़ें : बिहार में बच्चियों के यौनशोषण के मामले का सच क्या बाहर आ पायेगा?

बेसुध है प्रशासन

26 मई, 2018 को ही समाज कल्याण विभाग ने अपने अधिकारियों को रिपोर्ट में  दोषी पाए गए सभी बालगृहों पर तत्परता से कार्रवाई का निर्देश दिया था. मुजफ्फरपुर के सेवा संकल्प एवं विकास समिति पर कार्रवाई की खबरें सुर्खियों में है लेकिन बाकी जगहों पर क्या हो रहा है, इसका जायजा लेने की कोशिश न्यूज़लॉन्ड्री ने की.

टीआईएसएस की रिपोर्ट में पटना के नारी गुंजन और इंस्टिट्युट ऑफ खादी एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट गंभीर गड़बड़ी के आरोपी पाए गए हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पटना के जिलाधिकारी से कार्रवाई के संबंध में पूछा, जिलाधिकारी ने मामले पर अनभिज्ञता जाहिर की. उन्हें पता ही नहीं था टीआईएसएस की रिपोर्ट में पटना के दो एनजीओ का भी नाम है. उन्होंने टालमटोल वाले अंदाज में कहा, "अबतक यह मामला हमारे संज्ञान में नहीं आया है. हमें आपसे इसकी जानकारी मिल रही है. इस संबंध में अधिकारियों को जानकारी दी जाएगी."

मुंगेर के एसपी गौरव मंगला ने बताया कि नॉवेल्टी वेलफेयर सोसायटी पर एफआईआर दर्ज हुई है. यह एफआईआर तीन दिन पहले यानी सोमवार को दर्ज की गई है. एसपी कहते हैं, "अभी जांच चल रही है. किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है."

गया, अररिया और मोतीहारी के जिलाधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका है. उनसे  हमने केसों के संबंध में कुछ सवाल भेजे हैं, उनके जबाव आने पर इस स्टोरी को अपडेट करेंगे.

बाकी जिलों में कार्रवाई की क्या गति है? इसके जबाव में बिहार समाज कल्याण विभाग के निदेशक राज कुमार कहते हैं, “जहां से भी गंभीर शिकायतें मिलीं थी, वहां समाज कल्याण विभाग की ओर से कार्रवाई की गई है.” टीआईएसएस की रिपोर्ट में 15 संस्थानों में गंभीर गड़बड़ियों की बात है लेकिन निदेशक इन्हें गंभीर शिकायतें नहीं मानते.

 टिस की रिपोर्ट के बाद सरकार को कार्रवाई मेंदेरी क्यों लगी? इस पर राज कुमार पूरे घटनाक्रम का अलग खाका पेश करते हैं. वह कहते हैं, “27 अप्रैल को टीआईएसएस ने रिपोर्ट का ड्राफ्ट विभाग को सुपुर्द किया. कोशिश टीम के सदस्यों ने विभाग से रिपोर्ट के सिलसिले में बैठक करने की गुजारिश की. 5 मई और 7 मई को विभाग के साथ बैठक हुई. 9 मई को अंतिम रिपोर्ट टीआईआईएस ने सौंपी. इसके बाद 26 मई को क्षेत्रीय पदाधिकारियों के साथ विभागीय बैठक हुई.”

राज कुमार मीडिया से खफा दिखे. उनके अनुसारबिहार सरकार की तारीफ की जानी चाहिए जिसने स्वत: सोशल ऑडिट टीआईएसएस से करवाया. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे जानना चाहा कि विभाग ने इसके पहले अंतिम बार कब ऑडिट करवाया था? क्या सरकार बालगृहों को अनुदान राशि बिना जांच के देती है? राज कुमार इस सवाल का जवाब टाल गए. उन्होंने फोन रखते हुए उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि विभाग सोशल ऑडिट को नियमित करने पर विचार कर रहा है.

बालगृहों की देखरेख की जिम्मेवारी ट्रांसजेंडर्स के हाथ

बालिका गृहों और महिला अल्पावास गृहों के संबंध में टिस की रिपोर्ट के बाद बिहार समाज कल्याण विभाग ने ट्रांसजेंडर्स  को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है. समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को इंडियन एक्सप्रेस को दिए बयान के अनुसार ट्रांसजेंडर्स को सुरक्षा की जिम्मेदारी देने से उत्पीड़न के मामलों में कमी आएगी. ट्रांसजेंडर्स को रोजगार मिलेगा और यह क़दम सामाजिक समरसता कायम करने में भी मददगार साबित होगा.

टिस और कोशिश टीम के सदस्य विभाग के इस कदम से सहमति नहीं रखते. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में टीम के एक सदस्य, जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते, कहते हैं, “सरकार को हमने यह सलाह कभी नहीं दी. जो लोग मानव तस्करी के बारे में समझ रखते हैं, उन्हें मालूम हैं ट्रांसजेंडर्स के ऊपर किस तरह के खतरे होते हैं.”

कोशिश यूनिट के सदस्य मुजफ्फरपुर की कार्रवाई पर संतुष्टि जताते हैं. वे चाहते हैं कि सरकारें सोशल ऑडिट को नियमित बनाए. बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों को महिलाओं बताने दें कि बालगृहों के भीतर क्या स्थितियां हैं. स्थानीय मीडिया की रिपोर्टिंग पर कोशिश यूनिट मीडिया के रुख से नाखुश है. उनका मानना है कि यह मामला और पहले प्रमुखता से उठाना जाना चाहिए था.

कई बालगृहों पर कार्रवाई न होने का एक संभावित कारण है कि इन बालगृहों में लड़कों के यौन उत्पीड़न की सूचना है. वर्तमान कानून के तहत लड़कों के साथ रेप पर कार्रवाई का पर्याप्त कानून नहीं है.

बहरहाल यह कैसी स्थिति है जहां ऑडिट में पंद्रह दागी संस्थाओं के नाम उजागर होने के बाद पदाधिकारियों की बैठक होती है, त्वरित कार्रवाई की बात कही जाती है और अब दो महीने बाद भी बाकी 14 संस्थानों में उचित कार्रवाई नहीं हो सकी है. प्रशासन, मीडिया और राजनीति लोगों की उम्मीदें ध्वस्त करने की औज़ार बन गई हैं? या बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाएं हमारे लिए सामान्य हो चुकी हैं.

खबर न्यूज लौंड्रीसे साभार

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बच्चों के यौन उत्पीड़न मामले को दबाने, साक्ष्यों को नष्ट करने की बहुत कोशिश हुई: एडवोकेट अलका वर्मा

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मुजफ्फरपुर बिहार के शेल्टर होम में बच्चियों के साथ हुए अमानवीय, बर्बरतापूर्ण यौन-शोषण की घटना और केस से जुड़े सामाजिक, न्यायिक और राजनीतिक पहलुओं पर खुलकर अपनी बात रखी है पटना हाई कोर्ट की वकील व न्यायिक कार्यकर्ता (ज्यूडिशियल एक्टीविस्ट) अलका वर्मा ने. इसकी सीबीआई जांच और जांच का दायरा बढ़ाने की मांग के साथ उन्होंने पीआईएल भी की है. उनसे स्त्रीकाल के लिए  बातचीत की स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता सुशील मानव ने.


अलका वर्मा (बायें से पहली) अपने साथी वकीलों के साथ 


सबसे पहले तो हमें अपना कुछ परिचय दीजिये कि आप करती क्या हैं और आपके संगठन का क्या नाम है और ये किस तरह का काम करता है।
मेरी कोई संस्था नहीं है। मैं एक एडवोकेट हूँ पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करती हूँ समाजिक सरोकार से जुड़े जो मुद्दे होते हैं उन्हें उठाती रहती हूँ। मैं किसी संस्था से ऐसे तो जुड़ी हुई नहीं हूँ लेकिन जो संस्थाएं सामाजिक सराकारों से जुड़ी हुई हैं उनके लिए मैं लीगल एडवाइजर के तौर पर सेवा देती रहती हूँ।

बतौर लीगल एडवाइजर आप कौन-कौन सी संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं।
अनऑर्गेनाइज्ड बिहार डोमेस्टिक वर्कर्स वेलफेयर, एनसीबीएचआर, ऑल इंडिया दलित मुस्लिम युवा मोर्चा आदि । आई एम ओपेन फॉर ऑल, किसी को भी अपने ऑर्गेनाइजेशन के लिए मेरी कानूनी सलाह चाहिए तो मैं उन लोगो को देती हूँ।जैसे कि बिहार डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए बिहार अनआर्गेनाज्ड वर्कर्स सोशल सिक्योरिटी एक्ट 2008 को राज्य में लागू करवाया,  जिसे सेंटर ने इंप्लीमेंट किया था, लेकिन स्टेट ने इंप्लीमेंट नहीं किया था. मैंने पीआईएल फाइल करके उसको इंप्लीमेंट करवाया, बिहार में उसके बोर्ड एंड रूल बनवाये। मैंने एनसीबीएचआर  आदि संस्था, बेसिकली मुद्दों के  समर्पित संस्थाओं   के साथ रह कर 'प्रॉपर इंप्लीमेंटेशन ऑफ एक्ट'के लिए काम किया। पीआईएल फाइल की। प्रिजनर्स फर्म में कंसल्टेंट थी तो प्रिजनर्स के लिए बहुत काम किया। कंडीशंस ऑफ प्रिजनर्स, चाइल्ड मैरिज के लिए काम किया। पटना हाईकोर्ट में दो रिटेनर लॉयर हैं, उनमें से एक मैं हूँ। उसमें भी हम लोग मुफ्त कानूनी सलाह देते हैं। मुफ्त में वकील देते हैं।



मुजफ्फरपुर पीआईएल जो डाली है आपने कुछ उसके बारे में बताइए। आपको ऐसा क्यों लगा कि इसमें पीआईएल डालनी चाहिए।या आपने पीआईएल दाखिल की तो इसका कुछ विरोध हुआ क्या?
कोई भी सेंसिटिव सिटीजन होगा तो उसकी अंतरात्मा छटपटाएगी कि 7-13  साल की मासूम बच्चियाँ हैं, उनके साथ में ऐसी घटना घट रही है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के कुछ लोग हैं यहाँ पर, वे मेरे टच में रहते हैं, तो उन्होंने मुझे फर्स्ट हैंड एकाउंट दिया वहाँ का। और फिर मुझे वहाँ का फर्स्ट हैंड एकाउंट बहुत जगह से मिला। फिर मैंने महसूस किया कि इसमें और कुछ हो जाए उससे पहले मैं पीआईएल फाइल करती हूँ। तो मेरे जूनियर हैं नवनीत उनको मैंने पिटीशनर बनाया और मैं वकील रही।और हम लोगो ने इसे सीबीआई इंक्वायरी के लिए फाइल किया। इस मामले की पहली सुनवाई हो चुकी थी,  6 अगस्त को दूसरी थी. लेकिन मैंने सोचा गर इसको इतना मेंशन करके नहीं करूँगी तो कहीं मेरे इवीडेंस हैं, जितने विटनेसेस हैं वो गायब हो जाएंगे। हालाँकि 6 अगस्त को तारीख मिली थी पर उससे पहले ही मैंने मेंशन किया और जब हेडलाइन हुआ कि आज हाईकोर्ट में सुनवाई है सीबीआई वाले मामले की तो, और बाकी जनता और एक्टीविस्ट लोग भी तो प्रेशर बनाए हुए थे, तो, दैट टाइम गवर्नमेंट बकल डाउन यू नो। और साढ़े दस बजे कोर्ट बैठती, हमारा केस पहली ही सुनवाई में था, उससे पाँच मिनट पहले ही कोर्ट में रहने वाले उनके पत्रकारों ने मुझे बताया कि मैडम सीबीआई इन्क्वायरी की अनुशंसा हो गई है। सो इट्स वेल एंड गुड यू नो। अब हमारी कोशिश है कि हाईकोर्ट की निगरानी में जाँच हो। अभी 6 तारीख को हमारा ये मामला फिर सुना जायेगा। सीबीआई इन्क्वायरी का आर्डर हुआ है पर हमारा प्रयत्न ये है कि तमाम शेल्टर होम जो हमारे यहाँ हैं, अक्रास द बिहार शेल्टर होम की जाँच हो। क्योंकि आपने देखा होगा कि अलग-अलग जगह से भी मोतीहारी,भागलपुर, मुंगेर, गया अररिया, अलग जगह से इश्यूज आ रहे हैं। 15 शेल्टर होम को चिन्हित किया हुआ है।एक मुजफ्फरपुर हो गया तो बाकी सब भी मुजफ्फरपुर न बन जाएँ। इट्स ऑलरेडी हैपनिंग। मुजफ्फरपुर में उजागर हो गया बाकी सब में अभी उजागर नहीं हो रहा है। और क्या-क्या घटनाएं घट गई होगीं, एक विजिलेंट सिटीजन के नाते ये हमारा कर्तव्य है कि जब भी हम ऐसा देखते हैं कुछ गलत हो रहा है, और आप सक्षम हैं तो किसी भी फोरम से आप उसको उठाइए और उन्हें न्याय दिलाइए।



बिहार मीडिया की क्या प्रतिक्रिया है, आपको कितना तवज्जो दे रही है इस केस को लेकर।
शुरु में तो बिहार मीडिया बहुत शांत रहा इस मामले में और जो प्रोटेस्ट सडकों पर हुआ मुजफ्फरपुर को लेकर बिहार मीडिया द्वारा उसे अनदेखा कर दिया गया। मैंने देखा कि बहुत सारे संगठनों ने मिलकर प्रोटेस्ट किया तो उसको भी कवरेज नहीं दिया गया। वह तो सोशल मीडिया से हम लोगो को मालूम हो जाता है। सोशल मीडिया हैज बीन रिवोल्यूशनरी थिंग, यू नो अदरवाइज प्रिंट मीडिया पर निर्भर रहते तो आज तक मुजफ्फकपुर के बारे में आम जनता को पता ही नहीं होता। क्योंकि इसको बहुत ही दबाने की कोशिश हुई है मुजफ्फरपुर इंसीडेंट को प्रिंट मीडिया द्वारा। लेकिन बाद में तो फिर इतना प्रेशर बन गया कि प्रिंट मीडिया भी कुछ दिनों बाद खबरें निकालने लग गई। जो भी पेपर्स हैं उन्होंने बहुत अच्छे से फॉलोअप किया है बाद में। किसी मुद्दे को लेकर पेपर सक्रिय रहते हैं कुछ पेपर निष्क्रिय रहते हैं। मीडिया का तो बहुत ही अफरमेटिव रोल है हमारी सोसायटी में। आज से तीस साल पहले जो मीडिया में नैतिकता थी, मीडिया हाउसेसे के बढ़ने से उसमें कमी आई है। पर कुछ हैं जो अपने इथिक्स और नार्म्स को फॉलो कर रहे हैं। कहते हैं यह चौथा स्तम्भ है तो समाज के प्रति इसकी अकाउंटिबिलिटी ज्यादा है। तो इन्हें ये समझना होगा। ऐसा न हो कि लोग टीवी देखना छोड़ दिया, तो पेपेर पढ़ना भी छोड़कर सोशल मीडिया पर ही निर्भर हो जाएं। सो इट्स रिस्पांसिबिलिटी ऑफ होल मीडिया। प्रिंट मीडिया की तो गाँव गाँव घर-घर में पहुँच होती है, तो ये जिम्मेदारी बनती है कि वह सारी ख़बरें ईमानदारी के साथ रखे।

बिहार से बहुत सारे साहित्यकार और बुद्धिजीवी, रंगकर्मी ताल्लुक रखते हैं। पर वे भी चुप्पी ओढ़े हुए हैं। फेसबुक या दूसरे सोशल साइट पर भी उनके द्वारा बहुत कुछ नहीं लिखा कहा गया है।
पता है क्या हुआ है वास्तव में, पहले घटनाएं घटती थीं पर सामने नहीं आती थीं, अब कहीं-कहीं सामने आ रही हैं। लोग बहुत इनसेंसिटिव होते जा रहे हैं प्रतिक्रिया देने में। सीबीआई जांचके लिए जब मैंने पीआईएल किया तो सबने यही सोचा कि मैं सरकार के विरुद्ध में जाकर काम कर रही हूँ। मैंने पीआईएल किया है मुझे इससे मतलब नहीं है कि ये सरकार के पक्ष में है या विपक्ष में । मैं न्याय के पक्ष में खड़ी हूँ ये किसी के पक्ष में जाये, या विपक्ष में इससे मुझे मतलब नहीं है। एडवोकेट जनरल जो हैं, वे भी नाराज होने लगे-सबने कहा कि अब तो तुम्हारा सरकारी पैनल में आना मुश्किल है। मैंने भी कहा (हँसते हुए) रहने दीजिए आए नहीं आएं क्या फर्क पड़ता है। मेरे जीवन का ध्येय है न्याय के लिए लड़ना, उस ध्येय के साथ मुझे कुछ मिलता है तो ठीक है अडरवाइज आई रियली डोंट केयर। इससे पहले भी मैंने जो पीआईएल फाइल की है और करती रहती हूं तो लोग कहते है कि सरकार के विरुद्ध  है। जो भी घटना घट रही है और गलत हो रही है तो सरकार तो कहीं न कहीं से उसमें इनवाल्व रहती ही है ना। यह जिम्मेवारी भी तो सरकार की ही है ना।

स केस में अब नितीश सरकार में भाजपा मंत्री मंजू वर्मा के पति चंद्रेश्वर वर्मा का नाम आया है इसमें और नेता मंत्री विधायक संलिप्त मिल सकते हैं। स्थानीय लोग आगे इस केस में और कई सफेदपोशों के नाम उजागर होने की संभावना जता रहे हैं। जाहिर है ये केस आगे खुलेगा तो कहीं न कहीं उन लोगो की भी गर्दन पकड़ी जायेगी । इस केस में और भी कई चौंकाने वाले लोगों के नाम का खुलासा हो सकता है, जो सत्ता या सत्ता के सहयोगी दल से ताल्लुक रखते हैं।  
देखिए कहते हैं न कि दे आर नाट गिल्टी अन टू प्रूवेन यही बात है। लेकिन जब बात आ  रही है तो तहकीकात तो होनी चाहिए। मैं आपको बात दूँ कि मैं कास्ट और क्लास की बात नहीं करती हमेशा ह्युमन बींग की तरह बात करती हूँ, लेकिन मुझे कुछ लोगो ने बोला कि मैडम हमें मालूम है कि मंजू देवी आप ही की कास्ट की हैं। तो मैंने बोला कि देखिए इससे मेरा सीबीआई जांच कभी हैंपर नहीं होने वाला है। कास्ट का क्या है इसमें मेरे अपने रिश्तेदारा होंगे तब भी नहीं। यह न्याय की बात है। मेरा ध्येय मेरा लक्ष्य सिर्फ जस्टिस है। यही निर्धारित करता है कि मुझे क्या करना है। छोटी छोटी बच्चियाँ, जिनका कोई नहीं है उनके लिए हममें से किसी न किसी को तो आना ही था। इसलिए मैं लड़ी। मैं हमेशा ऐसे लोगों की लड़ाई लडना चाहती हूँ और मैं सबसे कहती भी रहती हूँ कि ऐसे मुद्दे हो तो प्लीज लाइए, मुझे बताइए। जब महिलाएं बहुत सारे मुद्दे लेकर सड़क पर उतरती हैं तो भी मैं उनको कहती हूँ चाहे काट्रैंक्चुअल हों, चाहे आशा वर्कर्स हों, चाहे रसोइयाँ हो, मैं कहती हूँ आप अपना मेमोरेंडम ले आइए मैं आपको कोर्ट से दिलवाती हूँ। तो हम कोर्ट से बहुत सारी चीजे करवा सकते हैं। सड़क पर विद्रोह करना तो एक बहुत अच्छी चीज है कि लोगो को प्रेशराइज करना । लेकिन मैं चाहती हूं कि लोग आएं और मुझसे बोले कि मैं अपने स्तर पर भी भरसक प्रयास करती रहती हूँ।लेकिन मैं चाहती हूँ कि लोग मुझसे जुड़ें । कोर्ट एक पॉवर है, एक शस्त्र है इसका उपयोग होना चाहिए।



न्यायिक लड़ाई के जरिए आप समाज को लेकर आगेबढ़ती हैं जैसा कि ये आपका पेशा भी है। आप जुडिशियरी से ताल्लुक़ भी रखती हैं तो अच्छी तरह समझती हैं, लेकिन इधर विगत कई सालों में न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई है, उसकी गरिमा का हनन हुआ है, लोगो का भरोसा कहीं न कहीं न्यायपालिका से कम हुआ है। फिर चाहे वह  सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का प्रेस कान्फ्रेंस करना रहा हो या फिर जज लोया का केस या फिर हाशिमपुरा या फिर बिहार के तमाम जातीय जन संहारों के जो फैंसले आए हैं उनमें कोई दोषी नहीं पाया गया, किसी को सजा नहीं हुई तो न्याय पालिका की खुद की विश्वसनीयता भी कहीं न कहीं कठघरे में खड़ी होती है।

सीबीआई वाले जाँच का जो जिरह करना था उसमें कोर्ट का कहना था कि आप सीबीआई को क्यों केस सौंपना चाहती हैं, क्यों नहीं चाहती कि सरकार करे, बिहार का जो प्रशासन है वह करे। तो मेरा कहना है कि इनवेस्टीगेशन ही मुख्य है। इनवेस्टीगेशन अगर गड़बड़ हो गयी तो न्यायपालिका चाहकर भी आपको न्याय नहीं दे पाएगी। कोर्ट में मेरा प्वाइंट ही यही था कि बाथे-बथानी में इतने लोगो का जनसंहार हुआ लेकिन किसी का कनविक्शन नहीं हुआ। तो हम सब तो न्यायपालिका पर ही उँगली उठाते हैं कि आपने न्याय नहीं किया। पर इन्वेस्टीगेशन गलत होगा तो तथ्यों को कमजोर करेगा। और जब जिरह होगी तो सब चीज कमजोर होते-होते न्याय जिसको मिलना चाहिए उसे न मिलकर दूसरे को मिल जाएगा।  कोर्ट में मेरा प्वाइंट ही यही था कि बाथे-बथाने में गर किसी की कन्विक्शन नहीं हुआ तो मतलब कि इन्वेस्टीगेशन प्रॉपर नहीं हुआ था। और यही बात यहाँ पर हो रहा है इस केस में। अगर इन्वेस्टीगेशन सीबीआई को नहीं सौंपा तो एक दिन बृजेश ठाकुर खुले में घूमता चलेगा। और कहेगा कि देखा हमारा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि एक महीना हो गया रिपोर्ट सबमिट हुए लेकिन एक महीने के बाद हम एफआईआर दर्ज करते हैं। मतलब एक महीने में उनको साक्ष्य गायब करने का मौका मिल गया। तो देर हुई। सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी से जब देर का कारण जब पूछा गया तो वे कहतें है कि हम मंत्रणा कर रहे थे अपने न्यायिक सलाहकारों से कि क्या होना चाहिए।दिस इज वेरी शेमफुल एंड डिसग्रेसफुल ऑन्सर। क्योंकि यदि आपको लीगल इशूज पर मंत्रणा करनी है तो लीगल ल्युमिनरी हैं हाइकोर्ट में। आपके एडवोकेट जनरल हैं, उनसे बात करते। एक महीना देर कर देना एफआईआर करने में और फिर एफआईआर होने के बाद दो महीने तक आप बृजेश ठाकुर को रिमांड पर नहीं ले रहे हैं। ये सब चीजें हैं। किसी लड़की के साथ में जब पॉक्सों एक्ट लगा हुआ है तो आपको 72 घंटे के अंदर में मेडिकल जाँच करनी हैं। आपने इसमें भी एक महीने एफआईआर करने में,  औरचार सप्ताह यहाँ पर देर कर दी । हरप्रीत कौर, जो एसएसपी है, वह अपने हाथ खड़े कर रही थी, उनसे नहीं हो पा रहा था, वह कह रही थी कि अब मुझे सीआईडी की मदद लेनी पड़ेगी।तो  जब वह कह रही हैं कि मुझे मदद चाहिए, जब वह इंगित कर रही हैं कि मेडिकल इक्जामिनेशन लडकियों का गलत तरीके से हुआ है डॉक्टर के बजाय नर्सों ने किया है। वह मदद माँग रही हैं सीआईडी से और सेंटर मदद दे भी रहा है लेकिन स्टेट मना कर रहा है, समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है। वह तो एक्टीविस्ट हैं, जिन्होंने सड़क पर निकलकर हंगामा किया, अलग-अलग पार्टी ने सदन में हंगामा किया सीबीआई की मांग की, हाईकोर्ट सुनवाई पर राजी हुई तो वह इस प्रेशर से बकलडाउन हो करके मान गए वर्ना तो हम हंड्रेड परसेंट स्योर थे कि हाईकोर्ट से सीबीआई जाँच का ऑर्डर लेके रहेंगें। और हाईकोर्ट से सीबीआई जाँच का ऑर्डर हो भी जाता। लेकिन फिर सरकार के पास जनता को दिखानेवाला मुँह नहीँ रहता जल लोग कहते कि हाईकोर्ट ने सीबीआई जाँच का ऑर्डर दिया है सरकार को इन्होंने अपने मन से तो नहीं किया। सब कुछ सोच विचारकर फिर उन्होंने खुद ही अनुशंसा कर दी।



पर खुद सीबीआई की साख भी सवालों के गहरे में है। कठुआ मामले में आम लोगो का भरोसा स्टेट इनवेस्टीगेशन टीम की जाँच के साथ था, जबकि आरोपियों को बचाने के लिए केंद्र की सत्ताधारी दल के लोग सीबीआई इनक्वायरी थोप रहे थे।
जस्टिस लोया वाले मामले में कितना मैशअप हुआ है जानते ही हैं। लेकिन हम गर सीबीआई इनक्वायरी के लिए कह रहे हैं तो हमारे पास कोई और चारा ही नहीं है। सीबीआई इवन्क्वायरी का इधर के वर्षों में ट्रेंड देखें तो वे बहुत सारे मैटर पर किसी नतीजे पर पहुँच ही नहीं पाए हैं। सारे ही आधे-अधूरे करके छोड़ दिए हैं। वो इधर किसी मुकाम पर नहीं पहुँच रहे हैं। तो सीबीआई की साख भी अब वो नहीं रही है लेकिन फिर हमारे पास और कोई विकल्प भी नहीं हैं। लेकिन फिर भी हमें सीबीआई से कुछ निष्पक्षता की उम्मीद है, जबकि सीआईडी भी स्टेटफंक्शनरी या उसके अधीन है तो वो भी स्टेट का हथकंडा बनेगी ही। पर हाँ सीबीआई को गर सेंट्रल गाइड करेगी तो वो अपने पक्ष के लोगो को बचाएगी। तो यही समय है जब सिविल सोसायटी की रिस्पांसबिलिटी बढ़ जाती है उन्हें ऑनेस्ट होना पड़ेगा। तो मेरे पीआईएल में ये भी दर्ख्वास्त है कि शेल्टर होम को मॉनीटर करने के लिए एक एक मॉनीटरिंग समिति होनी चाहिए जिसमें सिविल सोसायटी के सदस्य, जैसे कि डॉक्टर पत्रकार, सायकोट्रिस्ट, लॉयर, एडमिनिस्ट्रेशन, एकैडमेशन और जूडिशियल एकेडमी के लोग को शामिल करके इनकी एक टीम होनी चाहिए। जो कभी भी जाकर औचक निरीक्षण करे। सबकुछ फ्री एंड फेयर होना चाहिए। आप इतना बंद बंद करके रखते हैं और हर महीने जूडिशियल एकेड़मी के लोग जाकर मुआयना करते हैं और सब लीपापोती करके आ जाते हैं। किसी को पता भी नहीं चलता।


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'सनातन'कहाँ खड़ा है मुजफ्फरपुर में: हमेशा की तरह न्याय का उसका पक्ष मर्दवादी है, स्त्रियों के खिलाफ

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प्रेमप्रकाश 
कर्ण रहे होंगे अप्रतिम, लेकिन हमारा सनातन तो अर्जुन के साथ ही खड़ा है-- पिछले दिनों अपनी ही किसी पोस्ट पर अपने ही एक अनन्य मित्र की यह टिप्पणी पढकर हम सोच मे पड़ गये। तत्काल उनकी बात का उत्तर तो वहीं दे दिया लेकिन अभी भी लगता है कि समाधान नही हुआ। न उनका, न मेरा और न सनातन का। आज की इस पोस्ट के लिए अपने उसी उत्तर का एक सिरा पकड़ रहा हूँ। 

सनातन के साथ होने का दावा करता संगठन बजरंग दल वैलेंटाइन डे के विरोध में 

मै सोचता रहा कि हमारा सनातन बात तो करता है न्याय के साथ खड़े होने की, धर्म के साथ खड़े होने की, सत्य के साथ खड़े होने की और वंचित के साथ खड़े होने कि फिर वह खड़ा अर्जुन के साथ क्यो होता है? अर्जुन पीड़ा का नाम तो नही है और कम से कम कर्ण के सामने तो न्याय का नाम भी नही है अर्जुन। सनातन कर्ण को पैदा तो करता है पर कर्ण की कीमत पर भी खड़ा अर्जुन के साथ ही होता है। सही तो कह रहे थे मेरे मित्र।

सनातन माने आधुनिक संदर्भों मे कोई धर्म विशेष नही,सनातन माने देश की मूल चिन्तन धारा। सनातन माने भारत का राष्ट्रीय आचरण। सनातन माने वृहत्तर समाज का सहज स्वभाव। सनातन माने गुणधर्म के आधार पर सही गलत, उचित अनुचित का निर्णय। सनातन माने नैतिकता का तराजू और सनातन माने अपने मानदंडों पर मूल्यों की तौल। अब इन सूचकांकों पर अपना इतिहास तौलकर देखिये तो सनातन कब कहाँ किसके पक्ष मे खड़ा रहा है।सनातन कर्ण के साथ ही नही, एकलव्य के साथ भी खड़ा नही होता। सनातन द्रोण के साथ खड़ा होता है, जबकि वह अपराधी है लेकिन सत्ता के हाथ उसके सिर पर है। सनातन अर्जुन के साथ खड़ा होता है, जबकि उसका पराक्रम सत्तापोषित है। सनातन सुग्रीव और विभीषण के साथ खड़ा होता है, जबकि वे राज्य के भगौड़े और देशद्रोही है लेकिन प्रभुवर्ग के साथ है।

सनातन आज मुजफ्फरपुर मे कहाँ किसके साथ खड़ा है, निरीक्षण भाव से देखने की चीज है। सनातन जहाँ भी खड़ा है, या तो सेलेक्टिव सोच के साथ खड़ा है या फिर तटस्थ है। अनाथ को शरण देना सनातन का मूल्य रहा है। शरणार्थी के प्रति अतिथि और सेवाभाव सनातन के आग्रही नियम रहे है। सनातन संस्कार बच्चों की सूरत मे ईश्वर की मूरत के दर्शन करते है। ये बातें सनातन पुस्तकों मे लिखी हुई है। सनातन चिन्तकों का दर्शन ही इन्ही मूल्यों, परंपराओं और नियमों पर खड़ा बताया जाता है। लेकिन लिखे जाने और किये जाने के बीच जो अंतर है, मुजफ्फरपुर उसकी नायाब तस्वीर है। नाम मालूम है न आपको उस एनजीओ का ? सेवा, संकल्प और विकास समिति नाम है उसका। उसके अपने बाईलाज भी होंगे, जिसमे लिखित रूप से शपथ ली गयी होगी कि यह समिति समाज के अनाथ बच्चों की सेवा, शिक्षा और स्थायित्व के लिए संकल्पित है।उन कागजों पर इस संकल्प को प्रमाणित करती सरकारी मुहरे भी लगी होंगी।ये मुहरे हमारी चुनी हुई सरकारों की तरफ से लगायी जाती है। यानी ये कि हमने ही, यानी समाज ने ही उस समिति को उन बच्चों की जिम्मेदारी दे रखी थी, जिसके संचालन के लिए उन कागजों के पीछे एक सनातनी खड़ा था।

मुजफ्फरपुर की घटना का विरोध करती महिलायें

हमारा सनातन मुजफ्फरपुर मे कहाँ खड़ा है ? बड़े शांत भाव से, पूरी तटस्थता से सनातन अपने सनातनी के पीछे खड़ा है।सनातन यह बात समझता है कि उन बच्चों की सूरत मे ईश्वर जरूर है लेकिन स्त्री की देह में है। और अगर स्त्री की देह मे ईश्वर भी है तो सनातनी पुरुष की जाँघो मे दबोचने के लिए ही है। सनातन का स्टैंड एकदम क्लियर है। सनातन की प्रज्ञा पर कोई सवाल खड़ा नही होता। अगर वह मुजफ्फरपुर मे है तो सात से पंद्रह साल की अनाथ लड़कियों को नोचते, खसोटते, मारते, पीटते, घसीटते, भोगते अपने श्रेष्ठि सनातनियो की सुरक्षा मे खड़ा है और अगर वह हरियाणा मे है तो अपने उन्ही श्रेष्ठि सनातनियो के लिए एक सगर्भा बकरी की योनि मे रास्ता बनाता खड़ा है। सचमुच याद रखने लायक वाक्य है कि हमारा सनातन धोखे और छल से नौ वर्ष की बालिका कुन्ती को गर्भवती करने के समर्थन मे खड़ा होता है। एक निर्दोष और निष्काम बच्ची के गर्भ से पैदा होने वाले कर्ण को पालने के समर्थन मे खड़ा नही होता। हमारा सनातन उस विप्लवी पुरुष के पराक्रम के साथ भी खड़ा नही होता है। सनातन वहाँ खड़ा होता है, जहाँ अर्जुन है, जहाँ राज्य की संभावना है, जहाँ सत्ता का सुख है।

चिरन्तन से अधुनातन तक सनातन की यही भूमिका ही है। उसके नियमो की किताबें मोटी होती जाती है।उपदेशों के अध्याय बढते ही जाते है। उसकी कलम की स्याही कभी नही सूखती। सूखता जा रहा है लेकिन सनातन की  आँखो का पानी, सूखता जा रहा है करुणा का सोता, तृष्णा नही मरती, मर रहा है स्वयं सनातन।
फिल्म पद्मावत का विरोध 

इस मरने को आप रोक नही सकते लेकिन इस मरने के खिलाफ खड़े हो सकते है। इस मरण के खिलाफ जीवन की पुकार जरूरी है। इस मरण के खिलाफ जीवन का उद्गार जरूरी है। अगर इस मरण की परंपरा के खिलाफ खड़े नही हुए तो कल को कही खड़ा होने लायक नही रहेगा सनातन। ध्यान से देखिये। देखिये कि मुजफ्फरपुर का विस्तार हो रहा है। मुजफ्फरपुर केवल झांकी है। सनातन मूल्यों के नाम पर कहीं कुछ नही बाकी है। मुजफ्फरपुर न जाने कब से भारत मे तब्दील होने लगा है। देश के हर शहर मे एक मुजफ्फरपुर है। ये विस्तार बहुत सघन है। फर्क सिर्फ इतना है कि मुजफ्फरपुर की कलई उतर गयी। बाकियों की अभी बाकी हृ। सच कह रहा हूँ, मुजफ्फरपुर तो बस झांकी है। आइये ! नागरिक समाज का आवाहन है। कल उतर आइये सड़कों पर इस पतन, इस मरण के खिलाफ। उतरिये आप भी अपने शहर मे इस मरण के खिलाफ। ध्यान रहे, पूरी शर्मिन्दगी के साथ उतरेगे हम। अपनी लड़कियों, अपनी बच्चियों, अपनी बहन बेटियों और अपनी औरतों से आँखे चुराते हुए निकलियेगा ताकि अदब बनी रहे,  लिहाज बचा रहे, आँखो के पानी की लाज रह जाय और शेष रह जाय सनातन मे उम्मीदों का ध्वंसावशेष भी।

वरिष्ठ पत्रकार प्रेमप्रकाश जी की फेसबुक वाल से 

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पैसे की हवस विरासत में मिली थी हंटर वाले अंकल 'ब्रजेश ठाकुर'को !

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  वीरेन नंदा

मुजफ्फरपुरकाण्ड के मुख्य सरगना ब्रजेश ठाकुर के अन्तःपुर की कहानी बता रहे हैं वरिष्ठ साहित्कार वीरेन नंदा. वीरेन नंदा अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान के संस्थापक हैं. बता रहे हैं कैसे शुरू हुई थी इस परिवार से मुजफ्फरपुर में पीत-पत्रकारिता और बच्चियों के प्रति इसकी क्रूरता की कहानी:

रात में बाथरूम जाने उठती थी तो मेरी पैंट नीचे गिरी रहती थी -- बालिका आश्रय गृह कांड की बच्चियाँ

न जाने कितनी ही स्त्रियों को दैहिक, मानसिक, शारीरिक यातना से मुक्ति दिलाने वाले, नारी मुक्ति के प्रथम विमर्शकार गौतम बुद्ध की इस धरती को कलंकित कर दिया मुजफ्फरपुर ने। बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली इस नगरी की आबरू तार-तार हो बेताब है। वृज्जिसंघ को टूटने से बचाने वाली नगरवधू अम्बपाली वेश्यावृत्ति छोड़ अपने भिक्षुणी बने जाने पर विह्वल है। और विह्वल है आज मुजफ्फरपुर की स्त्रियाँ, लड़कियाँ, बच्चियाँ और उनके परिजन !

पेशी के दौरान ब्रजेश ठाकुर 


आज शर्मसार है पूरा बिहार,-स्त्रियों के नाम पर चलाए जाने वाली मुजफ्फरपुर की "सेवा संकल्प"संस्था के संचालक ब्रजेश ठाकुर की यौन कुत्सा कांड पर, जिसने "बालिका अल्पावास गृह"को "बालिका उत्पीड़न गृह"बना डाला ! कबीर ने स्त्रियों की दुर्दशा देख यूँ ही ऐसे नहीं कहा -
                  "नारी  की  झांई  पड़े  अन्धो  होत  भुजंग
                    कबीर तिनको कौन गति नित नारी के संग "       

बालिका अल्पावास गृह में स्त्रियों के साथ हुईयह अमानवीय और पीड़ादायक घटना नपुंसक पौरुषता की निशानी है, जिसके सूत्र इस देश में पौराणिक कथाओं में भी मिलते हैं कि किस तरह एक पुरुष अपनी बेटी को भी वेश्या बनाने से नहीं चूकता ! ययाति नामक एक चंद्रवंशी राजा के परम् गुरु ऋषि गालव थे। गालव अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु-दक्षिणा में 800 अच्छी नस्ल का घोड़ा देने का वचन दिया था। ऋषि गालव के पास घोड़े तो थे नहीं ! तब उसने अपने शिष्य ययाति से इस समस्या के निदान के लिए कहा। ययाति के पास उतने घोड़े देने के साधन नहीं थे और गुरु को वह खाली हाथ लौटा नहीं सकता था। तब उसने ऋषि को अपनी रूपवती पुत्री माधवी के विरोध के बावजूद उन्हें भेंट कर दी। गुरू खुशी-खुशी उसे स्वीकार कर अपने साथ ले गये और दो-दो सौ घोड़ों के एवज में तीन राजाओं को बारी-बारी से एक-एक साल के लिए माधवी को बेचता रहा। तीन साल में तीन राजाओं से माधवी को तीन पुत्र उत्पन्न हुए और गुरु को 600 घोड़े। चौथा राजा जब न मिला तो ऋषि गालव ने 600 घोड़ा सहित माधवी को भी अपने गुरू विश्वामित्र को अर्पित कर दिया। विश्वामित्र भी माधवी का भोग कर एक पुत्र पैदा किये और फिर उसे अपने शिष्य गालव को लौटा दिया। ऋषि गालव ने भी जब उसका दैहिक शोषण कर लिया तो उसे लगा कि अब माधवी उसके काम की नहीं ! तब उसने माधवी को उसके पिता को वापस कर दिया। पौराणिक काल की यह कथा अपने आप में स्त्रियों की दशा को इंगित करने के लिए काफी है। आदि काल से चली आ रही स्त्रियों के उत्पीड़न की दशा सुधारने वाले गौतम की धरती के ये वारिस मुजफ्फरपुर को कलंकित कर दिया, जिसका दाग कभी नहीं छूटने वाला है ! मुजफ्फरपुर के इतिहास में यह काला पन्ना सदा के लिए टंक गया।

प्रातःकमल अखबार का मालिक है ब्रजेश ठाकुर 


मुजफ्फरपुर में "सेवा-संकल्प विकास समिति"नामक एनजीओ के तहत चलने वाली संस्था "बालिका अल्पावास गृह"में 41 बच्चियों से मारपीट, नशा का इंजेक्शन और धमकी दे दे कर रेप करने-कराने वाले और रसूखदारों की हवस पूर्ति के आपूर्तिकर्ता आखिर इतनी अकूत संपत्ति कैसे अर्जित की ? उसकी कथा मुजफ्फरपुर में पीत-पत्रकारिता के जनक माने जाने जाने वाले उनके मरहूम पिता राधामोहन ठाकुर की कथा से शुरू होती है।

राधामोहन ठाकुर आरंभिक दौर में मुजफ्फरपुर के हरिसभा के निकट 'कल्याणी स्कूल'में शिक्षक थे। खड़खड़िया साइकिल से चलने वाला यह शिक्षक कभी स्कूल नहीं जाते थे, किंतु इनकी हाजिरी बनती रहती। कभी चेकिंग होती तो उसे मैनेज कर लेते। स्कूल के वेतन से उनका पेट कहाँ भरना था। उन्हें तो किसी भी तरह पैसा कमाना था और अकूत धन सीधी राह से आती नहीं ! तब उन्होंने यहाँ से एक अखबार निकालने की सोच 'विमल वाणी'का रजिस्ट्रेशन कराया और सरकारी विज्ञापन के लिए तब के उप-समाहर्ता और साहित्यकार डॉ. शिवदास पांडेय से संपर्क साधा। उन्होंने उनकी ऐसी मदद की, कि राधामोहन पैसे कमाने की मशीन बन गए ! यह बात स्वयं सेवा-संकल्प के संचालक व उनके कुत्सित पुत्र ब्रजेश ठाकुर ने इस शहर के साहित्यिकार डॉo शिवदास पाण्डेय के प्रणय-पर्व के अवसर पर छपी स्मारिका में अपने लेख में लिखता है -- "....नियमित प्रकाशन के लिए विज्ञापन ही आर्थिक श्रोत थे। श्री ठाकुर ने अपनी गरीबी और मुफलिसी के बीच अपने बुलंद हौसलों का परिचय देते हुए डॉo शिवदास पाण्डेय से विज्ञापन के रूप में आर्थिक मदद की मांग की। डॉo शिवदास पांडेय उनके हौसलों से इतने प्रभावित हुए कि उनको यथासंभव विभागीय ही नहीं, आत्मीय सहायता भी दी, जिसका नतीजा 'प्रातः कमल 'जैसे दैनिक के बीजारोपण से शुरू हुआ....उन्होंने डॉo शिवदास पाण्डेय को अपना संरक्षक, सलाहकार और बड़ा भाई मान लिया।..... डॉo शिवदास पाण्डेय के प्रभाव से ही गरीबी से ऊपर उठकर पैसे की मशीन बने राधामोहन ठाकुर  सांस्कृति, साहित्य, शिक्षा और समाज सेवा की ओर बढ़ने को उत्प्रेरित हुए । डॉo शिवदास पाण्डेय का उप-समाहर्ता के बाद नगर निगम प्रशासक के रूप में भी मार्गदर्शन मिलता रहा। "राधामोहन ठाकुर  ने शहर के सांस्कृतिक  क्षेत्र में क्या काम किया यह बात सभी जानते हैं !

प्रातः कमल में खुद को काम करने वाला बताते हुएएक पत्रकार ने कहा कि गोरखपुर से सरकारी विज्ञापन लाने में शबाब-कबाब और शराब की डाली लगाते थे राधामोहन ठाकुर। इस तरह खड़खड़िया साइकिल से चलने वाले राधामोहन ठाकुर ने करोड़ो की संपत्ति अर्जित की तो ऐश भी खूब किया। अखबारी कागज बेचने के आरोप में इनपर भी CBI इन्क्वारी हो चुकी है ! क्योंकि वे अखबार की उतनी ही प्रति छापते, जितना भर सरकारी विभाग को देना होता, बाकी कागज बेच लेते। स्थानीय व्यवसायियों से भी न्यूज छाप देने की धमकी दे कर पैसा ऐंठते !               
दिल्ली स्थित बिहार भवन पर सामाजिक संगठनों ने बिहार सरकार के खिलाफ किया प्रदर्शन 


करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाले इस राधामोहन ठाकुरके पुत्र ब्रजेश ठाकुर के भीतर भी पिता की तरह पैसे की भूख थी। उसी का परिणाम है "बालिका दुष्कर्म कांड"से रातों-रात देश भर में उसका कुख्यात हो जाना। उसकी  संस्था का नाम है, - "सेेवा-संकल्प एवं विकास समिति"। यह समिति बिहार सरकार द्वारा 8 अप्रैल 1987 को बीआर/2009/0003177 संख्या द्वारा रजिस्टर्ड हुई। नियमानुसार, ऐसी समिति में परिवार का एक ही व्यक्ति सदस्य हो सकता है, किन्तु इसमें उनके पुत्र राहुल आनंद सहित परिवार के अन्य रिश्तेदार भी सदस्य हो गये, जिनमें संजय कुमार अध्यक्ष, ब्रजेश ठाकुर मुख्य कार्यकारी अधिकारी, शिवशंकर ठाकुर कोषाध्यक्ष एवं प्रोमोटर में मधु कुमारी, राहुल आनंद, राजेश रंजन व अनिल श्रीवास्तव हैं। इसी एनजीओ के तहत उसने सरकार से अपनी पहुंच, रसूख और कल्याण विभाग के सहयोग से "बालिका अल्पावास गृह"खोला। इसमें अनाथ और बेसहारा लड़कियों को रख कर उसके रहने, खाने और देखभाल के नाम पर सरकार से लाखों रुपये ऐंठता रहा। इन बच्चियों की देखभाल वह क्या करता था उसका प्रमाण है इस कांड के बाद निरीक्षण करने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा की टिप्पणी - 'इस बालिका गृह की दशा तो जेलों से भी ज्यादा बदतर है', से ही मिल जाती है।

 गलत ढंग से पिता द्वारा अर्जित धन, धन सेबना रसूख और फिर सत्ता की चाह में उसने आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपल्स पार्टी को जॉइन कर लिया। 1995 के विधानसभा में ब्रजेश ठाकुर कुढ़नी (मुजफ्फरपुर) सीट से चुनाव में खड़ा हुआ। इस सीट से राजद के दिग्गज नेता बसावन प्रसाद भागवत भी खड़े थे किन्तु उत्तर बिहार का एक नामी गुंडा सम्राट अशोक भी मैदान में था। उसने ब्रजेश को थप्पड़ जड़ते हुए चुनाव न लड़ने की धमकी दी। ब्रजेश डर कर भाग गया। किन्तु सम्राट अशोक के मारे जाने के बाद वह 2000 में फिर चुनाव में उतरा, लेकिन अथाह खर्च करके भी जीत न सका। डी एम हत्याकांड में आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा हुई लेकिन ब्रजेश की उससे नज़दीकी बनी रही। बाद में राजद और जदयू के नेताओं के साथ उसकी छनने लगी और उसके अखबार 'प्रात: कमल'को भारी-भरकम सरकारी विज्ञापन मिलने लगा, साथ ही बिहार सरकार में महत्वपूर्ण पत्रकार भी माना जाने लगा।

 सरकार और उनके विभागों में पैठ बनाने के बाद, उसने और धन कमाने के लिए एक अंग्रेजी अखबार 'न्यूज़ नेक्स्ट'शुरू  किया  और अपनी बेटी निकिता आनंद को उसका संपादक बना दिया। सुना जाता है कि उसने 'हालात-ए-बिहार'नामक एक उर्दू अखबार भी शुरू किया ! यानी इन तीनों अखबारों के सरकारी विज्ञापन और अपने एनजीओ से खूब धन कमाया फिर भी उसका पेट नहीं भरा तो अपने 'बालिका अल्पावास गृह'में बच्चियो का शोषण शुरू किया. यह सब   उसके घर से सटे बिल्डिंग में चल रहा था जिसमें तीनों अखबार के दफ्तर भी हैं।
30 जुलाई को देशव्यापी प्रदर्शन किया गया

इसी साल फरवरी में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोसल साइंस (TISS) ने इस बालिका गृह की ऑडिट रिपोर्ट 'समाज कल्याण विभाग'को सौंपी। लेकिन ब्रजेश ठाकुर का रसूख तो देखिए ! उस रिपोर्ट को विभाग में ही उसके निदेशक तक पहुंचने में तीन माह लग गए ! यानी वह  26 मई 2018 को निदेशक के पास पहुँची। जबकि उस रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि वहां बालिकाओं का यौन उत्पीड़न हो रहा है।

समाज कल्याण विभाग के निदेशक ने अपने रिटायर होने वाले दिन, यानी 31 मई को TISS के ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर 'बालिका गृह'खाली करा कर उसमें रह रही 44 लड़कियों को मधुबनी, पटना और मोकामा शिफ्ट करवाया और अपने सहायक निदेशक को FIR करने को कहकर रिटायर हो गए। 1 जून को समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक दिलीप वर्मा ने महिला थाने में FIR दर्ज की और तब से फरार हैं। उन्हें भी पुलिस खोज रही है। जिस दिन लड़कियों को बालिका गृह से मोकामा, मधुबनी और पटना शिफ्ट किया जा रहा था उस दिन भी रवि रौशन ने यौन उत्पीड़न किया !

 शहर में नई-नई आयी सीनियर एस.पी. हरप्रीत कौर  2 जून को ब्रजेश से पूछताछ कर वहाँ के कागजात जब्त कर दूसरे दिन ब्रजेश सहित आठ लोग ( किरण कुमारी, चंदा कुमारी, मंजू देवी, इंदू कुमारी, हेमा मसीह, मीनू देवी, नेहा और रौशन कुमार) को हथकड़ी डाल ले गई। ब्रजेश दुहाई देता रहा कि मैं पत्रकार हूँ, बालिका गृह मेरा नहीं है। तब एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पत्रकार ने पूछा - "जब आप का नहीं है तो आप के अखबार और बालिका अल्पावास गृह का मोबाइल नम्बर 9431240777 और फोन न. 0621-2242633 एक कैसे है ?"यह सुनकर ब्रजेश बगलें झांकने लगा। 4 जून को लड़कियों का मेडिकल टेस्ट हुआ जिसमें यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई। राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सुषमा साहू ने भी जांच कर कहा कि 15 लड़कियों के साथ दुष्कर्म हुआ है। 5 जून को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष विकास कुमार को पुलिस ने धर दबोचा। 'बालिका अल्पावास गृह'की 44 लड़कियों में से 34 के साथ रेप हुआ है। आठ की मेडिकल रिपोर्ट आनी बाकी है। इनमें तीन लड़कियां प्रेगनेंट हैं। 7 से 13 साल की बच्चियां भी इसकी शिकार हुई। पुलिस के समक्ष यौन उत्पीड़ित बच्चियों ने जो बयान दिया है उसे सुनकर कोई भी चीत्कार उठे। वे बताती हैं -"भूख से तड़प कर खाना मांगने पर पीटा जाता। जबरदस्ती का विरोध करने पर पीटा जाता ! खाने में नींद की गोली देकर यौन संबंध बनाया जाता, सुबह उठने पर वे खुद को निर्वस्त्र पाती और शरीर दर्द से ऐंठता रहता। खाना बनाने, बर्तन मंजवाने का काम करवाया जाता। किसी भी बात का विरोध करने पर ब्रजेश हंटर से पीटता। चंदा रॉड से मारती और खाना मांगने पर पीठ पर गर्म पानी उझल देती। सीडब्ल्यूसी रवि रौशन कुमार और काउंसलर विकास  भी गलत काम करता। ब्रजेश, नेहा, किरण, चंदा आदि ( बच्चियों के ) निचले हिस्से पर ही प्रहार करते। मार से एक लड़की का गर्भपात हो गया था। एक लड़की को फाँसी लगाकर मार दी गई।"- यह 41 लड़कियों का पुलिस को दिए गए बयान के अंश हैं। बालिका गृह को "बालिका यातना गृह"में तब्दील कर दिया था ब्रजेश ठाकुर ने। एक लड़की ने कहा कि इनकार करने पर एक लड़की की इतनी पिटाई की गई कि वह मर गई और शव उसी परिसर में दफनाए जाने की बात बताई। उसकी निशानदेही पर कोर्ट के आदेशानुसार खुदाई हुई। शव तो नहीं मिला किन्तु वहां की मिट्टी लेकर फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया है।

 2013 से अबतक 6 लड़कियां गायब है।बालिका गृह के रजिस्टर में उन्हें भगोड़ा लिख कर चुप्पी साध ली गई। पुलिस को खबर तक नहीं दी गई। यह बात वहां के रजिस्टर खंगालने पर पता चली, जिसकी भी छान बीन की जा रही है। सेवा संकल्प के अलमारियों को मजिस्ट्रेट के सम्मुख खोला गया तो उसमें कुछ सामान्य बीमारियों में दी जाने वाली दवा के अलावा नशे और मिर्गी में दिए जाने वाले इंजेक्शन भी मिले। मिर्गी के इंजेक्शन यदि सामान्य व्यक्ति को दिया जाए तो वह अचेत हो जाता है।

आश्चर्य तो इस बात की है कि बिहार सरकार के समाज कल्याण विभागका इस तरह ब्रजेश ठाकुर पर मेहरबान होना तो समझ में आता है कि तू मुझे खुश कर मैं तुम्हें ! लेकिन मुजफ्फरपुर के अखबारों की दो दिनों तक चुप्पी साधना ब्रजेश की ऊपर तक पहुँच को भी दर्शाता है। पीटीआई और यूएनआई के मुजफ्फरपुर के रिपोर्टर ब्रजेश ठाकुर के खास करीबी रिश्तेदार भी हैं और उनमें से एक यहाँ के प्रेस क्लब का अध्यक्ष भी है ! तो मामला दबाने की कोशिश क्यों न होती, किन्तु यहाँ की सीनिअर एस.पी. हरप्रीत कौर की दिलेरी के आगे सब अखबारों को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी। वह भी तब, जब एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे शुरुआत से ही लीड लेना शुरू कर दिया था।           
बिहार विधान परिषद में विरोध दर्ज कराती नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी 
  

ब्रजेश की शातिरता का एक नमूना यह भी है किअपने कुकर्म को ढंकने के लिए वह समाज में अपनी नकली छवि बना अधिकारियों और अख़बारों से वाहवाही भी बटोरता रहा है। उसकी मिसाल 2007 में एक घटना से दी जा सकती है। हुआ यह कि एक दलित लड़की विमला की शादी एक पिछड़ी जाति की लड़के के साथ हुई । इस शादी के समारोह में उस वक़्त के डीएम सहित कई आला अधिकारियों को ब्रजेश ने आमंत्रित कर अपनी संस्था को आयोजक बताकर उस आयोजन का सेहरा ले लिया और दूसरे दिन इसकी खबर अखबारों में छपी कि ब्रजेश ठाकुर की संस्था 'सेवा-संकल्प'ने रेडलाइट एरिया की अंधेरी गली से निकाल उस लड़की का उद्धार किया और उसे नयी जिंदगी दी ! साथ ही यह भी खबर छपवाययी कि डी.एम.ने पांच हजार और अन्य लोगों ने इस सत्कर्म में दूल्हा-दुल्हन को उपहार दिए। यह खबर देख नव-जोड़े ने ब्रजेश ठाकुर और उनकी संस्था की मधु नामक महिला सहित कई अधिकारियों पर मिठनपुरा थाने में FIR की। लेकिन ब्रजेश का बाल भी बांका न हुआ। ब्रजेश की गिफ्तारी की खबर सुन विमला और उसके पति के कलेजे को अब ठंडक मिली। और कहती है - 'मेरे केस में तो उन लोगों का कुछ नहीं हुआ, लेकिन आज हमें खुशी मिली कि ब्रजेश ठाकुर और मधु के पाप का घड़ा फूट गया।'

यह और भी आश्चर्यजनक बात है कि इस "सेवा-संकल्प एवं विकास समिति"जैसे एनजीओ को केवल बिहार सरकार से ही फंडिंग नहीं हो रही थी बल्कि विदेशी संस्था भी ऐड दे रही थी। ऐसा सुना जाता है कि 'फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट ' (FCRA) के तहत भी ब्रजेश ठाकुर ने अपनी संस्था का रजिस्ट्रेशन करा रखा था, जहां से भारी मात्रा में विदेशी धन उसे मिलता रहा।  FCRA के तहत उसी एनजीओ को धन की प्राप्ति होती है जिसके सदस्य न तो राजनीतिज्ञ हो और न ही मीडिया से जुड़ा व्यक्ति हो, जबकि ब्रजेश राजनीतिज्ञ और मीडिया से जुड़ा था ! तब सवाल उठता है कि भारत सरकार के गृह-विभाग की देखरेख में चलने वाले FCRA से ब्रजेश की इस "परिवार-समिति"का निबंधन कैसे हुआ ? जबकि उक्त "सेवा-संकल्प"और उसके अखबार "प्रातः कमल"का जो रजिस्ट्रेशन है उसमें दोनों का पता, फैक्स और मोबाइल नम्बर एक ही है। यहाँ यह प्रश्न उठता है कि उक्त मोबाइल का खर्च किस खाते से होता था-- प्रातः कमल के खाते से या सेवा-संकल्प से ? यह तो जांच से पता चलेगा या इस संस्था और अखबार का ऑडिट करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट ही बता सकते हैं !

सरकार को  बाध्य होकर इस काण्ड को अब सी. बी.आई. के हवाले करना पड़ा है क्योंकि सामने चुनाव आने वाला है। इस कांड में कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम आ रहा है। उनके पति का नाम रवि रौशन की पत्नी बार-बार ले रही है कि उनका यहाँ लगातार आना-जाना रहा है। मुजफ्फरपुर दौरे में तेजस्वी यादव ने नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा का भी नाम इस काण्ड से जोड़ दिया है। लेकिन इस ब्रजेश ठाकुर की सत्ता और सरकार में कैसी पहुंच थी उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस दिन उसपर FIR हो रहा था ठीक उसी समय अनाथ और गरीब पुरुषों के रहने-खाने-देखभाल का एक टेंडर 'स्टेट सोसायटी फॉर अल्ट्रा पुअर एंड सोशल वेलफेयर'के मुख्य अधिकारी राज कुमार द्वारा पास किया जा रहा था, जिसे तीन दिनों बाद उसी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी कृष्ण कुमार सिन्हा ने 'अपरिहार्य परिस्थितियों'के हवाले से रद्द कर दिया। ज्ञात हो कि पाँच बालिका गृह चलाने वाले ब्रजेश ठाकुर को प्रति वर्ष 1 करोड़ का फण्ड सरकार मुहैय्या कराती रही है।

 इस सेवा-संकल्प का चयन, निरीक्षण और रिन्यूअल सब शक के घेरे में है। इसके निरीक्षण का काम जिला निरीक्षण समिति करती है। यह निरीक्षण प्रत्येक तीन माह पर करना आवश्यक है, जिसकी भी घोर अवहेलना की गई है। जबकि इस निरीक्षण समिति के अध्यक्ष होते हैं जिला अधिकारी, बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक सचिव, बोर्ड या समिति के सदस्य, मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, शिक्षा विभाग के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, विशेष किशोर पुलिस इकाई का सदस्य, अध्यक्ष द्वारा नामित सदस्य और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ। तब यह सवाल उठता है कि सरकार के इतने विशेषज्ञों की समिति के होते हुए भी यह घृणित कांड कैसे घटा,  जिसपर देशभर की जनता थू-थू कर रही है ?

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ब्रजेश ठाकुर की बेटी के नाम एक पत्र: क्यों लचर हैं पिता के बचाव के तर्क

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संजीव चंदन


निकिता आनंद

कैसी हैं?

जाहिर है आप परेशान होंगी अपने पिता के लिए. आप कम से कम उतनी प्रसन्न तो नहीं होंगी जितना आपके पिता जघन्य यौन-उत्पीड़न मामले के आरोपी होकर भी पुलिस वाले के साथ पेशी के लिए जाते हुए दिख रहे हैं-उस प्रसन्नता की तस्वीर तो आपने देख ली ही होगी न.

पारिवारिक पूजा में हवन करता ब्रजेश ठाकुर 


मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ. इस समाजकी परवरिश में रहे हम सबकी यह परेशानी हो सकती है, अपने परिवार के अपराधियों, कुंठितों, बलात्कारियों के बचाव की. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. मैंने आपके जवाबों का वीडियो देखा है, एक रिपोर्ट में भी आपका विस्तृत पक्ष पढ़ा है. बचाव में परिवार की महिलाओं को बहुत बार लाया जाता है-निर्भया काण्ड के आरोपियों के बचाव में भी उसके परिवार की महिलाएं आगे आयी थीं, इंदौर में भाजपा के विधायक की भी और कठुआ काण्ड में भी. आपका मामला पहला नहीं है और आख़िरी भी नहीं.

हाँ, तो आपका मानना है कि आपके पिता को फंसायाजा रहा है. और इसके कई तर्क हैं आपके पास, जिसे मैंने भी देखा, पढ़ा, सूना. उन तर्कों पर सिलसिलेवार बात करते हैं. पहले एक सवाल आपसे कि तीन-तीन अख़बार के मालिक आप अपने पिता को कारोबार करते देख रही हैं. एक अख़बार की आप सम्पादक भी हैं तो आपसे न तो अख़बार का प्रबंधन छिपा होगा न, न उसका सर्कुलेशन, न उसका अर्थ-गणित. इसके अलावा पारिवारिक बिजनस के सक्रिय सदस्य के रूप में यह भी जानती होंगी कि रजिस्टर्ड संस्था में कौन-कौन से कार्यकारिणी में हैं? क्या आपको पता है कि आपके पिता की एक संस्था का सचिव, जो मुख्य पद होता है, कहीं एक्जिस्ट ही नहीं करता. जिस व्यक्ति को सचिव बताया गया है, उसका अता-पता आपके पिता भी नहीं बता पा रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर छपी है, उसमें एक अदृश्य व्यक्ति को सचिव बताया गया है. क्यों नहीं अब आप एक्सप्रेस को उस अदृश्य का पता बता देती हैं? कुछ तो मजबूरी होगी आपके 'अच्छे पिता'की एक अदृश्य को सचिव बनाने की. और हाँ, आप विज्ञापनों का गणित भी समझती होंगी न. शहर में न दिखने वाले अख़बार को अफसरों तक पहुंचा कर और बड़ी संख्या में सर्कुलेशन बताकर ही न सरकार से तीन अख़बारों का नियमित विज्ञापन लिया जा सकता है- जिले से लेकर देश की सरकार तक का विज्ञापन. इस तन्त्र पर कभी आपके मन में सवाल उठा था क्या, नहीं न-यही, यही है हमारे-आपके परवरिश से प्राप्त परिवार के प्रति मजबूरी.



पेशी के दौरान ब्रजेश ठाकुर 
ज़रा आपके तर्कों पर बात करते हैं:

1. आपका कहना है “क्योंकि, मेरे बाप के पास‌ बहुत पैसा है. अगर उसे शारीरिक संबंध ही बनाना होता और लड़कियों की सप्लाई करनी होती तो यहां की लड़कियां क्यों करता? यहां तो वो लड़कियां थीं, जिन्हें समाज ने भी तज दिया था. कई मानसिक रूप से विक्षिप्त थीं. कुछ लड़कियों की उम्र आठ साल से भी कम थीं. सच बताऊं तो मेरे पिता को मैंने कभी ऊपर जाते देखा ही नहीं है. जहां आप अभी बैठे हैं यहीं बैठते थे. ऊपर जो ग्रिल दिख रहा है वो बालिका गृह के ओसारे का ग्रिल है जहां से बच्चियां नीचे की ओर झांकती रहती थीं. कभी हमसे भी बात कर लेतीं तो कभी पापा से.”

क्या आपका यह सवाल इस मामले से तनिक भी सम्बद्ध है ? आपके पिता से ज्यादा रसूख वाले लोगों पर बलात्कार सिद्ध नहीं हुए हैं! बहुत से बलात्कारी पैसे देकर सेक्स खरीदने की स्थिति में होते हैं, फिर भी बलात्कार करते हैं. लड़कियों की सप्लाई के लिए सहज उपलब्ध लड़कियों से अलग वे क्यों इन्वेस्ट करते भला? सीधा जवाब दे रहा हूँ, कोई भावुक सवाल नहीं कर रहा कि एक बेटी होकर पिता के लिए सेक्स क्रय का रूट आप क्यों देख रही हैं? इस सवाल का अर्थ ही नहीं है, क्योंकि आप यौन-शोषण के आरोपी अपने पिता का बचाव कर रही हैं.

2. “PMCH की मेडिकल जांच रिपोर्ट में क्या लिखा गया है किसी ने पढ़ा  है‌ क्या?  उसमें अंग्रेजी में साफ-साफ लिखा हुआ है, सेक्सुअल कॉन्टैक्ट कैनोट बी रूल्ड आउट. नो रेप फाउंड. नो स्पर्म‌ फाउंड. (Sexual Contact Cannot be ruled out. No rape found. No Sperm found). हिंदी में इसका मतलब क्या होगा कोई मुझे बता सकता है?''

 जब आप यह सवाल करती हैं तो यह क्यों नहीं करतीं कि TISS की रिपोर्ट आने के कुछ महीने बाद एफआईआर हुआ. एफआईआर के बाद लड़कियों का तुरत मेडिकल होना था, जिसमें भी कई दिन लग गये. तब तक न डाक्टर स्पर्म ढूंढ सकता है, न देवता. आप क्या सच में इनोसेंटली यह तर्क दे रही हैं या पाठकों,श्रोताओं को उलझाने का एक तर्क है यह. हिन्दी में इसका मतलब भी लोग समझते हैं और अंग्रेजी में भी और उस भाषा में भी जिसका संकेत आपके तर्क में है.

3. आपको पता है, यहां आने वालीं मैक्सिमम लड़कियां कहां से आती हैं? या तो उनके ऊपर पहले से जुर्म हुआ रहता है या फिर वे मानसिक रूप से विक्षिप्त रहती है. उन‌ बच्चियों का रेप और उनपर जुल्म अगर यहां आने से पहले हुआ होगा तो क्या मेडिकल रिपोर्ट में ये बात नहीं आएगी. इस बात की गारंटी कौन देगा.

 क्या यह सारी लड़कियों का सच है, क्या उन नाबालिगों का भी, जो काफी कम उम्र की हैं. 34 बच्चियों के साथ पुष्टि हुई शोषण की. और हाँ आपके 'अच्छे पिता'ने गायब छः बच्चियों के बारे कभी पुलिस को कोई सूचना क्यों नहीं दी? कभी यह सवाल उठा आपके मन में?

महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्र विवादित शेल्टर होम में 


4. हमारे घर पर सब रहते हैं. मम्मी, पापा, भाई, भौजाई, मैं और बच्चों के अलावा दूसरे स्टाफ भी. यदि यह सब इतने दिनों से चल रहा था तो क्या हम लोगों को जरा भी इसकी भनक नहीं लगती. हमें छोड़िए क्या हमारे स्टाफ्स को भी नहीं लगती!

मैं खुद भी एक बच्ची की मां हूं. मैं अपने पिता का साथ कभी नहीं देती. क्या आपको लगता है कि एक पत्नी जो यहीं अपने पति के साथ रह रही हो, उसको इन सब चीजों के बारे में मालूम नहीं चलता. और अगर चल जाता तो क्या एक पत्नी कभी यह बर्दाश्त कर सकती है कि उसका पति किसी दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाए. क्या इसकी इजाजत वो दे सकती है?


मेरे भाई की हाल ही में शादी हुई है. बहु भी यहीं रहती है. वो तो नई लड़की थी हमलोगों के लिए. जिस घर में ये सब हो रहा हो, उस घर में रहना वह कैसे पसंद कर सकती है.

क्या आपको नहीं पता कि भरे -पूरे परिवार के बीच महिलाओं का यौन-शोषण होता है. कई ऐसे मामले आये हैं-करीबी रिश्तेदारों द्वारा शोषण के. पीडिता किसी को बता नहीं पाती है. और न ही पूरे परिवार को पता चल पाता है? आप यह जवाब देते हुए अपने पिता की तस्वीर पेश कर रही हैं, पूरे परिवार के साथ पूजा करते हुए-क्या आप कोई मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना चाहती हैं? क्या आशाराम से लेकर कई संतों की कथाएं काफी बाद सामने आयीं, उनकी ऐसी हजारो तस्वीरें नहीं पेश की जा सकती हैं?

5. “आप लड़कियों के मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के अंतर्गत दिए गए बयान देखें. सारे बयानों में सिमिलारिटी ही नजर आएगी. पांच साल की बच्ची भी वही बयान दे रही है, जो अठारह साल की बच्ची दे रही है. ऐसा कैसे संभव है? क्या ऐसा नहीं लगता कि कोई उनका ट्यूटर रहा हो? उनसे बुलवाया गया हो. महिला आयोग की अध्यक्षा दिलमणि मिश्रा नवंबर 2017 में आईं थीं यहां. निरीक्षण के बाद यहां के स्टाफ की पीठ थपाथपा कर गई थीं. निरीक्षण के बाद के रिमार्क्स यहां की रजिस्टर में दर्ज किया था उन्होंने.

महिला आयोग की ही एक और सदस्या उषा विद्यार्थी जी भी आईं थीं दिसबंर 2017 में. उन्होंने भी जांच के बाद अपने रिमार्क्स दर्ज किए थे.  पुलिस ने उसको अब सीज कर लिया है.”

अब यहां सवाल ये है कि, क्या दिलमणि मिश्रा और आयोग के अन्य सदस्यों को यहां तब अनियमितताएं नहीं दिखी थीं. जब पिछले साल उन्होंने आकर निरीक्षण  किया था और बच्चियों से बात की थी. क्या तब बच्चियों ने उनको कुछ भी नहीं बताया था?

सवाल इसलिए भी लाजिमी है कि आज उन्हीं दिलमणि मिश्रा के हवाले से अखबारों में खबरें छपी हैं कि बच्चियों ने अपनी पीड़ा की कहानी सुनाई तो उनकी रूह कांप गईं.

आप एक कांस्पीरेसी थेयरी रख रही हैं. इस जवाब का सच है कि आपके पिता रसूख वाले थे और सरकारी अफसरों का आपके पिता के कुकर्म में भागीदारी के प्रसंग सामने आये हैं और कुछ अंदाज से भी समझा जा सकता है. पीडिताओं के पक्ष से यदि आप यह सब देखेंगी तो इसे नेक्सस की तरह देख सकेंगी और मामला सामने आने पर भागीदारों को खुद को बचाने की कवायद के तौर पर. रही बात लड़कियों का पहले किसी अधिकारी से आपबीती नहीं बताने की. तो ऐसा होता है. खौफ के कारण होता है. मेरा खुद का फील्ड रिपोर्टिंग के दौरान ऐसा अनुभव रहा है. दो साल पहले आपके ही राज्य के एक संस्थान में मैं गया था.वहां पढने वाली लड़कियों ने मुझे कुछ नहीं बताया. दो-तीन महीने पहले जब वहां एक यौन-शोषण का मामला आया. तो कई लड़कियों ने मुंह खोला.



मेरे पास कुछ तस्वीरें हैं. मैं आपको वो दिखाती हूं. बकौल निकिता ये तस्वीर उस दिन (31 मई) की है, जिस दिन सभी बच्चियों को यहां से शिफ्ट किया जा रहा था.यहां के जिन स्टाफ्स को अब जेल में डाल दिया गया है, बच्चियां उनसे लिपट कर रो रही हैं. केवल एक बच्ची नहीं. इन तस्वीरों में ढ़ेर सारी ऐसी बच्चियां दिख जाएंगी आपको. 164 के बयान के आधार पर मीडिया में आई खबरों में जिन जुल्मों और यातनाओं का जिक्र किया गया है, उतना सहने के बाद भी कोई बच्ची बिछड़ने के गम में ऐसे रोएगी?  आप देखिए और बताइए कि मीडिया में बच्चियों के 164 के बयानों के आधार पर जो खबरें छपी हैं, क्या उनपर यकीन करना संभव है?

एक खौफ और एक अनिश्चितता से दूसरी अनिश्चितता की ओर जाने में और अचानक से घट रही घटनाओं के खौफ में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? और हाँ, आपके 'अच्छे पिता'के साथ साजिश कौन कर रहा है? क्या स्टेट मशीनरी, जिसके लोग खुद ही इस मामले में शामिल बताये जा रहे हैं, आरोपी बनाये जा रहे हैं! 164 के बयान के लिए प्रशिक्षण किसने और क्यों दिया?

और आख़िरी बात कि एक आरोप आपके पिता पर यह भी है कि एक दलित और ओबीसी युगल की शादी को एक वेश्या के उद्धार की तरह पेश करवाते हुए उन्होंने श्रेय लिया, खबर छपी. पीड़ित पक्ष ने ऍफ़आईआर किया. आपके रसूखदार अच्छे पिता का कुछ नहीं बिगड़ा. आपने कभी सवाल किया कि इसमें आपके पिता की कौन सी समाजसेवी प्रवृत्ति काम कर रही थी!

निकिता जी, होता है यह. आप पहली बेटी नहीं हैं,जो पिता के बचाव में इस तरह आयी हैं-यह हमसब के परिवेश का ही हिस्सा है. ऐसा कई बार हुआ है-बचाव में परिवार की महिलाएं उतरी हैं. वैसे अपने पिता के हथकड़ी में जाते हुए आत्मविश्वास से भरे मुसकान वाली तस्वीर को भी डिकोड करियेगा, जैसे अप और तस्वीरों को डिकोड के लिए पेश कर रही हैं. सोचियेगा गलत ढंग से इतने जघन्य आरोप में फंसाया जा रहा व्यक्ति क्या इसी मनोभाव में होता है!

 तस्वीरें और बयान के हिस्से www.dpillar.com से साभार 

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30 जुलाई को देशव्यापी प्रतिरोध की पूरी रपट: मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार के खिलाफ विरोध

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सुशील मानव 

सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों की आवाज रंग ला रही है. मुजफ्फरपुर बालिका गृह रेपकांड की लीपापोती में लगी सरकार हाईकोर्ट के आदेश के पहले सीबीआई जाँच का आदेश दे चुकी है और अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. 30 जुलाई को  राइड फॉर जेंडर फ्रीडम, स्त्रीकाल, एनएफआईडवल्यू, ऐपवा, टेढ़ी उँगली, के संयुक्त आह्वान पर देश के कई शहरों, कस्बों, गाँव-गली, स्कूलों में लोग सड़क पर उतरे। उस दिन बच्चियों की आवाज पहली पर देशव्यापी हुई और आज वाम-दलों एवं विपक्ष का बिहार बंद सफल है. 30 जुलाई के प्रदर्शन की समग्र रिपोर्ट लिखी है सुशील मानव ने: 

30 जुलाई से लगातार चल रहे प्रदर्शनों का एक  साझा मकसद है अनाथ बच्चियों को न्याय दिलाना। सीबीआई जाँच के दायरे में बिहार के समस्त बालिका गृहों को लाना। जांच पर हाई कोर्ट की निगरानी, साथ-साथ एक भी अपराधी सजा पाने से बचने न पाए यह सुनिश्चित करने हेतु न्यायिक सक्रियता से लेकर पब्लिक विजिलेंट सिस्टम को इवॉल्व करना। साथ ही नीतीश सरकार की जिम्मेदारी सुनिश्चित करना। संगठनों ने नीतीश कुमार का इस्तीफा भी माँगा है.

बिहार भवन, नई दिल्ली 

मुजफ्फरपुर कांड के विरोध में दिल्ली स्थितबिहार भवन के बाहर धरना प्रदर्शन करते हुए बिकी हुई सरकार को जगाने का सम्मिलित प्रयास किया। जहाँ पर केंद्र सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए भारी संख्या में पुलिस व अर्द्धसैन्य बल तैनात थे, बैरीकेडिंग की गयी थी. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने वहां तीन घंटे तक नारेबाजी की, अपनी बातें रखीं. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह महिलाओं के खिलाफ राज्य संरक्षित यौन हिंसा का एक उदाहरण है। राज्य में 14 अन्य शेलटर होम में इसी तरह के शोषण पहले ही टीआईएसएस के शोधकर्ताओं द्वारा खोजे जा चुके हैं। लेकिन पटना के उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी उनके खिलाफ कार्रवाई की गति बहुत धीमी थी। ऐसी खबरें हैं कि इन शेलटर होम का प्रबंधन और प्रशासन राजनीतिक प्रतिष्ठानों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग की।
बिहार भवन, नई दिल्ली पर प्रदर्शन में आरजेडी सांसद मनोज झा 

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए एनएफआईडब्ल्यू कीमहासचिव एनी राजा ने कहा कि "महिलाओं को 50% आरक्षण देना, लड़कियों के लिए छात्रवृति वितरित करना अलग बात है लेकिन  सरकार द्वारा ऐसे  क्रूर अपराधों को शेलटर होम्स में समर्थन देना खतरनाक है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  जैसे नारों पर करोड़ों पैसे खर्च करना एक बात है और शेलटर होम  की लड़कियों पर ऐसे क्रूर यौन अपराधों को समर्थन  कुछ भी नहीं बल्कि सामंती, पितृसत्तात्मक और मनुवादी मानसिकता का परिणाम है। जब तक नीतीश कुमार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, तब तक जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती है। उन्हें तुरत हटना चाहिए । "

बिहार भवन, नई दिल्ली 


राइड फॉर जेंडर फ्रीडम के राकेश सिंह ने कहा कि "  शेल्टर होम  का प्रबंधन और प्रशासन राजनीतिक रूप से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, यही कारण है कि उन्हें कोई डर नहीं है और वह  शेल्टर होम के कैदियों के साथ संगठित यौन बर्बरता का प्रबंधन कर सकता है। सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ राजनेताओं के नाम पहले ही जुड़ हो चुके हैं, इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तुरंत इस्तीफा देना होगा। अन्यथा आरोपी के खिलाफ कोई पूछताछ आईवाश होगी। "ऐपवा की प्रतिनिधि सुचेता डी ने भी इस घटना पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा, 'जब तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस्तीफा नहीं देंगे तब तक सीबीआई जांच ढंग से नहीं होगी।'

रायपुर 

आरजेडी संसद के प्रोफेसर मनोज झा औरजयप्रकाश यादव भी प्रदर्शनकारियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने आए। प्रो। मनोज झा ने कहा कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में जो भी हुआ है वह जघन्य और बर्बर है। उनके पार्टी के व्यक्तियों के नाम मामले में आने के बाद मुख्यमंत्री कैसे अपने कार्यालय में रह सकते हैं। नीतीश कुमार तुरंत जाना चाहिए। "घटना पर बोलते हुए प्रो रतन लाल ने कहा कि मामले मेंमुख्य आरोपी 'हेवीवेट'है और उन्हें राज्य मशीनरी का पूर्ण समर्थन है। इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए अन्यथा मुजफ्फरपुर आश्रय घर के कैदियों के लिए न्याय नहीं होगा। घटना के विरोध में पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर भी बिहार भवन आए थे।

रायपुर 


मुज़फ़्फ़रपुर बालिकागृह यौनशोषण मामले में छत्तीसगढ़, रायपुर के मरीन ड्राइव में विरोध प्रदर्शन हुआ। इसमें मूक-बघिर लोगो ने भी भागीदारी की। जिसमें राजेश और उनके साथियों ने साइन लैंग्वेज में अपनी बात रखते हुए त्वरित न्याय की माँग की। प्रदर्शन कर रहे लोगो ने माँग की कि ऐसी घटनाएं देश को बदनाम कर रही हैं अतः आरोपियों को जल्द से जल्द सजा दी जाए।
चित्रकूट 

वहीं चित्रकूट के जिला मुख्यालय में दख़ल सांस्कृतिक मंचके तत्वाधान में विरोध मार्च निकाला गया। और बाद में पटेल चौक में बैठक करके समाजसेवी प्रदर्शनकारियों ने अपनी बात रखी। बैठक में कहा गया कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा सिर्फ धोखा है। सरकार की नाक के नीचे बालगृह में इतना बड़ा अपराध हो तो किस तरह से विश्वास किया जाए कि सरकारी तंत्र का हाथ नहीं है।

पटना 

मुजफ्फरपुर यौनशोषण के विरोध में बिहार की राजधानी पटना में राष्ट्रीय प्रतिवाद के तहत ऐपवा सहित कई महिला संगठनों व छात्र संगठनों ने मिलकर पटना विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से कारगिल चौक तक आक्रोश मार्च निकाला गया। TISS की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की माँग की। वहीं कार्यक्रम में शामिल महिला राजनेताओं ने नीतीश कुमार से अपनी जिम्मेदारी न निभा पाने का आरोप लगाकर इस्तीफे की माँग की। साथ ही  2 अगस्त के ‘बिहार बंद’ को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने का आह्वान किया।

जयपुर 

जयपुर राजस्थान में शहीद स्मारक जयपुर पर NFIW, PUCL, AIPWA, AIDWA, AISF, JLS आदि संगठनों ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह में हुए बर्बरता का विरोध जताया और बिहार हाई कमिश्नर को ज्ञापन सौंपा।
कुल्लू  में जिलाधिकारी को ज्ञापन सौपते प्रदर्शनकारी 


विरोध में विभिन्न संगठनों ने शीरोजहैंगआउट, लखनऊ में कार्यक्रम आयोजित किया। और बालिकागृहों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करवाने के लिए गवर्नर से हस्तक्षेप की माँग की। साथ ही पूरे बिहार के बालिकागृहों की सीबीआई जाँच की भी मांग की। गीता प्रभा ने कहा कि यूपी सरकार भी प्रदेश के सभी बालिकागृहों की सोशल ऑडिट करवाए।

गोरखपुर में प्रदर्शन 
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मुसलाधार बारिश के बीच गोरखपुर में
पूर्वांचल सेना, पूर्वांचल नियुद्ध अकादमी, दिशा छात्र संगठन, लालदेव ताइक्वांडो अकादमी, मेरा रंग, स्त्री मुक्ति लीग, मूल निवासी मजदूर संघ आदि कई संगठनों ने अपने बैनर तले नगर निगम स्थित रानी लक्ष्मीबाई पार्क में धरना देकर विरोध प्रदर्शन किया। शालिनी श्रीनेट और धीरेंद्र प्रताप की अगुवाई में बड़ी संख्या में आमजन, छात्रों, पत्रकारों और सोशल एक्टीविस्ट की मौजूदगी में विरोध मे नारे लगाए और उन बच्चियों को न्याय दिलाने की मांग करते हुए नीतीश सरकार पर बालिकागृह के बलात्कारियों को संरक्षण देकर मामले की लीपापोती करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके सत्ता में रहते निष्पक्ष जाँच संभव ही नहीं है अतः नीतीश सरकार इस्तीफा दे।
हरियाणा में प्रदर्शन 

जबकि हरियाणा के रोहतक मानसरोवर पार्क में 1अगस्त को विरोध प्रदर्शन किया गया। विरोध प्रदर्शन में जनवादी महिला समिति, HIMMAT, छात्र एकता मंच, सप्तरंग, भारत ज्ञान विज्ञान समिति हरियाणा, ज्ञान-विज्ञान समिति, दिशा छात्र संगठन, एसएफआई आदि संगठनों के सदस्यों के अलावा समाज के अन्य प्रबुद्धजन भी शामिल हुए।विरोध मार्च के बाद डी सी रोहतक के जरिए बिहार के राज्यपाल को एक मेमोरैंडम सौंपा गया। जिसे विरोध मार्च की समाप्ति पर अपने दफ्तर से करीब डेढ़ किलोमीटर चलकर खुद एसडीएम रिसीव करने आये।
कुल्लू 


कुल्लू हिमाचल प्रदेशमें मुजफ्फरपुर गर्ल्स शेल्टर होम कांड का विरोध करते नारी अधिकार मंच के बैनर तले तमाम महिलाओं ने एकत्रहोकर विरोध प्रदर्शन करते हुए रैली निकाली और कुल्लू के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को मेमोरैंडम सौंपा।
वाराणसी 

प्रधानमंत्री मोदी के ससंदीय क्षेत्र वाराणसी में मुजफ्फरपुर की बेटियों के लिए न्याय की मांग को लेकर बनारस के छात्रों और समाज के आमजनों द्वारा कचहरी और बीएचयू गेट (लंका) पर विरोध प्रदर्शन किया गया। साथ ही साझासंस्कृति मंच की तरफ से भी एक विरोध मार्च निकाला गया और जिलाधिकारी वाराणसी को ज्ञापन सौंपा गया। वाराणसी के हरपुर गाँव में भी लोगों ने मुजफ्फरपुर कांड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। बता दूँ कि हरपुर गाँव को प्रधानमंत्री मोदी ने गोद लिया हुआ है।
प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिया गया गाँव हरपुर 

हरियाणा के करनाल में ललिता राणा की अगुवाई में और हिसार में  सुमन जांगरा की अगुवाई में सैंकड़ों स्त्रियों लड़कियों ने हाथ में पोस्टर बैनर और मोमबत्तियाँ लेकर कैंडल मार्च निकाली। साथ ही बिहार और केंद्र सरकार की महिलाविरोधी रवैये की कड़ी निंदा भी की।
अल्मोड़ा 

उत्तराखंड के भवाली नैनीताल में सुनीता जोशीकी अगुवाई में 'एनडीए सरकार होश में आओ, 'नीतीश कुमार इस्तीफा दो'के नारे लगाती हुई सड़कों पर उतर कर सरकार की के प्रति  गुस्सा इजहार किया गया। वहीं अलमोड़ा शहर में शोभना जोशी की अगुवाई में समाज के तमाम वर्गों व क्षेत्रों के लोगो ने एकजुट होकर मुजफ्फरपुर कांड के प्रति अपना आक्रोष व्यक्त किया। हाथों में पोस्टर लेकर न्याय के लिए नारे लगाते हुए रैलियाँ निकाली गईं। इसके अलावा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी लोगो ने विरोध मार्च निकाला।

लखनऊ

बुलंदशहरमें कई सामाजिक संगठनों ने संयुक्त रूप से मुजफ्फरपुर बच्चियों से हुए दुराचार के खिलाफ़ देशव्यापी विरोध की कड़ी में बुलंदशहर के जिलाधिकारी कार्यालय के गेट पर विरोध प्रदर्शन करके मुजफ्फरपुर की पीड़िताओं के लिए न्याय की माँग की और बुलंदशहर के जिलाधिकारी महोदय को ज्ञापन दिया।

इलाहबाद 


इलाहाबाद में सुभाष चौराहा सिविल लाइन मेंसाहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी, राजनीतिक लोग व आम जनों ने नागरिक मंच के बैनर तले एकजुट होकर मुजफ्फरपुर की जघन्य घटना की कड़ी निंदा करते हुए धरना प्रदर्शन किया। और एकमत हो बिहार समेत देश के समस्त बालिका गृहों की सीबीआई जाँच और सोशल ऑडिट की माँग की।
भागलपुर 


बिहार के भागलपुर में विभिन्न संगठनोंद्वारा घंटाघर चौक पर साझा प्रतिवाद का प्रदर्शन व सभा का आयोजन किया गया। साथ ही जनकल्याण मंत्री मंजू वर्मा को कटघरे में खड़ा कर उनके पति चंद्रेश्वर वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की माँग की गई। सभा में लोगो ने कहा आज देश में गाय सुरक्षित है पर लड़कियाँ और औरते सुरक्षित नहीं हैं। वहीं भागलपुर के लालूचकनाथ नगर कस्बें में समवेत व बालसाथी के बैनर तले बच्चियों के प्रति बढ़ती बर्बरता के विरुद्ध प्रतिवाद सभा का आयोजन किया गया। जिसमें तमाम लोगो की भागीदारी की।

रांची 


झारखंड की राजधानी राँची में सिविलसोसायटी की ओर से यौन शोषण मामले में विरोध प्रदर्शन करके न्याय की मांग की गई। और पुरलिया रोड राँची से फिरायालल तक मानव चैन बनाकर विरोध प्रदर्शन किया गया।

बक्सर में एआईएसएफ  के बैनर तले सैंकड़ों छात्र-छात्राओं और समाजके अन्य तबके के लोगो ने एकजु होकर बालिका गृहों में अनाथ बचिच्यों पर हो रहे बर्बरता के खिलाफ अपने आक्रोश का प्रदर्शन किया।

बिहार के खगड़िया शहर में छात्र-छात्राओं नेऑल इंडिया स्टूडेंट फाउंडेशन के बैनर तले एकजुट होकर सरकार द्वारा बलात्कारियों को संरक्षण देने का प्रतिवाद करते हुए विरोध मार्च निकाला।
नोएडा 

नोएडा में हाथों में तख्तियां लेकर नारे लगाते हुएछोटी-छोटी लड़कियां सड़कों पर उतरीं और बालिकागृह में हुए रेप के खिला फअपना विरोध जताया। बच्चियों के साथ तमाम सामाजिक महिलाओं ने मिलकर नोएडा के खोड़ा गाँव से लेकर बारह-बाइस तक विरोध रैली निकाली। रैली का संचालन डा अमृता और शैल माथुर ने किया।
जमुई 

जमुई बिहार में कचहरी चौक पर मुजफ्फरपुरबालिकागृह में बच्चियों के साथ बर्बरता के विरोध में देशव्यापी प्रतिरोध कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जहाँ सबने एक स्वर में इस जघन्य कांड की निंदा करते हुए समूचे बिहार के बालिकागृहों की स्थिति पर चिंता जताई। साथ ही लोगो ने बिहार और केंद्र की सरकारों को निशाने पर रखते हुए उनके बेटी बचाओ नारे पर प्रश्न उठाये।
हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा 

वर्धा महाराष्ट्र में 30 जुलाई 2018 को, देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के क्रम में हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों का आक्रोश दिखा। पीड़ित अनाथ बालिकाओं के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग सभी ने एक स्वर में की ।डॉ. मुकेश कुमार ने घटना के राजनीतिक पक्ष पर बात करते हुए आरोपियों की राजनीतिक पहुँच को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय के जज की देखरेख में सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की। स्त्री अध्ययन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अवंतिका शुक्ला ने देश के समस्त बालिका आश्रय गृहों की निष्पक्ष ऑडिट कराए जाने की मांग की।



वहीं बिहार के नवादा शहर में वीमेंस नेटवर्क और अंबेडकर संघर्ष मोर्चा के साझा बैनर तलेअंबेडकर भवन में तमाममहिलाओं और पुरुषों ने बढ़-चढ़कर विरोध प्रदर्शन में भागीदारी निभाई।महिला प्रदर्शनकारियों ने बलात्कारियों को फाँसी देने की माँग करते हुए सरकार की निर्ल्ज्जता और गैरजिम्मेदाराना रवैये को धिक्कारा। विरोध कार्यक्रम में नवादा के बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने भी भाग लेकर अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाहन लिया।
आज़मगढ़


आजमगढ़ यूपी में झमाझम बारिश के बीचनारी शक्ति संस्थान आजमगढ़ के बैनर तले भारी तादात में महिलाओं ने गृहपूर्ति के समीप रोडवेज पर एकजुट होकर पीड़ित अनाथ बच्चियों को अविलंब न्याय दिये जाने की माँग करते हुए जोरदार विरोध प्रदर्शन दर्ज करवाया। महिलाओं ने जिलाधिकारी आजमगढ़ को सौंपने के लिए मेमोरेंडम भी तैयार किया था लेकिन प्राकृतिक व्यवधान के चलते वो पूरा न हो सका।

देशव्यापी आंदोलन की कड़ी में कटिहार में 30जुलाई को सदर अस्पताल कटिहार स्थित संघ भवन में बिहार बाल आज मंच, इप्टा, बाल साथी के संयुक्त तत्वाधान में बैठक सभा आयजित की गई। बैठक में मुजफ्फरपुर घटना की कड़ी भर्त्सना करते हुए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट का सार्वजनिक करने की माँग की गई।

 चिकमंगलूर, मंदसौर, मुदैरे, कालीकट, चेन्नई, औरैया, जौनपुर, गोधरा, ग़ाज़ियाबाद, समेत देश के कई अन्य स्थानों पर भी विरोध प्रदर्शन दर्ज करवाकर बच्चियों के प्रति न्याय की माँग और अपराधियों को फाँसी की माँग करके समाज ने अपनी मानवीय संवेदना को अभिव्यक्त किया।

प्रेस कवरेज 

द हिन्दू , टाइम्स ऑफ़ इंडिया द  सिटीजन , वन इंडिया, द टेलीग्राफ ,प्रभात खबर  आदि 

दैनिक जागरण गोरखपुर 


अमर उजाला गोरखपुर 






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बिहार बंद तस्वीरों में: राकेश रंजन की कविता के साथ

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स्त्रीकाल डेस्क 

जनाक्रोश रंग ला रहा है. बिहार सरकार जनता की नजरों में कटघरे में है तो सुप्रीमकोर्ट इस मामले में स्वतः-संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेज चुका है. आज वामदलों और विपक्ष के आह्वान पर बिहार बंद रहा. आइये बिहार बंद देखते हैं तस्वीरों में राकेश रंजन की एक मार्मिक कविता पढ़ते हुए.

पटना 




शीर्षकहीन
राकेश रंजन 

मुझे आपका खेत
नहीं जोतना मालिक
मेरा हल
खून से सन जाता है
उसमें बार-बार
फँसती हैं लाशें

फूल-सी बच्चियों की लाशें
आपके खेत में

दफ्न हैं मालिक

मार्च में शामिल महिलाऐं 


दफ्न हैं
दबाई गई चीखें
घोंटी गई साँसें
फटी हुई आँखें
कुचले हुए अंग

उनके सीने से चिपकी हुई जोंकें
मेरा खून सोखती हैं मालिक
उनकी देह की मिट्टी
मेरी रोटी में

किचकिचाती है

जहानाबाद में ट्रेन रोको 

उनकी जाँघों का रक्त
मेरी आँखों से बहता है मालिक

मुझे आपका खेत
नहीं जोतना

मुझे तुम्हारी कब्र
खोदनी है

हत्यारे!

दरभंगा में ट्रेन रोको 

नालंदा 


पुलिस से झड़प

आरा-पटना सड़क मार्ग 


राकेश रंजन चर्चित कवि हैं. 'अभी-अभी जन्मा है कवि'सहित कई काव्य-संग्रह प्रकाशित.


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मुजफ्फरपुर की बेटियों के लिए राजद का 4 अगस्त को कैंडल मार्च

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स्त्रीकाल डेस्क 

राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार के मुजफ्फरपुरके बालिका-आश्रय-गृह में बच्चियों से बलात्कार को देशव्यापी मुद्ददा बनाने का मन बना लिया है. पार्टी इस मुद्दे पर नीतीश सरकार को घेरने की तैयारी में है. इसने बिहार के दोनो ही सदनों में इस मुद्दे को उठाया है. विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी खुद मुजफ्फरपुर का दौरा कर सरकार को घेर चुके हैं. 30 जुलाई को स्त्रीकाल, राइड फॉर जेंडर, एनएफआईडवल्यू, ऐपवा और टेढ़ी उंगली के संयुक्त कॉल को भी तेजस्वी यादव ने खुला समर्थन देकर बिहार भवन में प्रदर्शन के दौरान अपनी पार्टी के दो नेताओं को भेजा था.



राष्ट्रीय जनता दल ने मुजफ्फरपुर की बेटियों के लिए अपने नए कदम के तहत 4 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर शाम 5.30 बजे कैंडल मार्च का आह्वान किया है, जिसमें तेजस्वी यादव खुद शामिल होंगे. खबर है कि कैंडल मार्च में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी शामिल होंगे.

क्या है मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार का यह मामला और उसके कैसे इस मुद्दे पर पूरा देश प्रतिरोध कर रहा है, जानने के लिए नीचे ख़बरों का लिंक देखें. 

बिहार में बच्चियों के यौनशोषण के मामले का सच क्या बाहर आ पायेगा?

मंत्री के पति का उछला नाम तो हाई कोर्ट में सरेंडर बिहार सरकार: सीबीआई जांच का किया आदेश

बिहार के 14 संस्थानों में बच्चों का यौन शोषण: रिपोर्ट

बच्चों के यौन उत्पीड़न मामले को दबाने, साक्ष्यों को नष्ट करने की बहुत कोशिश हुई: एडवोकेट अलका वर्मा

'सनातन'कहाँ खड़ा है मुजफ्फरपुर में: हमेशा की तरह न्याय का उसका पक्ष मर्दवादी है, स्त्रियों के खिलाफ

पैसे की हवस विरासत में मिली थी हंटर वाले अंकल 'ब्रजेश ठाकुर'को !

ब्रजेश ठाकुर की बेटी के नाम एक पत्र: क्यों लचर हैं पिता के बचाव के तर्क

30 जुलाई को देशव्यापी प्रतिरोध की पूरी रपट: मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार के खिलाफ विरोध

बिहार बंद तस्वीरों में: राकेश रंजन की कविता के साथ

गायब है इस मामले की अहम कड़ी, जिसके पकडे जाने पर फंस सकते हैं शासन के शीर्ष तक लोग

बच्चियों से बलात्कार के सूत्रधार ब्रजेश ठाकुर की एक ख़ास साथी रही मधु कुमारी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. वह 2003 से ही ठाकुर की खास राजदार रही है.  मधु मुजफ्फरपुर और बेतिया में सेक्स वर्करों के लिए पुनर्वास योजना चलाती थी. पुलिस सूत्रों के अनुसार वह सेक्स वर्करों को पटना के ब्यूटी पॉर्लरों में भेजती थी. इसी उदघाटन के साथ पटना के सिंहासन तक जांच की आंच पहुँच सकती है, हालांकि पहले से ही समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति का नाम इस मामले से जुड़ चुका है.

मधु कुमारी 

मधु ने 2003 से शुरू किया था अभियान
साल 2003 में मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया में पुनर्वास के लिए तत्कालीन एसपी ने अभियान शुरू किया था,उसी समय मधु ने कुछ महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए 'वामा शक्ति वाहिनी'नाम से संस्था की शुरुआत की. बिहार में किसी संस्था द्वारा  रेड लाइट एरिया की महिलाओं के लिए पुनर्वास का यह पहला संगठन बताया जाता है. खबरों के अनुसार मधु कुमारी और ब्रजेश ने मिलकर 50 महिलाओं का एक गैंग तैयार किया और बिहार सरकार से कई योजनाओं में फंड लिए. वर्तमान में मधु की वामा शक्ति वाहिनी बिहार राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा सेक्स वर्करों को एचआईवी से बचाने के लिए मुजफ्फरपुर और बेतिया में योजनाएं चला रही है. य मुजफ्फरपुर में ही ब्रजेश ठाकुर की सेवा संकल्प समिति एड्स कंट्रोल सोसाइटी की दो योजनाएं चला रहा है.

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देर से ही सही जागी मुज़फ्फरपुर की सिविल सोसायटी भी

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1 अगस्त को हुआ कैंडल-मार्च : बालिका-कांड और घन गरज-तर्पण                                               
 वीरेन नंदा

जिन्हें सबसे पहले बोलना था, आगे आना था, वे देर से आये, लेकिन दरुस्त आये. मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार  के मामले में शहर की सिविल सोसायटी की चुप्पी देश भर को चुभ रही थी, जिसे तोडी "साहित्य कला, संस्कृति मंच"ने साहित्यकार वीरेन नंदा की रिपोर्ट.  वीरेन नंदा अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान के संस्थापक है.


मुजफ्फरपुर में मार्च 

बालिका-कांड विरोध-मार्च का समय ज्यों-ज्योंनिकट आता जा रहा था, त्यों-त्यों आकाश में 'उमड़-घुमड़ कर पागल बादल'मंडराने लगा !  निर्धारित समय पांच बजे के लिए घर से ब्रह्मानंद ठाकुर और कुंदन कुमार के संग एमडीडीएम कॉलेज के गेट पर पहुँचने निकला तो घनघोर घटा की बादली छा गई। गेट के समीप पहुंचते-पहुंचते बरखा की टपर-टिपीर बूंदें स्वागत करने लगी। धीरे-धीरे लोग जुटने लगे तो टपर-टुपुर भी हौले-हौले बढ़ कर हमें डराने की कोशिश करने लगा। कैंडल-मार्च हो तो कैसे हो ? यह मंथन चल ही रहा था कि कॉलेज का गेट खुला और बारिश को धता करती, - बारिश की रिमझिम फुहार और बिजलियों के नर्तन पर करतल ध्वनि करती सैंकड़ों की संख्या में लड़कियां,हाथों में तख्तियाँ लिए गेट से निकल हमलोगों के साथ हो ली। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे बरखा भी बढ़ती रही ! कदम तेज होती रही, झमाझम झमझमाता रहा ! फिर भी लड़कियाँ डरी नहीं। न भींगने से, न घन-गर्जन-तर्जन से ! जुलूस बढ़ रहा था, बारिश बढ़ रही थी ! न लड़कियां रुकने को तैयार थी, न बरखा थमने को ! इधर लड़कियों के गगन भेदी नारें गूंज रहे थे तो उधर संगत करती - धरा-भेदी घन-गर्जना ! यह धरा - गगन की युगलबंदी चलती रही और चलता रहा कारवां ! सड़क के दोनों तरफ सजी दुकानों में भींगने से बचने खड़े मुसाफिर कौतुहलता से सब देख-सुन रहे थे। उत्साह और उमंगों की पेंग भरती ये लड़कियां पानी टँकी, हरि सभा, छोटी कल्याणी होते हुए कल्याणी चौक आकर रुकी तब भी न थमी बरखा। लड़कियों की गर्जना के साथ घन-गर्जन भी तर्पण करने व्याकुल !  कल्याणी पर रुक कर लड़कियों ने रास्ते भर दागे नारों का पुनः तर्पण किया। लड़कियों के हाथों में तख्ती थी और नारों में आग -- "यौन उत्पीड़न कांड के आरोपी ब्रजेश ठाकुर को फांसी दो। बालिका गृह को यातना-गृह बनाना बन्द करो। कांड से जुड़े अपराधी अधिकारी को जल्द से जल्द सजा दो......."।

शेल्टर होम में पुलिस खुदाई करती हुई 


लड़कियों का नेतृत्व कर रही डॉ.पूनम सिंह माइक थाम गरजी- "हस्तिनापुर के महारथियों ! हिम्मत है तो छुओ हमें ! हम द्रौपदी की करुण पुकार नहीं, समुद्र का उफनता हाहाकार हैं। फूल नहीं अंगार हैं।"इसके बाद डॉ.भारती सिन्हा, डॉ.अंजना वर्मा, मनोज कुमार वर्मा, रमेश ऋतंभर आदि ने इस कांड के विरोध में अपना वक्तव्य देते हुए निंदा की और शहर को सोंचने पर बाध्य किया। एमडीडीएम की छात्रा-नेत्री सोनाली कल्याणी चौक पर दुकानदारों और दुकान पर भींगने से बचने वाले खड़े राहगीरों को चुनौती देते बोली- ''आप लोग वहां क्यों खड़े हैं ? यहां आइए और हमलोगों के साथ भींगिये ! बारिश में भींगते हुए हम लड़कियां उस घिनौने कांड के विरूद्ध आवाज उठाने सड़कों पर निकली हैं और आप चुप खड़े हैं ! आइए, सड़कों पर उतारिए। आप के घरों की मां, बहन बेटियों की इज्जत जब उतारी जाएगी तब क्या आप उतरेंगे ? हम आधी आबादी सड़क पर उतरे हैं तो आप को भी आना चाहिए। ऐसा कृत्य दुबारा न हो, कोई दुबारा हिम्मत न कर सके इसके लिए तो उतरे सड़कों पर।''इसके बाद एमडीडीएम की ही छात्रा स्वर्णिम चौहान, आकृति वर्मा और चेतना आनंद ने भी अपनी बात जोशो-खरोश के साथ रखी।

 यह मार्च "साहित्य कला, संस्कृति मंच"के तत्वावधान मेंआयोजित था जिसमें शहर के आम नागरिक, साहित्यकार, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, किसान, अध्यापक, प्राध्यापक, कलाकार, रंगकर्मी एवं कई संगठनों के लोग शामिल हुए, जिनमें लक्षणदेव प्रसाद सिंह, पूर्व-कुलपति रविन्द्र कुमार रवि, शशिकांत झा, ब्रह्मानंद ठाकुर, डॉ.मंजरी वर्मा, टी.पी.सिंह, रमेश पंकज, अजय कुमार, वीरेन नंदा, डॉ. नीलिमा झा, डॉ.अमिता शर्मा, नदीम खान, डॉ.पायोली, डॉ.तूलिका सिंह, डॉ.रेखा श्रीवास्तव, पंखुरी सिन्हा, सोनू सरकार, बैजू कुमार, कुंदन कुमार, संजीत किशोर, अर्जुन कुमार, विजय कुमार, दीपा वर्मा आदि सहित एमडीडीएम की सैंकड़ों छात्राओं ने न केवल बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि मेघ में भींगते हुए अपनी बात कहते-कहते अवाम को भिंगोया भी और कुछ सवाल भी खड़े किए कि "सांस्कृतिक नगरी कही जाने वाली इस नगरी को, जो अपनी उपलब्धियों की फेहरिश्त से देश के माथे पर सूर्य की तरह चमक रहा था, उस पर एक अदने से कुकर्मी ने कालिख पोत दी। उसे मिटाने की यह हमारी पहल है। और अपने शहर से यह कालिख मिटानी है तो यह आप-हम-उन-उस-सबों की पहल के बिना नहीं मिटेगी। तो आएं, हमने पहल की है तो आप भी करें। दो कदम हमने बढ़ाया है तो दो कदम आप भी बढ़ाएं और इस कालिख को मिटाने संग-साथ कदम-ताल करें।"

 सभा समाप्ति के बाद पुनः यह कैंडल-मार्च उसी रास्ते हाथों में तख्तियाँ थामे नारों का उदघोष करते वापस लौटा। यह कैंडल-मार्च शहर में अब तक के हुए सबसे शानदार मार्च में गिना जायेगा क्योंकि इसमें वारिश के कारण मोमबत्तियां तो जल नहीं रही थी लेकिन उन नन्हीं-   नन्हीं लड़कियों के भीतर आग सुलग रही थी जो मोमबत्ती की रौशनी से ज्यादा तेज थी।

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बिहार के दूसरे शेल्टर से भी आ रही हैं बुरी खबरें: सीतामढ़ी के बालगृह में मिली अनियमितता

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सुशील मानव 

हैवानियत की आग सिर्फ मुज़फ्फ़रपुर में हीं नहीं लगी है।इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक़ उत्तरी बिहार में मुजफ्फरपुर के पड़ोस के जिले सीतामढ़ी के एक बालगृह में अनियमितता और अपर्याप्तता देखने को मिली हैं, लेकिन विभागीय अनुशंसा के बावजूद इसके खिलाफ कोई ककार्रवाई नहीं हुई है.  वैसे TISS की रिपोर्ट के अनुसार ऐसी अनिमिततायें राज्य के 14 शेल्टर होम में हुई हैं, जिनमें से चार में यौन-शोषण के प्रकरण भी हैं. लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने यौन-शोषण के मुख्य सरगना ब्रजेश ठाकुर के एक अन्य शेल्टर होम के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है, जो मुजफ्फरपुर में ही है और खबर है कि छापे के दौरान शेल्टर होम की छत पर शराब की बोटलें और कंडोम मिले हैं. बताया जाता है कि अनुमति लेने के नाम पर इस शेल्टर होम के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में कल्याण विभाग ने दो महीने की देरी की. 

अपने संचालन के महज़ 40 दिन बाद ही इस बालगृह में 1मार्च 2017 को एक उच्च बाल संरक्षण अधिकारी ने इस शेल्टर होम में अनियमितता पाए जाने पर इसे बंद किए जाने की अनुशंसा की थी। लेकिन विभाग ने उनकी चेतावनी को दरकिनार कर दिया था।

इस साल के फरवरी में एक बालकैदी के गुम होने की रिपोर्ट हुई थी। जबकि अप्रैल महीने में एक दूसरे निवासी की थैलासीमिया के चलते मौत होने की रिपोर्ट की गई थी। ये शेल्टर होम ‘सेंटर डायरेक्ट’ नामक एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा था। इंडियन एक्सप्रेस के पास मौजूद डॉक्युमेंट में तबके एडीशनल डायरेक्टर गोपाल सरन  ने इस होम के संचालन के थोड़े दिन बाद ही इसका निरीक्षण किया था और उन्होंने निरीक्षण में पाया था कि बाल कैदियों की फाइल को प्रॉपर तरीके से मेनटेन नहीं किया गया था। उन्होंने ये भी पाया था कि शेल्टर होम में पर्याप्त स्टाफ मौजूद नहीं था।

अतिरिक्त निदेशक गोपाल सरन  ने पिछले साल 13 अप्रैलको अपना निरीक्षण रिपोर्ट सोशल वेलफेयर विभाग के डायरेक्टर सुनील कुमार को सौंपते हुए बालगृह में पर्याप्त अनियमितता पाये जाने की बुनियाद पर उसे बंद करने की अनुशंसा की थी। 

गोपाल सरन अब डिप्टी कलेक्टर और एडी-सीपीयू इनचार्ज हैं।वे इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये एक इंटरव्यू में बताते हैं कि ‘मैंने रिकमेंड किया था कि शेल्टर होम मानकों पर खरा नहीं उतरा है। वहाँ पर कई निवासियों का नाम रजिस्टर में नहीं दर्ज था और निवासीय सुविधाएं भी मानकों के अनुरूप नहीं थी। मैंने अपना काम ईमानदारी से किया। इससे पहले कि मैं उसपर कोई कार्रवाई होते हुए सुनता मुझे वहाँ के चार्ज से मुक्त कर दिया गया।‘

शेल्टरहोम की कमियाँ निकालने के बाद इस साल के जून मेंडिस्ट्रिक्ट सीपीयू का इनचार्ज बना दिये गये गोपाल सरन बताते हैं कि मैंने बच्चों को अस्वस्थ स्थितियों में रहते हुए देखा था। उनको परोसा गया खाना भी मानकों के अनुरूप नहीं था। प्रत्येक बालकैदी की पर्याप्त फाइल होनी चाहिए, जिसमें उनका बैकग्राउंड मेडिकल हिस्ट्री (जोकि वहां मेनटेन नहीं था)। इन सबके अलावा एनजीओ में पर्याप्त मात्रा में स्टॉफ भी नहीं था।मुजफ्फरपुर सेवा संकल्प बालिकागृह यौन उत्पीड़न केस के बाद बालगृह चलाने वाले एनजीओ ने सभी स्टाफ बदल दिया गए हैं।

जिला बाल संरक्षण इकाईयां (CPU)राज्य के सोशल वेलफेयर विभाग केअधीन आती हैं। विभागीय रिपोर्ट दर्शाती हैं कि सोशल वेलफेयर डायरेक्टर सुनील कुमार ने गोपाल सरन के रिपोर्ट के जवाबी कारर्वाई में उनके रिपोर्ट के विपरीत बालगृह का फिर से ताजा निरीक्षण कराने के लिए 4 अक्टूबर 2017 को सीतामढ़ी के जिलाधिकारी को पत्र लिखा। 

सोशल वेलफेयर विभाग के वर्तमान निदेशक राजकुमार ने कहा हैकि यदि जिलाधिकारी आगे किसी कारर्वाई के लिए लिखते हैं तो यथाशीघ्र ज़रूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए शेल्टरहोम को अपने कब्जे में ले लेगें यदि उनके खिलाफ़ कोई केस बनता है तो। साथ ही हम पर्याप्त निगरानी के लिए हर शेल्टरहोम में सीसीटीवी कैमरा लगवा रहे हैं।

शेल्टर होम के खिलाफ 9 फरवरी को दर्ज किए गए एफआईआर के मुताबिक एक मानसिक रूप से अस्थिर लड़का गायब है जिसे सदर अस्पताल से 8 फरवरी को शेल्टर होम में लाया गया था। जबकि रहस्यमयी पस्थिति में अप्रैल महीने में एक लड़के की मौत हो गई थी जिसका कारण थैलासीमिया दर्शाया गया है। 
मुजफ्फरपुर केस में जनहित याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार बाते हैं कि जबसे मैंने पटना हाईकोर्ट में मुजफ्फरपुर केस को लेकर पीआईएल दायर की है मुझे बिहार के और भी कई जगहों के शेल्टर होम के खिलाफ विसंगतियों की सूचनाएं मिल रही हैं। सीतामढ़ी बालगृह केस साफ साफ दिखा रहा है कि कैसे सोशल वेलफेयर विभाग खुद अपने ऑफिसरों तक की चेतावनी को दरकिनार करके बालगृहों में मिलने वाली तमाम विसंगतियों पर आँखे मूँदे बैठा रहता है।

गोपाल  सरन बताते हैं कि मुझे बच्चे के गुम होनेया बालगृह में बालक के थैलासीमिया से मरने की कोई सूचना नहीं दी गई है। मुझे एक महीने पहले ही अतिरिक्त चार्ज (जिला सीपीयू) सौंपा गया है और मैं एनजीओ की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट ढूँढ़ रहा हूँ। 

जबकि एनजीओ प्रतिनिधि की ओर से अभी कोई वक्तव्य नहीं आया है। एनजीओ के सेक्रेटरी का मोबाइल फोन स्विच ऑफ है और लैंलाइन नंबर पर कॉल करने पर कोई रिसीव नहीं कर रहा है।

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झारखण्ड के 20 सामाजिक कार्यकर्त्ताओं पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज, आलोका कुजूर का खुला ख़त

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प्रस्तुति और रिपोर्ट : राजीव सुमन 

26 जुलाई  को करीब साढ़े ग्यारह बजे झारखण्ड के खूँटी जिले के खूँटी थाना में 20 लोगो पर देशद्रोह के साथ ही अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. एफ.आई.आर. संख्या 124/2018 में 124A,121A,121 भा.द. वि. के अंतर्गत और 66A,66F,आई.टी. एक्ट के तहत धाराएं दर्ज हैं. इन पर मुख्य आरोप सोशल मीडिया में खूंटी के पत्थलगड़ी आन्दोलन में आदिवासियों की ओर से लिखना है. 20 लोगों में से एक आलोका कुजूर ने जनता के नाम एक खुला ख़त लिखा है. रिपोर्ट और प्रस्तुति: राजीव सुमन

सामाजिक कार्यकर्ताओं के पक्ष में आया विपक्ष: किया प्रेस कांफ्रेंस 


झारखण्ड में खूँटी और आसपास के क्षेत्रों में पिछले कई महीनो से पत्थलगड़ी आन्दोलन चल रहा है. सरकार लगातार इस आन्दोलन को ख़त्म करने के प्रयास कर रही है लेकिन झारखण्ड के आदिवासी अपनी संथाल परम्परा के अंतर्गत स्वयं का प्रशासन चाहते हैं. आदिवासियों के जल-जंगल और जमीन की इस लड़ाई में कई बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं संगठन अपने-अपने स्तर पर इसपर अपनी राय रखते आ रहे हैं-टीवी, समाचार पत्रों, सोशल मीडिया और अन्य के माध्यमों से. इसी आन्दोलन से सम्बद्ध नेताओं पर हाल ही में झारखण्ड की पांच लड़कियों के साथ गैंगरेप का आरोप भी लगा था. इससे पहले झारखण्ड के सांसद करिया मुंडा के आवास पर तैनात पुलिस कर्मियों को पत्थलगड़ी आन्दोलन समर्थकों द्वारा अगवा करने और बाद में छुडा लिए जाने की घटना भी सामने आई.

इसी कड़ी में अब सरकार ने 20 लोगों के ऊपर उक्त धाराओं के तहत सोशल मीडिया पर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने और उकसाने आदि का आरोप लगाते हुए देशद्रोह का मामला दर्ज किया है. आरोपों में पुलिस का कहना है 'खूँटी एवं आस-पास के क्षेत्रों में कुछ लोग यहाँ के भोले-भले एवं अधिवासी ग्रामीणों को आदिवासी महासभा एवं ए. सी. भारत सरकार कुटुंब परिवार के नाम पर बहला-फुसलाकर, धोखे में रखकर, संविधान की गलत व्याख्या कर एवं सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्र विरोधी, संविधान के विरुद्ध राष्ट्र की एकता  एवं अखण्डता को तोड़नेवाले क्रियाकलाप कर समाज में साम्प्रदायिक एवं जातिय माहौल को बिगाड़कर विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर रहे हैं.'

उक्त एफआईआर. में जो नाम पुलिस ने 1.बोलेसा बबीता कच्छप 2.सुकुमार सोरेन 3.बिरास नाज़ 4.थॉमस मुण्डा, 5.वाल्टर कन्दुलना 6.घनश्याम बिरुली, 7.धरम किशोर कुल्लू, 8.सामू टुडू  9.गुलशन टुडू, 10.मुक्ति तिर्की, 11.स्टेन स्वामी, 12.जे. विकास कोड़ा, 13.विनोद केरकेट्टा 14.आलोका कुजूर 15.विनोद कुमार, 16. थियोडोर किडो, 17.राकेश रोशन किरो, 18.अजय कंडूलाना, 19. अनुपम सुमित केरकेट्टा, 20.अन्जुग्या बिस्वा के खिलाफ इन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है. 

रिपोर्ट के मुताबिक़ इन 20 लोगों में 19लोग सामाजिक कार्यकर्ता हैं और इन उन्नीस में एकमात्र महिला आलोका कुजुर भी शामिल हैं जो स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की कई पत्र पत्रिकाओं में लेखन कर चुकी हैं. आलोका आदिवासी हैं और पेशे से लेखक, पत्रकार और कवयित्री रही हैं. इसके अतिरिक्त जिस महिला का नाम है वह स्थानीय है और सूत्रों के अनुसार आन्दोलन से सम्बद्ध रही है.

आरोपों में पुलिस का कहना है 'खूँटी एवं आस-पास के क्षेत्रों में कुछ लोग यहाँ के भोले-भले एवं अधिवासी ग्रामीणों को आदिवासी महासभा एवं ए. सी. भारत सरकार, कुटुंब परिवार के नाम पर बहला-फुसलाकर, धोखे में रखकर, संविधान की गलत व्याख्या कर एवं सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्र विरोधी, संविधान के विरुद्ध राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को तोड़नेवाले क्रियाकलाप कर समाज में साम्प्रदायिक एवं जातीय माहौल को बिगाड़कर विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर रहे हैं.'  इस बीच पूरा विपक्ष इस मामले में इन नामजद लोगों के पक्ष में खड़ा हुआ है. विपक्ष ने आज प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि 'ये सामाजिक कार्यकर्ता देशद्रोही हैं, तो हम भी इनके साथ हैं और इस तरह हम भी देशद्रोही हुए.
आलोका कुजूर दायें से दूसरी 



नामजद आलोका ने पत्थलगड़ी आन्दोलन और आदिवासियों कीजल-जंगल और जमीन की इस लड़ाई में सरकारी नजरिये, दमन से उपजे सवालों को जनता के नाम खुला पत्र लिखा है:

देशद्रोही क्यों ? 
दिनांक  
                                         
दिनांक – 3 अगस्त 2018

मेरी कलम से देश की जनता को खुला पत्र

जोहार साथियों

मैं आलोका कुजूर हूँ. जुलाई 28 और 29 तारीखके दैनिक अखबार से पता चला कि 26 जूलाई को खूंटी थाना में 20 लोगों समेत मेरे ऊपर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ है. जानकारी के अनुसार "फेसबुक के माध्यम से मैने खूंटी में पत्थलगड़ी करने वाले लोगों को उकसाया है. संविधान की गलत व्याख्या की है. फेसबुक के माध्यम से जनता को भडकाया है, वो भी गांव की वैसी जनता जो अशिक्षित है."ये आरोप सरासर गलत है. 

मैं 2008 से फेसबुक में लिखने का काम कर रही हूं,जिसमें मैं समाजिक और राजनीतिक हर व्यक्ति के काम-काज पर मूल्यांकन करती रही हूं. मैं जमीन के आंदोलनों से भी लम्बे समय से जूडी रही हूं. राज्य के कई छोटे-बडे आंदोलनों के साथ-साथ ही, भारत में महिला-आंदोलनों के साथ भी मेरा संबध रहा है.

मैं डब्लू.एस.एस. की सदस्या भी हूं. सदस्या होने के नाते  कुछ समाजिक महिलाएं और मैं  खूंटी गैंग रेप मामले की फैक्ट फाइडिंग करने गए थे. हम सभी महिलाएं महिलाओं के अधिकार के लिए लगातार संघर्षरत् रहती है. जहां भी महिलाओं के साथ इस तरह की घटनाएं हुई, हम सब लगातार प्रखरता के साथ महिलाओं के हित की मांग करते रहे हैं. इसमें गलत कहां है. दैनिक अखबार में खबर पढने के बाद पता चला कि प्रशासन के पास इतना समय होता है कि वह फेसबुक देखती है. तब, सवाल बनता है कि वो थाना में रह कर क्या काम करते हैं? अखबार के माध्यम से जानकारी मिली कि आदिवासी महासभा और ए.सी. भारत कुटूम्ब परिवार के लोगों द्वारा ग्रामीणों को संविधान की गलत व्याख्या कर बरगलाया गया है जो मेरे हिसाब से गलत है. मै जानकारी देना चाहती हूं कि महिलाओं, सर्वजन, लेखन और जमीन के लिए चले संघर्ष में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेरी उपस्थिति रही है तथा 15 से 20 सालों की पत्रकारिता में कहीं भी आदिवासी महासभा और ए.सी. भारत कुटूम्ब परिवार के साथ न तो सामाजिक तौर पर और न उनके संगठन से कोई संबध रहा है. मेरे ऊपर लगाया यह आरोप बेबुनियादी है. मेरा संबध इन संगठनों से कैसे है प्रशासन सार्वजनिक करे. इस बात पर गहराई से ध्यान देना जरूरी है कि एफआईआर में बार बार इस बात का जिक्र किया गया है की खूंटी की ग्रामीण जनता अशिक्षित है. तब यह सवाल करना जरुरी हो जाता है की क्या अशिक्षित ग्रामीण जनता फेसबूक इस्तेमाल करती है. फिर यह सवाल भी मन में आता है की सरकार तथा प्रशासन के जानने के बावजूद कि खूंटी में शिक्षा का स्तर रसातल में चला गया है फिर भी सरकार द्वारा शिक्षा के स्तर को ठीक करने के लिए आजतक कोई कदम क्यों नहीं उठाए गए. एक सवाल यह भी है की खूंटी की जनता अशिक्षित है तो फिर संविधान की व्याखाया कैसे हुई.

जब यह सारे सवाल मन में आते हैं तो यह समझ में आता है किप्रशासन हम पर झूठे आरोप के आधार पर सरकार को गुमराह करते हुए वाहवाही बटोरना चाहता है.दैनिक अखबार में छपे खबर के अनुसार हम सब सोशल मीडिया और फेसबुक में पत्थलगडी एवं संविधान के प्रावधानों की गलत व्याख्या कर लोगो में राष्ट्र विद्रोह की भावना का प्रचार-प्रसार कर रहे है. यह एफ.आई.आर की कॉपी में बार बार लिखा गया है. मुझे अच्छा लगा कि थाना भी मानता है कि कहीं व्याख्या गलत हुई है. तो, यही मौका है कि इसपर संविधान की व्याख्या सही क्या हो सकती है, पर बहस हो. एफ.आई.आर में झारखण्ड के खूंटी जिला के आदिवासी ग्रामीणों की अशिक्षित होने की बात कही है. कहीं-ना-कहीं थानेदार भी बात समझ रहे हैं कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा विभाग की पहुंच खूंटी में नहीं हो पाई है.
खूंटी में पत्थलगड़ी


झारखण्ड संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र है. यहां ग्रामसभा के अधिकारों को सुनिश्चित किये बैगर आदिवासियों की जमीन पर सरकार कोई फैसला ले नहीं पा रही है. पूरा झारखण्ड जंगल-जमीन के सवाल के साथ आंदोलन कर रहा है. लोग हर दिन सड़क पर अपनी मांग के साथ संघर्ष कर रहे है. ऐसी स्थिति में जन आंदोलन के सवालों के साथ खड़ा होना कहां से देशद्रोह है. 

मेरे कुछ सवाल हैं:

1. मैं देशद्रोही क्यों और कैसे हूँ?
2. प्रशासन यह बताए कि देशद्रोह को मापने का उसका पैमाना क्या है और संविधान का पैमाना क्या है?
3. खूंटी में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या है, क्या इस सवाल को उठाना देशद्रोह है ?
4. डायन हत्या के नाम पर लाखों महिलाओं की हत्या हो गई है, क्या इस सवाल को उठाना देशद्रोह है ?
5. वन अधिकार कानून के अंर्तगत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की गई है, क्या इस सवाल को उठाना देशद्रोह है ?
6.जमीन के सवाल की समस्या का समाधान क्यों नहीं निकाले जा रहे हैं, क्या इस सवाल को उठाना देशद्रोह है ?

28 तारीख को अखबार के माध्यम से पता चला कि  20 लोगों पर देशद्रोह संबधित मामला दर्ज हुआ है. वह भी खूंटी थाना क्षेत्र के अन्तर्गत, जहां 2017 से पत्थलगड़ी आन्दोलन चल रहा है. पत्थलगड़ी मुण्डा समाज की परम्परा में शामिल रहा है. सारंडा का यह इलाका ऐशिया का सबसे बड़ा वनक्षेत्र का इलाका है. यहाँ मुण्डा समाज अपनी परम्परागत व्यवस्था को कायम कर रहे हैं. उन्ही इलाकों में लगातार देशद्रोही बनाते मुण्डा समाज संविधान और जमीन के सवाल के साथ तैनात है. घने वन क्षेत्र जहां रोटी कपडा और मकान जैसी सुविधा खूद से सवाल पूछती है वहीं श्रम अधारित व्यवस्था तमाम चुनौतियों के साथ अपनी पहचान की लड़ाई लडने के लिए क्रमबंद्ध तरीके से खड़ी है. इस इलाके में कोयलकारों का आंदोलन और जमीन बचाने के आंदोलन ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. यहाँ के किसान मजदूर की आजीविका और जीवन का मूल आधार जमीन ही रहा है. कागज के टूकडे में जमीन का हिस्सा और जमीन में मानव का हिस्सा, विकास में खेती का हिस्सा और विकास के लिए जमीन का हिस्सा, के इस बार-बार की हिस्सेदारी के बीच किसानों के पास भूख की समस्या आ खडी होती जा रही है, वहीं पूंजी आधारित व्यवस्था उन्हें किसान से मजदूर और मजदूर से मौत के सफर की तरफ ले जा रहे हैं. बदलते दौर में सरकार की योजनाओं में कोई बदलाव नहीं आया. इंदिरा आवास आज भी एक ही लाख में बनाने की योजना है. किसानों के खेत में पानी नहीं है. ऐसे कई  सवाल है जो झारखंड की हर जनता सरकार से पूछना चाहती है.
आदिवासी चिंतक मुक्ति तिर्की 


मैं- पत्रकार, लेखिका, शोधकर्ता, महिला चिंतक और कवयित्री हूं.आदिवासी और महिला-मुद्दो से जुड़े जल-जंगल-जमीन और जन आंदोलनों पर लम्बे समय से शोधपरक लेख लिखती रही हूं. मेरे लेख भारत के लगभग हर राज्य के समाचार पत्र में ही नहीं बल्कि विश्व के कई मैगजीन में छप चुके हैं. भारत की महिला आंदोलन से जूडी हूई हूँ. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर महिलाओं के लेखनी पर सम्मान प्राप्त है मुझे. खूद के मेहनत और महिला हित के लिए शोध किया है जो पांडूलिपि के रूप मे है.

पत्थर खदान में औरत, महिला बीडी वर्कर, पंचायती राज,डायन हत्या आदि पर शोधपरक  लेखन कर चुकी हूं. प्रथम सामुहिक किताब झारखंड इन्सायक्लोपिडीया, शोधपरक किताब झारखंड की श्रमिक महिला, कविताओं की सामुहिक प्रथम किताब- 'कलम को तीर होने दो'आदि में मैं उपस्थित हूँ, देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं मे लगातार मेरी कविताओं का प्रकाशन आदि होता रहता है. मुझे लेखनी के लिए अनेक, अवार्ड, सम्मान और फेलोशिप प्राप्त हुए है.ऐसे में देशद्रोही मै नहीं यह व्यस्व्था है जो हमारी अभिव्यक्ति को, हमारी आवाज को रोकना चाहती है.


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समकालीन हिन्दी-उर्दू कथा साहित्य में मुस्लिम स्त्रियाँ: संघर्ष और समाधान

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डा. शगुफ़्ता नियाज़


समकालीन हिन्दी-उर्दू कथा साहित्य में मुस्लिम स्त्रियों के मुद्दों और उनकी छवि को लेकर शगुफ़्ता नियाज़ का एक पठनीय आलेख. हालांकि इस आलेख में व्यक्त इस्लामिक स्त्रीवाद और पश्चिमी स्त्रीवाद के बनाये गए बरक्स से स्त्रीकाल की सहमति नहीं है. 
                       
यह सच है लेखन में हिंदू-मुस्लिम जैसाकुछ नहीं होता चाहिए परंतु जब लिखित रूप से यह फर्क नज़र आने लगता है तो इसकी विवेचना करना आसान लगता है। नासिरा शर्मा के इस कथन की पुष्टि करते हुए मैं यह कहना चाहूंगी कि समकालीन कथाकारों में उषा प्रियंवदा, राजी सेठ, मृदुला गर्ग, ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, सुधा अरोड़ा, सूर्यबाला, प्रभा खेतान ने स्त्री के अधिकारों को स्वत्वबोध संबंधी अनेक समस्याओं का अंकन भारतीय स्त्री  के संदर्भ में किया है। परन्तु मुस्लिम स्त्री  की समस्याएं उठाई गई यद्यपि मुस्लिम उपन्यासकारों शानी, राही मासूम रज़ा, अब्दुल बिस्मिल्लाह, बदीउज्जमां, असगर वजाहत आदि ने भी बड़ा कार्य मुस्लिम वर्ग के लिए किया है। उनके उपन्यासों में सांप्रदायिकता, अस्पृश्यता , जातिवाद, स्त्री पुरुष संबंध आदि विषय रहे, परंतु मुस्लिम स्त्री के लिए अधिकारों के लिए कोई काम नहीं हुआ। परन्तु नासिरा शर्मा और मेहरुन्निसा परवेज ने मुस्लिम महिलाओं के महत्व और अस्तित्व के लिए अपने कथा साहित्य में मुस्लिम स्त्री के लिए बड़ा काम किया।



मुस्लिम समुदाय हमारे देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। भारत का मुस्लिम समाज विशेष तौर पर स्त्री अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ी हुई है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इस बात का विवेचन अत्यंत विस्तृत तरीके से करती है। इसके अनेक कारण है जिसके निवारण की कोशिशे हिंदी और उर्दू साहित्य में हो रही है। ‘‘स्त्री वाद और इस्लामी स्त्री वाद में क्या फर्क है दोनों का सम्बन्ध महिलाओं के सशक्तिकरण से है। परन्तु इस्लाम मे स्त्री वाद ऐसे मूल्यों पर आधारित है जो सकारात्मक है, गरिमा, मान सम्मान पर आधारित है पर पश्चिमी स्त्री अनैतिकता और यौन स्वतंत्रता मानवधिकार में बदल गई।’’ (इस्लाम और स्त्री वाद, असगर अली इंजीनियर)
हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) पहले फेमिनिस्ट थे जिन्होंने हजारों साल पहले महिलाओं को व्यवस्थित ढंग से सशक्तिरण प्रदान किया जिस दौरे जाहिलियत में लड़कियों को जिंदा दफना दिया जाता था, हुजूर साहब ने इस घृणित कृत्य के खिलाफ आवाज़ उठाई। वह अपनी बेटी का इतना आदर करते थे उसके आने पर अपनी जगह छोड़कर खडे़ हो जाते थे। इस्लाम में बेटी की शादी उसकी मर्ज़ी के बिना नहीं हो सकती। सैद्धान्तिक दृष्टि से मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति बहुत ही सुदृढ़ है, परन्तु व्यवहारिक रूप में उनकी स्थिति आज भी दयनीय है
कुरान में महिलाओं के लिए जो अधिकार है वह पितृसत्तामक व्यवस्था लागू नहीं करती जहाँ “माँ के कदमों के नीचे जन्नत है’ वहाँ स्त्री अपने अस्तित्त्व के लिए आज भी संघर्षरत है! मुस्लिम महिलाए कुरान में दिए गए अधिकारों की जानकारी नहीं रखती उनकी गरीबी और अज्ञानता के कारण स्थिति और ख़राब हुई है।
कुरान की आयते 4:3 और 4:129 में एक शादी पर ही ज़ोर दिया गया है। कई शादियाँ विधवाओं और यतीमों के ख्याल से इजाजत है और पूर्व पत्नी की रज़ामंदी से की जानी चाहिए।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14, महिलाओं कोऔर पुरूषों के राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है। अनुच्छेद 15, महिलाओं को समानता का अधिकार प्रदान करता है तो अनुच्छेद 16, सभी नागरिकों को रोजगार का समान अवसर देता है चाहे महिला हो या पुरूष। अनुच्छेद 39, सुरक्षा, समान काम के लिए समान वेतन की वकालत करता है, महिलाओं के विभिन्न संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार ने महिलाओं को विशेष ध्यान में रखकर उनसे संबंधित अनेक कानून बनाए है ताकि उन्हें शोषण-उत्पीड़न से बचाकर पूरा सम्मान प्राप्त हो जैसे-न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, हिन्दू विवाह अधिनियम 1966 में संशोधित, देह व्यापार निवारण अधिनियम 1986 में संशोधित, दहेज निवारण अधिनियम 1986 संशोधित, महिलाओं के अभद्र चित्रण रोकने संबंधी कानून, घरेलू हिंसा अधिनियम, 1986 का सती प्रथा निवारण अधिनियम, प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 जो भ्रूण पहचान को अवैध घोषित करता है।
सरकार महिलाओं के वास्तविक विकास हेतु दृढ़ संकल्प है एवं विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा उन्हें सहयोग प्रदान कर रही है। अब उन्हें स्वयं भी प्रयास करना होगा कि घर-परिवार और समाज में उनके योगदान की महत्ता को समझा एवं सराहा जाए। जब महिलायें खुद के बारे में सोचने और व्यवहार करने के तरीकों में बदलाव लाएँगी, अपनी स्थिति सर्वोपरि करने में सजग होंगी तभी वे सशक्त बनेगी।

स्त्री परम्पराओं, सिद्धान्तों और नियमों की बेड़ी में बंधी है।विशेषकर मुस्लिम परिवारों में स्त्री  की स्थिति अत्यंत पिछड़ी एवं दयनीय है। बेटी जिसका वजूद जाहिलियत के दौर में बोझ समझा जाता था, इस्लाम में वही बेटी जन्नत हासिल करने का जरिया बन गयी । इस्लाम में माँ के पैरों के नीचे जन्नत है और उसकी नाफरमानी बहुत बड़ा गुनाह है और बहन की शक्ल में उसकी आबरू की खातिर भाई को जान कुर्बान हो सकती है और बीबी शक्ल में वह मर्द के लिए सबसे कीमती तोहफा है। परन्तु इस सब के बाद भी वह पुरूष की आश्रिता ही रह गयी। इस्लाम के अधिकांश नियम एवं कानून यद्यपि स्त्री की सुरक्षा का विचार कर बनाए गए थे यही नहीं बल्कि उनकी दयनीय स्थिति के पीछे कार्यकारी शक्तियों पर पर्याप्त रूप से विचार भी किया गया और कारणों को स्पष्ट किया गया परन्तु उसका अर्थ बदल गया। प्रश्न उठता है कि शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, पर्दा, पिछड़ापन तथा अन्य बहुत-सी कमियाँ भारतीय मुस्लिम समाज में बंटवारे में साठ वर्ष बाद दूर हो गई हैं तो फिर मुस्लिम स्त्रियों की स्थिति (दशा)  आज भी एक प्रश्नचिह्न है। हिन्दी उपन्यास साहित्य की बात करें तो 19वीं शती से बीसवीं शताब्दी तक ऐसा कोई उपन्यास नहीं जिसमें मुस्लिम स्त्री और समाज का अंकन न हो यद्यपि गोपालराय ने निःसहाय हिन्दू में ही मुस्लिम पात्रों का अंकन स्वीकार किया है प्रेमचन्द के प्रेमाश्रम में ग्रामीण मुस्लिम स्त्रियों की बात उठाई गई है देवेंन्द्र सत्यार्थी के कठपुतली यशपाल का झूठा सच, कमलेश्वर के लौटे हुए मुसाफिर, भीष्म साहनी के तमस्, शानी के काला जल, राही का आधा गाँव, मेहरुन्निसा परवेज़ की कोरजा, अकेला पलाश, नासिरा की ठीकरे की मंगनी और जिन्दा मुहावरे, अब्दुल बिस्मिल्लाह की झीनी-झीनी बीनी चदरिया, ज़हरवाद, मुखड़ा क्या देखें आदि उपन्यासों में मुस्लिम समाज व उनकी स्थितियों का चित्रण है।
उर्दू उपन्यासों में नज़ीर अहमद ने (1869) में मिरातुल उरूस अपनी बेटी के लिए था। जिसमें स्त्री का आदर्श रूप दिखाया गया है।

 राशिदुल खैरी ने भी मुस्लिम स्त्रियों के प्रेम संबंधउनकी भावनाओं का उल्लेख किया है। प्रेमचन्द की बाज़ारे हुस्न में भी वेश्या जीवन की समस्याऐं उठायी गयी है। बेवा, निर्मला आदि में स्त्री की निरीहता का वर्णन है इस्मत चुगताई ने ज़िद्दी, टेढ़ी लकीर मासूमा, सौदाई में निचले मध्यवर्ग की स्त्रियों के बचपन कुवँारेपन, जवानी और उम्र की ढलान का ध्यानकर्षक दृश्य पेश किया है राजेन्द्र सिंह बेदी उपन्यासों में ऐसे स्त्री पात्र सृजित किए जो एक साथ अनेक किरदार निभाते है। कुर्रतुल ऐन हैदर और जीलानी बानो के यहाँ विभिन्न प्रकार के मनुष्य स्त्री पात्र है केवल इस्मत चुगताई जिन्होंने लिहाफ़ समलैंगिकता पर आधारित है लिखा है स्त्री के तौर पर आज़ादाना पहचान की दावेदार है। ऐसा उर्दू साहित्य में कम है परन्तु शमूल अहमद और रेवती सरन शर्मा ने अपने उपन्यासों ‘नदी‘ और सफ़रे बे-मंज़िल में ज़रूर ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए है नदी की नायिका वैवाहिक जीवन से आज़ाद होने के बाद अपनी पहचान पाती है। सफ़रे बे मज़िल की नायिका वैवाहिक बंधन में रहकर अपने वैयक्तिक पहचान का अधिकार मांगती है।

उर्दू महिला कथाकारों में सरवत खान का अंधेरा पग मेंपरंपरा का विद्रोह दिखाई देता है जकिया मरशदी का पारसा बीवी का बघार में चार पीढ़ियां दिखाई गई है चारों अपनी परंपरा से हटकर जीना चाहती है जिसका उन्मुक्त वर्णन लेखिका ने किया है। सादिका नवाब सहर के कथा साहित्य में भी विभिन्न समस्याओं का चित्रण किया है। ‘मन्नत’ में स्त्री  जिस सृष्टि प्रक्रिया के कारण पूजनीय मानी जाती है अर्थात् मासिक धर्म की समस्या से जुड़ी पीड़ा को उठाया गया है। जिस दिन से पहले में नायक की मां अपने पति केे आचरण से नाखुश है और बदले की भावना में कुछ ऐसा करती है जो आदर्श मां की व्याख्या का विरोध करता है। ‘व्हीलचेयर पर बैठा शख्स’ में भी जटिल स्त्री समस्याओं को सादिका जी ने उठाया है।

यहाँ हमारा अभीष्ट केवल समकालीन कथा साहित्य मेंअभिव्यक्त मुस्लिम स्त्रियों की समस्याएँ और समाधान है। इस दृष्टि से हम अब उन समस्याओं पर विचार करेंगे जो इन उपन्यासों में बार-बार उठाए गए हैं।
निर्धनता व अशिक्षा मुस्लिम स्त्रियों की सबसे बड़ी समस्या है जब जीविकोपार्जन के लिए पैसों की तंगी है तो शिक्षा पर खर्च करना उनके लिए कैसे संभव है। हिंदी कहानी साहित्य में प्रेमचंद के ईदगाह की बेवा दादी की निर्धनता, बेबसी से स्त्री  का जो संघर्ष दिखाना प्रारम्भ हुआ कि तीन पाई से ईद किस तरह से मनाई जाए, वह मेहरून्निसा परवेज की कहानी ‘विधवा’ व ‘त्यौहार’ में भी ज्यों का त्यों बना है ये त्यौहार क्या आते है।  ‘‘हमें नंगा करके चले जाते हैं’’ आगे चलकर कन्या रूप में स्त्री  का संघर्ष नासिरा शर्मा की ‘चार बहने शीश महल’ की कहानी में दर्दनाक अंत के साथ होता है। नासिरा शर्मा की कहानी ‘बावली’ एक और दर्द भरी कहानी है ऐसी पत्नी का दर्द है जो मां न बन पाने की वजह से अपने पति की दूसरी शादी करवाती है।

अशिक्षा मुस्लिम स्त्रियों की सबसे बड़ी समस्या है हिन्दीऔर उर्दू कथा साहित्य में इसका पर्याप्त वर्णन और समाधान भी दिया गया है। उर्दू में जाहिदा हिना की कहानी ‘ज़मी आग की आंसमा आग का‘ में शंहशाह बानों के पढ़ाई शुरू करने के लिए लिखती है कि ‘‘सारा कुटुम्ब इकट्ठा है, खानदान की लडकियाँ कुन्बे की इस पहली लड़की को देख रही है जिसकी मकतब हो रही है!...... देखने वालो की आँखों में अचंभा है कि ये पढ़ना नहीं लिखना भी सीखेगी।’’

पति के घर पहुँच कर उसे एक ज़िन्दगी से ये शिकायत ज़रूर थी कि ‘‘मुझे पढ़ना लिखना सोचना क्यों सिखाया नाम की शंहशाही क्यों अता की.....ये शिकायत इसीलिए कि क्योंकि पति ने जब पहली बार किताब हाथ में देखी तो चार टुकड़े कर बाहर की तरफ उछाल दिए और भरे किताबों की पेटी की होली आँगन में जलाई गई! .... शंहशाह बानों ने सोचा कि मजाज़ी खुदा का हुक्म भी तो हाथ काट देता है उगलियाँ कुतर देता है, तभी तो शाहबानो के पिता आख़िर साँस तक बेटी के हाथ का लिखे हुरूफ़ को देखने की हसरत ही रही।’’ शमोएल अहमद के उपन्यास गिरदाब में भी साजी को छठी जमात तक पढ़ते दिखाया “गाँव के स्कूल में पढ़ती थी शादी हो गई। उसने पहला तजुर्बा बयान किया वह यह कि उसे बताया गया था कि ससुराल के लोग बहुत पढ़े लिखे थे यहाँ आई तो मालूम हुआ कि सभी मिडिल फेल थे। खुद उसके पति दरजात ने कहा था कि उसके पास किताबों से भरी अलमारी है पर एक अख़बार तक उसके घर में नहीं आता था। अब क्या करूंगी शौक भर गया लेकिन मेरी बेटी को पढ़ा दो। मनसूबा को वह आई.एस. बनाने का ख्वाब देखती थी। मैं तो पढ़ नहीं सकी कम से कम बेटी तो पढ़ ले.

मेहरून्निसा परवेज़ के कोरज़ा में भी फातिमा पढ़ी-लिखी नहीं है उसकी आवाज़ दबा दी जाती है परन्तु कम्मो अपने आत्म विश्वास को अकेले जीवन जीने का निर्णय लेती है। मेहरुन्निसा परवेज़ की उपन्यास कोरजा की कम्मो के शब्दों में ‘‘नहीं अमित मैं अकेले चल सकती हूँ अभी से सहारे का इतना आदी मत बनाओ की खुद अपने पैरों पर खड़ी ही न हो सकूँ।’’ (मेहरुन्निसा परवेज, कोरजा, पृ. 147)

हिन्दी साहित्य में नासिरा जी ने ठीकरे की मंगनी उपन्यास में महरुख के माध्यम से एक विशिष्ट चरित्र सामने आता है जिसमें बचपन में शादी तय हुई और फिर महरूख़ के भविष्य की रूपरेखा उसकी क्षमताओं और रुचियों के बजाय उसके भावी पति की इच्छाओं को ध्यान में रखकर की जाती है, यद्यपि महरूख को बाहर पढ़ने के लिए भेजने पर महरूख़ की माँ के विचार प्रगतिशील है कि मैं औरत हूँ खूब अच्छी तरह जानती हूँ कि इस नए दौर में और के लिए मजबूती क्या होनी चाहिए। अर्थात् आधुनिक विश्व की आवश्यकताओं में उन्नत शिक्षा का कितना महत्त्व है कहने की आवश्यकता नहीं। उर्दू साहित्य में भी शमूल अहमद की नदी की नायिका पढ़ी-लिखी है इसलिए वह भंवर से निकल जाती है।

स्त्री  को भावना हीन समझना उनके साथ इंसानो वाला बर्ताब न करना जैसी समस्या हिन्दी उर्दू दोनों जगह समान्य रूप से उठाए गए है- शमोएल अहमद कृत ‘‘नदी’’ उपन्यास में हनीमून के स्थल जहां उत्साह होना चाहिए वहां पति-पत्नी के वार्तालाप में ज़िन्दगी का कोई रंग नहीं है- “ज़मीन पर क्यों बैठी हो, पागल हुई हो क्या? उसे लगा कि वह बात नहीं कर रहा बल्कि आहनी ज़जीर हिला रहा है। वह अलग सी चीज़ थी जिसका इस्तेमाल क्या जा रहा था वार्डरोब की तरह........ नकारची के ढोल की तरह ........ चूँकि वह पी.एच.डी कर रही थी। अन्ततः पति से मुक्त होकर ही वो अपना अस्तित्व पहचानती है।

इसी प्रकार नासिरा शर्मा ठीकरे की मंगनी ने सकारात्मक कार्य के चुनाव के साथ स्त्री की स्वतंत्रता के संदर्भ में तीसरे घर की रूपरेखा प्रस्तुत करके उसके विभिन्न पहुलओं का व्याख्यायित विश्लेषित करते हुए तथाकथित स्त्री वाद आंदोलन से पहले ही उसके आज़ादी के संदर्भ में नए परंतु व्यावहारिक मार्ग का संकेत करती है “पिता और पति के घर से अलग वह ठिकाना मायके और ससुराल के विशेषणों से युक्त हो, उसकी मेहनत और पहचान का हो।

तीन तलाक की समस्या आज केंद्र में है इस बात को हमें नहीं भूलनाचाहिए कि दुनिया में हम जिस रिश्ते को सबसे पहले देखते हैं वह आदम हव्वा का पति पत्नि का रिश्ता है जहाँ बीवी को एक नज़र मुहब्बत से देखने के हज़ारो सवाब है जहाँ माँ के कदमों के नीचे जन्नत है वहाँ तीन तलाक देकर एक मिनट में सारे रिश्ते तोड़ने के नियम कैसे हो सकते हैं। मुस्लिम स्त्रियों में तलाक व हलाला की समस्या गम्भीर रूप में आज भीं विद्यमान है, हिन्दी उर्दू साहित्य में इसका पर्याप्त विस्तार मिलता है। किसी भी धर्म की तरह इस्लाम में भी तलाक को वैवाहिक संबध में बिगाड़ के बाद आख़िरी विकल्प के रूप में देखा जाता है हुल्ला, मुहिल्लल, हलाला, इद्दत, खुला और तलाक के मामले मंें ये शब्द काफ़ी उलझाने वाले हैं। इसको बताने की यहाँ आवश्यकता नहीं है। निकाह, हलाला, शरीआ इस्लामिक कानून की एक प्रथा है जिसमें तलाक देने के बाद जब पति उसी स्त्री को दोबारा अपनाना चाहता है तो हलाला की प्रक्रिया को पूरा करना होता है। संक्षेप में कुरान में केवल दो कैफ़ियत हलाला की है कि- तलाक के बाद स्त्री की दूसरी जगह शादी हो और वहाँ भी निभ न पाए तब पूर्व पति से निकाह हलाला कहलाएगा जिसे तलाके मुबररा कहते हैं। दूसरे परिस्थिति वह जब दूसरे पति की मृत्यु हो जाए तब पहले पति से विवाह कर सकती है। इस सीधी सी बात को काज़ी मौलवियों की मदद से वीभत्स रूप दे दिया गया है। प्रयोजन वश जो हलाला कराया जा रहा है वह हराम है इस प्रक्रिया को हुल्ला या तहलीली कहा जाता है जिस पर कुरान में लानत भेजी गई है।



 मुस्लिम पसर्नल ला, एप्लीकेशन एक्ट 1937, डिजोल्यूशनआफ मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 आॅफ राइटज आन डिवोर्स ए-1986, 1937 और 1939 का एक्ट अंग्रेजो ने बनाया था।  इसे आज़ादी के पहले एंग्लो मोहम्मडन लाॅ कहते थे। आज़ादी के बाद मुस्लिम पसर्नल लाॅ बोर्ड कहते है। यह एक संवैधानिक संस्था नहीं है। विद्वान हिलाल अहमद, तारिक महमूद, फैज़ान मुस्तफा, जावेदाना, आरिफ मोहम्मद खान, असगर अली इंजीनियर और बड़े-बड़े ऐकेडमीशियन है। एक बड़ा महिला वर्ग भी मानता है कि तीनों एक्ट में पर्याप्त संशोधन की आवश्यकता है।

पसर्नल ला की एक बड़ी आथोरिटी प्रो0 ए0ए0 फैज़ी “मुकद्दस कुरान बहस व मुबाहसे से ऊँची आसमानी किताब है लेकिन इसमें कुछ चीजें ऐसी है जिन्हें बदल देने की ज़्ारूरत है जैसे बहुपत्नी विवाह परदा और तलाक।“ (मुस्लिम पर्सनल लाॅ धार्मिक सामुदायिक दृष्टिकोण, मौलाना सदरूद्दीन इसराही) जस्टिस वी0 आर कृष्ण अय्यर का उदाहरण था कि जब वह केरला हाइकोर्ट के चीफ़ जस्टिफ ये तब वह इस्लाम और हज़रत सल्ल0 अलैहेवसल्लम के बारे में अच्छी राय नहीं रखते थे। कुरान की एक स्टडी तलाक़ के केस में अपनी किताब को कोट किया जिस क़ौम के पैगम्बर ने सोचने समझने के और अक़्ल इस्तेमाल करने का मज़हबी फरीज़ा बताया उस क़ौम के लोग अक़्ल इस्तेमाल करने पर फ़िक्र करना गुनाहे अज़ीम समझ बैठे हैं आगे कहते हैं कि 1400 साल पहले उस ज़माने में ऐसे मसलों को हल कर दिया जो आज बड़े-बड़े सोशल सांइटीस्ट को परेशान किए है। (फै़जान मुस्तफा, इंटरव्यू)

तलाक में हज़रत स0 अलैहे वसल्लम हज़रत अबु बकर हजरत उमर के दो साल तक तीन तलाक 1 ही मानी जाती थी। पर हजरत उमर ने इसका विरोध किया विवाद यही से शुरू होता है। यद्यपि उनके बाद भी पुरानी परम्परा ही मानी गयी। चंूकि हुजूर साहब को हम सबसे ऊपर मानते हैं अतः हमें उन्हीं के बताए रास्ते पर चलना है। तलाके़ बिदअत- एक बार में तीन तलाक़़़ जो गलत है, इसी पर मोखाल जो  हलाला है और सभी इसी को अपना रहे हैं। यह तरीका सही नहीं है। तलाके एहसन-में एक तलाक देकर तीन महीने दस दिन बाद अलग हो सकते है। तलाक़े हसन- यह बिलकुल सही तरीका है। कुरआन में इसी का जिक्र है- कुरान की सुरह 222 से 240 सूरह अल बक़रा, सूरह तलाक आयत न0 65 सुरह निसा आयत नं0 35 में इसका विशद वर्णन हैं अत्तलाक़ो मरराताने, फइमसको बेमारूफिन अव तसरीह्म    बेएहसान.......ज्वालेमून। (अलबकरा, आयत नं0 222, पारा नं0 2 पृ0 123, त़फहीमुल कुरान जिल्द- 7, मौलाना सय्यद अब्दुल आला मौदूदी।)

आज मुस्लिम महिलाएं 1400 साल पहले वर्णित कुरानका नियम मानने को तैयार है। मगर यूनीफार्म सिविल कोड लागू न हो। वर्तमान समय में त्वरित तीन तलाक़ तुरन्त समाप्त हो और कुरान या संविधान में से एक नियम लागू हो। कुछ लोग इसके पक्ष में है कुछ विपक्ष में परन्तु यह अच्छी चीज़ नहीं है। बड़े-बड़े एकेमेडिशयन....... ये मानते है कि तीन तलाक़ इस्लाम के मूलभूत ढाँचे में नही है। कुरान में तलाक़ की एक लम्बी प्रक्रिया है जिससे बहुत से स्टेप्स है जिसमें बातचीत समझाना, गुस्सा होना, फिर गवाह के माध्यम से सुलाह समझौता फिर केवल एक तलाक देना और कोशिश करना कि इस बीच सम्बन्ध सुधर जांए 3 महीने 10 दिन बाद तलाक आटोमेटिक हो जाती है यदि गलती का एहसास हो जाए तो दोबारा निकाह औरत के इंटरेस्ट पर होगा नया मेहर व नई कन्डीशन के साथ जब दो बार निकाह काॅस्पेट होगा तो हलाला की विकृति स्वंय ही समाप्त हो जाएगी पर मुस्लिम पुरूष इसे नहीं अपनाते इस प्रक्रिया में घर टूटने की सम्भावना बहुत कम है। वर्तमान समय में एक माडल निकाहनामे को बनाने की स्कीम है पर मस्जिद के इमाम और निकाह पढ़ाने वाले का इसमें राज़ी होना आवश्यकता है।

वर्तमान परिपे्रक्ष्य में मोदी व योगी जी तीन तलाकको लेकर गम्भीर है अपने भाषणों में द्रौपदी के चीरहरण से तीन तलाक की समस्या को जोड़ते हुए इसका विरोध किया है। लोग उनके पुण्य कृत्य को राजनीतिक छदम समझे पर मैं इस बात का सम्मान करती हूँ कि तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के लिए आश्रम खोलने का निर्णय और उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के अलावा स्वरोजगार भी उपलब्ध कराने की बात कही है। इसका हम सब को सम्मान व स्वागत करना चाहिए। कुरान में भी सबसे आला दर्जे का सदक़ा तलाक शुदा पर खर्च करना है। आज कुरान को तर्जुमें से अर्थ के साथ सही व्याख्या की आवश्यकता है पुरूष और स्त्री दोनों को इसका ज्ञान होना आवश्यक है। कुरान को अर्थ से पढ़ने की जरूरत है। तभी तलाक़े हसन की जानकारी होगी और समाज से इस कुरीति का नाश होगा वरना कोर्ट में केस या फ़ैसला पहुँचा तो 5 करोड़ तलाक के केस जहाँ पहले से हैं वहाँ समस्या बढ़ेगीं ही।

हिंदी साहित्य में इस समस्या को लेकर उपन्यास लिखे गए है।अब्दुल बिस्मिल्लाह ने ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘ में श्रमिक मुसलमान परिवारो का चित्रण खींचा है, वहाँ स्त्री  की जो वास्तविक दशा है तथा पुरूष इस्लाम के नियमों का सहारा लेते हुए स्त्री  प्रति जो मानसिकता रखता है, उसे अभिव्यक्ति प्रदान की है, ‘औरत जात की आखि़र हैसियत ही क्या है? औरत का इस्तेमाल ही क्या है? कतान फेरे, चूल्हा-हाड़ी करे, साथ में सोये, बच्चे जने और पाँव दबाये। इनमें से किसी काम में कोई हीला-हवाली करे तो कानून इस्लाम का पालन करो और बोल दो तुम्हें तलाक देता हूँ। तलाक़, तलाक़, तलाक़।'

स्त्री इस्लाम में दिए गए अपने अधिकारों से अनभिज्ञ है।जहाँ पुरुष की यातनाओं को सहना भी गुनाह माना गया है। परिवार की इज्ज़त, माँ-बाप की इज़्ज़त, नैतिकता एवं अदर्शो का भरी भरकम बोझ ढोने वाली स्त्री  अपनी आँखे खोलना ही नहीं चाहती और पुरूष प्रधान समाज, गरिमा, प्रतिष्ठा, मर्यादा के लबादे डालकर पुरूष स्वार्थ सिद्ध करने वाले पक्षों का सहारा लेकर उसके पर कतरता रहता है। तलाक़ के अधिकार का दुरूपयोग पिछड़े मुसलमानों में बड़ी संख्या में देखने को मिलता है। तलाक़ के अधिकार का प्रयोग करने वाला पुरुष अल्लाह की कही इस बात को क्यों नज़रअदांज करता है, जहाँ लिखा है कि “अल्लाह के नजदीक हलाल कार्यों में सबसे अप्रिय कार्य तलाक़ है,।''तलाक़ के साथ जुड़ी शर्ते यद्यपि अत्यंत कठिन हैं, पर उन शर्ताे पर कम पढ़ा-लिखा वर्ग ध्यान नहीं देता और औरत अपने अधिकारों से अनभिज्ञ है। सैयद मौलाना मौदूदी ने ‘इस्लाम में पति-पत्नी के अधिकार‘ में लिखा है। पुरूष को दंड देने के लिए इस्लाम में विधान है कि तलाक़ के बाद औरत दुबारा शौहर के निकाह में नहीं आ सकती है। जब तक किस किसी मर्द से उसका निकाह होकर जुदाई न हो जाए। साथ ही दूसरा मर्द उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाकर राजी खुशी से उसे तलाक़ न दे दे। यह दंड पुरुष के लिए उसके अहम् पर प्रहार करने के लिए है। इसका उल्लेख भी ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘ उपन्यास में मिलता है। ‘कमरून को जब से छोड़ा है परेशान रहता है। अब तो यही उपाय है कि कमरून का निकाह किसी और से हो जाऐ और वह एक रात को अपने साथ रखकर उसे तलाक़ दे दे तब जाकर लतीफ के साथ निकाह हो सकेगा।‘ परन्तु परोक्ष रूप से देखा जाए तो इसके मध्य पिसती स्त्री  दिखाई पड़ती है जो एक तरफ पति द्वारा दिए गए तलाक़ का अपमान झेतली है, दूसरी तरफ दूसरे पुरूष के साथ सहवास का दंड। भारतीय समाज में जी रही संवेदनशील स्त्री  अपने पुरूष के प्रति एकनिष्ठ आस्था रखती है। यातनाँए झेलकर भी उसका प्रेम कम नहीं होता, ऐसे में अपने तलाक़ देने वाले पति के प्रति यदि उसका प्रेम है और वह वापस उस तक जाना चाहती है तो उसे पर पुरूष को भोगना होगा। ‘सात नदियाँ एक समन्दर‘ उपन्यास में खालिद कहते है कि ‘इन औरतों की बातें समझ में नहीं आती। जुल्म सहेंगी मगर जालिम को जालिम नहीं कहेंगी। जो मूर्ति इनमें मन में किसी की बन जाती है वह ज़िन्दगी भर बनी रहेगी।‘ वर्तमान समय के कथा साहित्य में बदलाव आया है। नासिरा शर्मा की ‘दूसरी हुकूमत’, भगवानदास मोरवाल के हलाला उपन्यास में इस समस्या के समाधान को भी उजागर किया गया है। हिन्दी साहित्य में भगवानदास मोरवाल जी का हलाला भी एक निचले अनपढ़ तबके की ही नुमाइन्दगी करता है पर नज़राना का चरित्र यहाँ स्त्री अस्मिता का गम्माज़ बन के आया है। ‘काला पहाड़‘ में भी मुस्लिम समाज और सांझी विरासत और हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात की गयी है।

नज़राना को एक झूठ के बिना पर पति नियाज़ ने तलाक दे दी।“टटलू सेठ के बिचले लड़के नियाज़ ने ऐसे ही नेक और भली औरत को एक झटके से किसी पुराने दरख़्त की तरफ इसकी जड़ो से उखाड़ फेंका उस औरत के जिसके लिए शौहर को राज़ी और खुश करना सबसे बड़ी इबादत है। मोरवाल जी ने जो शीर्षक दिया है वह हलाला है परन्तु जो समस्या है वह तहलील या हुल्ला की कुरान में ये दोनों मान्यताएँ नहीं है।फिर उसे पाने की तमन्ना प्रायोजित हलाला तक ले आती है जो नितान्त गलत है इस्लाम में मना है। ल अन्जाअलैहे मुहल्लि वलमुहिल्लाह अर्थात् तहलील करने वाले और करवाने वाले दोनों पर लानत फ़रमाई। (तफ़हीमुल कुरान, जिल्द-एक) हलाला में यद्यपि मुस्लिम स्त्री की समस्या उठाई गई परन्तु प्रो आशिक़ बालौत के शब्दों में पूरे उपन्यास पर इस्लामी रंग से ज्यादा भारतीय परम्परा का प्रभाव है। मेवों का प्रभाव सर्वत्र दिखाया देता आचार भाषा, व्यवहार सभी में परन्तु उसका सकारात्मक पक्ष यह है कि हलाला प्रक्रिया के लिए नज़राना का विवाह जब कलसंडा से होता है तब नज़राना कलसंडा के साथ ही रहना चाहती है से नज़राना तलाक़ नहीं चाहती 3 बच्चों का मोह भी उसे नहीं रोक पाता बल्कि तर्क में कलसंडा जो समाज का तिरस्कृत पात्र है उसी के ये शब्द दोहराती है।
“हे खुदा की बन्दी मैंने तो निकाह की या मारे हामी भरो कि तेरी उजड़ी़ हुई दुनिया बस जाए।“ ऐसे खरे आदमी से जब अपने पति की तुलना करती है कि एक झूठ पर उसके पति ने उसका साथ छोड़ दिया तब उसे कलसंडा के साथ ही पूरा जीवन गुज़ारना बेहतर मालूम होता है।ये क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाना ही लेखक का अभीष्ट है वर्तमान परिपेक्ष्य में मुस्लिम स्त्री  को सशक्त करता है।

उर्दू कथा साहित्य में ज़ाहिदा हिना जी का कहानी संग्रह‘राहे अजल में’ की कहानी ‘ज़मी आग की आसमां आग का’ में भी शहंशाह बानो के जीवन में तलाक के मार्मिक चित्र ज़ाहिदा जी ने खींचे हैं जो दिल चीर के रख देते हैं। एक उद्वरण प्रस्तुत हैं- ‘‘इस ख़त में ये इत्तला दी गई थी कि शाह बानो को तीन तलाक़ दे दी गई है। बासठ की उम्र में तलाक़ नामा मिलने पर  एक स्त्री  का हक़ भी उसे नहीं मिलता अदालत कार्यवाईयों से ये हक मिलता भी है और नहीं भी मुस्तफ़ा अली खाँ ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील की गयी कि इद्दत की मुद्दत (तीन महीने दस दिन) गुज़र जाने के बाद शरई ऐतबार से उसे ये हक नहीं मिलना चाहिए। भारतीय कानून ये है कि जब तक औरत दूसरी शादी न करे तब तक  उसकी हक़दार ठहरती है। उनको फ़तवे लगाए गए अख़बार जिसे वह बूढ़ी आँखों से पढ़ती थी वह बताते हैं कि वो बेदीन हो गई है 70 साल की एक बेकस व बेबस के सबब इस्लाम ख़तरे में था। उन पर केस वापिस लेने का दबाव डाला जा रहा था लाखो लोग जुलूस निकाल रहे थे लेकिन शंहशांह बानो ने हिम्मत नहीं हारी वह लड़ रही थी तमाम मुसलमान औरतो और मुसलमान लड़कियों के लिए। मगर अपने ही घर के बेटे और पोतियों पर ज़िन्दगी की बढ़ती मुश्किलें देखी तो उन कागजों पर काली स्याही से अंगूठा लगा दिया। पढ़े-लिखे होने के बाद भी ये अम्ल शंहशाह बानो की अत्यन्त करूण स्थिति को दर्शाते हैं शंहशाह बानो का दर्द प्रत्येक उस स्त्री का दर्द है जो अशिक्षित है। जिसमें पति बार-बार बहिश्ती जे़वर दिखाना कि पत्नी के पति के लिए क्या कर्तव्य है बताता है। जबकि वह स्वयं विलासिता पूर्व जीवन बिताता है और दूसरा विवाह भी कर लेता है। पत्नी को घर से बाहर तलाक़ देकर निकाल देता है और गुज़ारा भत्ता देना भी उसे स्वीकार्य नहीं है।’’


जहाँ शंहशांह बानो के और झीनी-झीनी बीनी चदरियाकी नायिका तलाक की समस्या से पीड़ित हैं वहीं उसी से जुड़ा हलाला भी एक बड़ी समस्या है उर्दू में शमोएल अहमद का ‘चुनुवा का हलाला’ है और हिंदी में भगवानदास मोरवाल का ‘हलाला‘ है। चुनुवा का ‘हलाला’ में जहाँ फलो का ठेला लगाने वाले ऐसे पति-पत्नी की कथा है जो अपनी मड़ई में प्रसन्नतापूर्वक रहते थे। परन्तु सामने रह रहे पड़ोसी मौलवी तासीर की दृष्टि उसकी पत्नी के प्रति नेक नहीं थी। चन्नू और उसकी पत्नि का केवल ये पाप था कि वह एक बच्चे की ख्वाहिश रखते थे जिसके लिए वह जहाँ मज़ार और पीर कर रहे थे वहीं देवी माँ के मन्दिर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। ये सोचकर खप्पर पूजा के अवसर पर यात्रा में दोनों पति पत्नि शिरकत करते है। शमूल अहमद ने यहाँ गंगा जमुनी तहज़ीब का नमूना पेश किया है कि कुछ मुसलमान भी मन्दिर और देवी यात्रा से जुडे थे। जो हमारी साझी विरासत है गिरदाब में भी पटना के बेहतरीन साझी संस्कृति छठ पूजा के नमूने बिखरे पड़े हैं परन्तु यहाँ हमारा विषय हलाला है जिसमें चुनवा और उसकी पत्नी शिरकत कर लेते हैं उसके बाद उनके साथ जो व्यवहार समाज करता है वो घोर निंनदनीय है तू खप्पर  यात्रा में शामिल था तूने देवी के नारे लगाए चुनुवा ने कहा कि ईश्वर एक है तो उस देवी से माँग लिया और अल्लाह से भी मांग लिया ये ख़बर फैली कि चुनुवा हिन्दू हो गया और उस पर फतवा जारी कर दिया कि चुनुवा खारिजे इस्लाम हो गया और उसकी बीवी निकाह से खारिज हुई। फिर तमामतर अस्तग़फार और कलमा पढ़ाकर वह दोबारा मुसलमान हुआ और अपने ही घर में पत्नि से परदा करने पर मजबूर क्योंकि अब निकाह दोबारा होना चाहिए और उसके लिए हलाला होना जरूरी है जो मौलवी तासीर से होने की बात होती है। लेखक के लफ़्ज है चुनुवा की मड़ई में फिर रोशनी नहीं हुई उसका दम घुट गया मड़ई कब्र में तब्दील हो गई। (चुनवा का हलाला, शमोएल अहमद)

सीता हरण एक अंतर्राष्ट्रीय फलक का उपन्यास हैजिसमें भारत के फैजाबाद, अयोध्या और पाकिस्तान के मुल्तान, सिंध, कराची, लाहौर के साथ-साथ पेरिस, अमेरिका, न्यूयॉर्क आदि देश भी सम्मिलित है। सीता हरण में कुर्रतुल ऐन हैदर ने सीता मीर चंदानी जैसा चरित्र गढ़ा है जिसमें सीता जमील की पत्नी है जहां सीता पति की संस्कृति को पूरी तरह अपनाती है वही जमील तुलसी की भाषा अवधी को अपनी मातृभाषा  कहकर गर्व अनुभव करता है। सीता के जीवन में त्रासदी वहां से शुरू होती है जब जमील सीता को तलाक दिए बिना अमेरिका में दूसरी शादी रचा लेता है। सीता अपने पुत्र राहिल की प्राप्ति के लिए पूरे उपन्यास में बेचैन दिखाई देती है। जमील सजा के तौर पर सीता को उस समय तलाक देता है जब सीता एकदम अकेली रह जाती है। सादिका नवाब सहर की कहानी ‘दीवारगीर पेंटिग’ में तलाक की समस्या और निदान की नवीन व्याख्या प्रस्तुत करती है। शराबी पति के एक बार तलाक कह देने से नायिका पति के बहुत समझाने पर भी वापिस नहीं आती। पति उसे हलाला की इजाजत नहीं देता क्योंकि उसके अहम् को चोट पहुँचती है अन्ततः नायिका एक नये घर का सपना लेकर अपनी मां के घर चली जाती है।

तलाक जायज समस्याआंे से निदान के लिए है। शीन मुजफ्फरपुरी के अफसाने तलाक तलाक तलाक में शहनाज और आरिफ को लेकर तलाक का मसला आया है जिसमें लडकी का बद किरदार होना तलाक की वजह है तलाक हक बात पर अलग होने का एक जायज रास्ता है परंतु 99 प्रतिशत लोग इसका गलत इस्तेमाल ही करते हैं। परिवर्तन संसार का नियम है। लिंग, वर्ग, हैसियत, समाज देश और काल का अंतर किए बिना देखा जाए तो किसी का जीवन पेचोखम से खाली नहीं है लेकिन जीवन की सार्थकता इसी में निहित है तमाम विरोधाभासों का सामना किया जाए। कोरजा की कम्मो, अकेला पलाश की तहमीना, सूखा बरगद की रसीदा, महरूख, साजी, शंहशाहबानो नज़राना आदि का जीवन प्रेरणा रूप में स्त्री  जीवन में सार्थकता व सकारात्मकता लाने का कार्य कर रहा है।

महादेवी वर्मा जी के शब्दों में हमें न किसी पर जय चाहिएन किसी से पराजय चाहिए, न किसी पर प्रभुत्व चाहिए न किसी पर  प्रभुता। केवल अपना वह स्थान व स्वत्व चाहिए। जिसका पुरुषों के निकट कोई उपयोग नहीं है परंतु जिसके बिना हम समाज का उपयोगी अंग बन नहीं सकेंगी। (श्रृंखला की कड़िया, महादेवी वर्मा, पृ. 23)

कृष्ण चंदर, राजेंद्र सिंह बेदी, आशिक हंसराज रहबर,गोपीचंद नारंग, सादिका नवाब सहर, सरवत खान, जकिया मरशदी ने उर्दू में रचना करके तथा राही मासूम रज़ा, शानी, असगर वजाहत, अब्दुल बिस्मिल्लाह, मंजूर एहतेशाम, मेहरुन्निसा परवेज, नासिरा शर्मा हिंदी में आदि रचनाकारों ने हिंदी और उर्दू मैं बांटने का काम किया है नामवर सिंह के लेख की आती है उर्दू जबां आते आते एक पंक्ति है हिंदी और उर्दू के लेखक दोस्त ही नहीं बल्कि हमराही हैं क्योंकि दोनों ही भाषाओं के सरोकार एक से हैं और अपने कार्य व्यवहार द्वारा स्त्री चेतना को परिभाषित करते हुए हिन्दी, उर्दू साहित्य दोनों ही अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।

 शगुफ्ता नियाज,वीमेंस कालेज, ए.एम.यू. अलीगढ़  के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं.

                                 
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पुलिस कहती है सरकारी फंड पाने के लिए सेक्स रैकेट चलाता था ब्रजेश ठाकुर

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स्त्रीकाल डेस्क 

बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की जांच की कमान सीबीआई ने 29 जुलाई को अपने हाथों में ले ली थी लेकिन 6 दिन से वह विभिन्न विभागों से  कागज़ जब्त करने में लगी है. इससे सीबीआई की जांच पर भी सवाल उठ रहे हैं. अभी तक इस जांच एजेंसी ने किसी को भी रिमांड पर नहीं लिया है, यहाँ तक कि मुख्य सरगना ब्रजेश ठाकुर को भी नहीं. मुजफ्फरपुर पुलिस ने पिछले हफ्ते केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामला सौंपे जाने से पहले जो रिपोर्ट तैयार की थी उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि इस कांड का मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर सरकारी फंड और ऑर्डर पाने के लिए सेक्स रैकेट चलाता था. उसके तार नेपाल से लेकर बांग्लादेश तक जुड़े हुए थे.

चित्र : अनुप्रिया 


पुलिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि ठाकुर केतार गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) से जुड़े हुए थे और उसके रिश्तेदार और अन्य कर्मचारी, जिसे वह जानता था, उसमें प्रमुख पदों पर बैठे हुए थे। उसने इसके माध्यम से सरकारी अधिकारियों और बैंकरों के साथ मिलकर अवैध तरीके से खूब पैसा कमाया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रजेश ठाकुर ने पत्रकारहोने के नाते अपने रूतबे का खूब इस्तेमाल किया, जिसकी बदौलत उसे विज्ञापन के प्रावधानों के अनुरूप खड़ा नहीं उतरने के बावजूद सरकारी अधिकारियों की सिफारिश पर समस्तीपुर स्थित सहारा वृद्धाश्रम चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बिहार स्टेट एड्सकंट्रोल सोसायटी ने ब्रजेश ठाकुर के एक एनजीओ को योजनाओं के लिए प्रक्रिया का पालन किए बिना ही चलाने की अनुमति दे दी थी. रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि ब्रजेश ठाकुर इन योजनाओं को पाने के लिए एड्स कंट्रोल सोसायटी के अधिकारियों को लड़कियों की सप्लाई भी करता था. 

इसके अलावा मामले में फरार चल रही ब्रजेश ठाकुर कीमुख्य साथी  मधु पर भी सवाल खड़े किए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, मधु देह व्यापार जैसे धंधे में शामिल थी और ब्रजेश ठाकुर ने उसी का इस्तेमाल करते हुए मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान तक अपनी पहचान बनाई और मधु को अपने संगठन 'वामा शक्ति वाहिनी'के कागज पर अहम जगह दी.
फंड के मुख्य स्रोत समाज कल्याण विभाग की मंत्री मंजू वर्मा के साथ एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार: फोटो 3 अगस्त, 2018 


इन अहम जानकारियों के बावजूद सीबीआईकछुआ गति से जांच कर रही है. इस बीच स्वास्थ्य विभाग सहित कई विभागों से दस्तावेज गायब किये जाने की खबरें भी आ रही हैं. सीबीआई पर उठ रहे सवालों के बीच 6 जुलाई को हाईकोर्ट और 7 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है. उधर विपक्ष भी इस मुद्दे को जंतर-मंतर, नई दिल्ली तक पहुंचा कर राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा है. आज 4 जुलाई को जंतर-मंतर पर राजद द्वारा आयोजित कैंडल मार्च में अरविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी आदि विपक्ष के नेताओं के शामिल होने की संभावना है.

इनपुट: टाइम्स ऑफ़ इण्डिया, अमर उजाला

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कई अन्य शेल्टर होम में बलात्कार की पुष्टि, सरकार की भूमिका संदिग्ध

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सुशील मानव

बिहार के शेल्टर होम को लेकर एक के एक बादनये खुलासे हो रहे हैं। मुजफ्फरपुर के बालिका गृह ‘सेवा संकल्प’ के बाद मोतिहारी में निर्देश नामक बालगृह पर एफआईआर करके सारे बच्चों का मेडिकल इक्जामिन किया गया है, इसके अलावा छपरा महिला गृह में विक्षिप्त महिलाओं के साथ बलात्कार का शर्मनाक मामला सामने आया है। इनमें से कुछ महिलाएं गर्भवती भी बताई जा रही हैं। एफआईआर के बाद इस महिला गृह से 36 महिलाओं को सीवान शिफ्ट किया गया है।



 भागलपुर के शेल्टर होम पर भी डीएसपी को एफआईआर करने के लिए बोला गया है। जबकि सीतामढ़ी जिले में स्थित सेंटर डाइरेक्ट नामक बालगृह में भी संचालन के महज 40 दिन के भीतर एक बच्चे के गायब होने और दूसरे बच्चे के रहस्मयी स्थिति में मरने की बात सामने आई है।

14 बच्चियों का मेडिकल जांच कराने के लिए मधुबनी के शेल्टर होम से सदर अस्पताल लाया गया है। वहीं आस-पास के लोगों के अनुसार रात में कई संदेहास्पद हरकतें दिखाई पड़ती है।महिलाओं ने कहा कि यहां देर रात लड़कियों के चीखने, चिल्लाने और रोने की आवाज आती है। उसके बाद कोई गाड़ी आती है और लड़कियों को लेकर चली जाती है।


 बिहार के तमाम शेल्टर होम के उनको चलाने वालेएनजीओ के साथ- साथ बिहार कल्याण विभाग के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध लगने लगी है अब तो। सवाल उठता है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह बलात्कार कांड के तीन महीने बाद शर्म महसूसने वाले नीतीश कुमार ने अब तक बिहार टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट के आधार पर उन 15 शेल्टर होमों के साथ साथ समाज कल्याण विभाग के उच्च अधिकारियों के खिलाफ जाँच क्यों नहीं बैठाया है? आखिर उनके निगरानी करते रहने के बावजूद एक साथ इतने सारे शेल्टर होम में अनियमितता बलात्कार जैसी बर्बरता क्यों अब तक छुपी रही थी। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइसेंज की टीम महज कुछ घंटों के लिए शेल्टर होमों में जाती है और उनका सारा कच्चा-चिट्ठा निकालकर चली आती है फिर कल्याण विभाग के अधिकारी कैसे इतने दिन कुछ नहीं जान पाये? आखिर समाज कल्याण के अधिकारी क्या करने जाते थे शेल्टर होमों में? 

मुजफ्फरपुर केस में जनहित याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार आरोप लगाते हैं कि ‘अभी बहुत सड़न है बिहार के तमाम शेल्टर होम में जोकि बिना समाज कल्याण विभाग और राजनेताओं के सहयोग या मिलीभगत के संभव नहीं है। संतोष कुमार तो यहाँ तक कहते हैं कि ‘राजनीति का बलात्कार’ तो कब का कर दिया अब ‘बलात्कार की राजनीति’ करने पर तुले हैं।’



जंतर-मंतर पर धरना 
इस बीच मुजफ्फरपुर बालिका गृहरेपकांड मामले को लेकर शनिवार को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया, जिसमें कई विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए। धरने में पूर्व जेडीयू नेता शरद यादव, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, मीसा भारती, सीपीआई के नेता डी राजा और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह आदि शामिल हुए। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी प्रदर्शन में शामिल हुए और नीतीश सरकार पर हमला बोला। सीएम केजरीवाल के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल हुए।

 कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा किबिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में 40 लड़कियों के साथ जो हुआ इसलिए हम यहां है। उन्होंने कहा कि देश में अजीब सा माहौल बन गया है। महिलाओं और लड़कियों पर बलात्कार और आक्रमण हो रहा है। जो भी आज हिन्दुस्तान में कमजोर है उस पर खुलेआम आक्रमण हो रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि हम देश की जनता और महिलाओं के साथ खड़े हैं और पीछे हटने वाले नहीं हैं।

मुजफ्फरपुर कांड को लेकर जंतर-मंतर पहुंचेतेजस्वी यादव कहा कि देश की बेटियों की सुरक्षा के लिए साथ आएं। तेजस्वी यादव ने कहा कि मुजफ्फरपुर कांड की जो लकड़ी गवाह थी वह कहां हैं? जो लड़की गवाह थी उसे मधुबनी में एक शेल्टर होम में स्थानांतरित कर दिया गया है। स्थानांतरित होने के बाद उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। हम नहीं जानते की वह लड़की मर चुकी है या जिंदा है।


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ये बच्चियां वंचित वर्ग की हैं, शायद इसीलिए आपकी आत्मा सोयी हुई है

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अलका वर्मा 

मुजफ्फरपुर में बच्चियों से बलात्कार मामले में पटना हाई कोर्ट में पीआईएल करने वाली और उसकी कानूनी  पैरवी करने वाली एडवोकेट अलका वर्मा इस मामले में जाति और जेंडर के बहुत से सवाल उठा रही हैं. इसके पहले स्त्रीकाल के लिए सुशील मानव ने उनसे बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने सरकार को कटघरे में खड़ा किया था. कल 6 अगस्त को हाईकोर्ट दुबारा इस मामले को सुन रहा है. उसके पहले पढ़ें अलका वर्मा का यह नोट. इसे पढ़ आश्वस्त हो जायेंगे आप कि हाईकोर्ट में आपकी जुबान का प्रतिनधित्व समुचित और असरकारी है.
   


ये मामला उन बच्चियों को लेकर है जिनका कोई नहीं, देखने वाला कोई नहीं है। उनके लिए ही हमने ‘चाइल्ड वेलफेयर केयर’ (सीडबल्यूसी), ‘चाइल्ड प्रोटेक्शन विंग’ बनाकर रखा है।  जिस सरकार के पास इतना कुछ है वह सीडब्ल्यूसी को अपने कब्जे में क्यों नहीं रखती है? सरकार एनजीओ को पैसा देकर शेल्टर होम क्यों चलाने को दे रही है, वह खुद क्यों नहीं चला रही अपने अधीन रखकर। एनजीओ के बीच ताबड़तोड़ होड़ मची रहती है फंड लेने के लिए। मुजरिमों की तरह तो वे बच्चियों को रखते हैं, जबकि कोई फैसिलिटी भी नहीं देते हैं। मैंने मुजफ्फरपुर मामले में जो मांग हाई कोर्ट से की है उसमें यह भी है कि बिहार से एक लीगल सर्विस अथॉरिटी खुद सुपरवाइज करे। क्योंकि बिहार स्टेट लीगल थॉरिटी के अधीन एक डिस्ट्रिक्ट लेवल सर्विस अथॉरिटी हर जिले में होती है।जिस जिले में भी होम होगा उस जिले के एसपी, डीएसपी भी उसके मेंबर होंगे। तो होम डायरेक्टली एडमिनिस्ट्रेशन के तहत उनके हाथ में आ जाएगा। मेरा ये भी प्रेयर है कि बिहार लीगल अथॉरिटी सारे होम की सुपरवाइजरी बॉडी बन जाए और सुपरवाइज करे। बिहार में बिहार लीगल अथॉरिटी सुपरविजन करे और डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट लीगल अथॉरिटी सुपरविजन करे। डीएम और एसपी को सुपरविजन का काम दिया जाए। जहाँ पर डीएम और एसपी पहुँच रहे हैं सुपरविजन के लिए वहाँ पर मुझे नहीं लगता किसी की हिम्मत होगी कि ऐसा काम करे। जब उन्हें पता हो कि डीएम और एसपी सुपरवाइज कर रहें हैं तो बृजेश ठाकुर जैसे लोगो की हिम्मत होगी किसी अनाथ बच्ची को छूने की।

बताइये लड़की को मार देते हैं जान से। बोन इंजरी कर देते हैं,लड़कियां अपना हाथ काट लेती हैं सुसाइड करने के लिए। यह कितना दुखद है, यह राज्य के लिए शर्म की बात है। शर्म की बात है कि इतने लोग वहाँ इस्पेक्शन के लिए आते थे, वे भी इनवाल्व थे, और बाकी के लोगो को खबर ही नहीं हुई। टाटा इंस्टीट्यूट के बच्चे थे वे फ्रेश माइंड के थे तो उन्होंने इसको उजागर कर दिया। हम लोगो की संवेदना भोथर हो गई है। अगर हम लोग इसी तरह से चुप रहे तो हमारी आनेवाली पीढी के लिए जो दुनिया होगी वो बहुत ही खतरनाक और प्रदूषित होगी।


अलका वर्मा (बायें से पहली) अपने साथी वकीलों के साथ 


मेरे बैंक में पैसा आ गया, हमारी ज़रूरतें पूरी हो गई, हमारे बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ने लग गए, हमारी पर्सनल विश पूरी हो गई, तो बस समाज से कट गए,बाकी के समाज से कोई मतलब ही नहीं है। माना कि आपकी ज़िंदग़ी बन गई पर आपके बच्चों को भी समाज में जीना है। समाज को सुंदर बनाइए इसीलिए ये आपकी अकाउंटिबिलिटी है, यदि समाज आपको कुछ दे रहा है तो गिव बैक टू सोसायटी। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है।
हम अपनी प्रतिक्रियाओं में भी सेलेक्टिव हैं। बहुत से लोग बहुत माडर्न बनते हैं रहन-सहन के स्तर पर। लेकिन विचारों में माडर्निटी नहीं लाते हैं ।उसमें खुलापन नहीं लाते हैं। एक दायरे में सिमटे रहते हैं। और विशेषकर दलित पिछड़ी जातियों, वंचित वर्ग और गरीबों के साथ में कुछ ऐसा होता है तो ये उनकी संवेदनाओं को झकझोरता नहीं है, आमजन की घटनाओं को वे मानते हैं कि ये आम बात है, इनके साथ तो ऐसा होता रहता है। लोगों की संवेदनाएं भोथर हो गई हैं। आप देखिए किसी दलित के साथ में कोई कांड होता है तो सोशल मीडिया के पेज पर ही देखिए, जो लोग बहुजन के प्रति संवेदनशील हैं, बहुत सहिष्णु हैं, वही लोग बोलते हैं, उनके साथ खड़े होते हैं बाकी लोग चुप रहते हैं। जो सवर्ण लोग हैं, वैसे तो बीजेपी का विरोध करेंगे लेकिन इन मुद्दों पर एकदम हटे रहेंगे। ये जो कास्टिज्म वाली फीलिंग है, बैकवर्ड-फॉरवर्ड वाली फीलिंग है, वह जीवित रहता ही है उनके भीतर।

पेशी के लिए ले जाया जाता ब्रजेश ठाकुर 

बरमेसर मुखिया ने कितना बुरा काम किया किउसे इंसान कहना भी सही नहीं होगा। लेकिन उसकी जाति के सामंती लोग उसे अपना मसीहा मानते हैं। बरमेसर मुखिया, गोडसे और ब्रजेश ठाकुर जैसे लोगों को मानने वाले लोगो को शर्मसार किया जाना चाहिए। जब मैं कभी रणवीर सेना के बारे में कुछ पोस्ट करती हूँ तो लोग आकर बोलते हैं छोड़ दीजिए मैम पुरानी बातों को, लेकिन कभी ये नहीं बोलेंगे कि हाँ वो गलत था। उसके बहुत बुरा किया। ऐसे ही लोग आकर दुहाई देते हैं कि जातिवाद छोड़ो, जातिवाद छोड़ो लेकिन जाति इनके अंदर तक समायी हुई होती है।जब जहाँ मौका मिलता है फौरन फन उठा लेता है। अपनी जाति के जो क्रिमिनल होते हैं, ये लोग उनको हीरो बनाकर रखते हैं। इसीलिए हमारी डेमोक्रेसी फेल हो जाती है। शिक्षा का हालत बहुत बुरा है, खस्ता है। दरअसल लोगो के पास फुर्सत बहुत है। इन्हें पर्याप्त रोजगार के मौके मुहैया करवाया जाए ताकि ये क्रिएटिव और प्रोडक्टिव हो जाएं।

मुजफ्फरपुर की बच्चियां निश्चित तौर पर शोषित,वंचित गरीब और पिछड़े तबके की लड़कियाँ हैं, यह बात कोई न भी बताए तो समझ लेना चाहिए, वे पिछड़ी जाति से  और आर्थिक तथा सामाजिक गरीब हैं। हालांकि उनकी जाति को लेकर प्रमाण कुछ भी नहीं है, कम-से-कम मेरे पास उसका डेटा नहीं है। कुछ आयोगों का मानना है कि लड़कियां दलित, आदिवासी हैं तो उनेक अपराधियों पर एट्रोसिटी एक्ट भी लगाया जाना चाहिए। मुझे भी लगता है, मुझे यदि उनके जाति प्रमाण पत्र मिल जाएँ तो हम अपने पीआईएल में एक प्रार्थना और जोड़ देंगे। अभी मैं उसमें इनके पुनर्वास का प्रेयर जोड़ने वाली हूँ। प्रॉपर रिहैबिलिटेशन ऑफ गर्ल्स, प्रॉपर काउंसिलिंग बहुत ज़रूरी है-और इसके लिए प्रयास होगा अब मेरा। क्योंकि मैंने भी सुना है कि कुछ लड़कियाँ बहुत ही विचित्र व्यवहार कर रही थीं। तो ज़रूरी है कि उनकी मनोवैज्ञानिककाउंसिलिंग हो। उन लड़कियों को बहुत संवेदना की ज़रूरत है।
जरूरत है कि शेल्टर होम से एनजीओ के हाथ एकदम हटा दिए जायें। अब एनजीओ को शेल्टर होम न सौंपा जाए कभी। क्योंकि एनजीओ बहुत बंदरबांट करता है। गलत तरीके से फंड लेने के लिए समझौते करेगा गलत शलत पेशकश करेगा। ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ द्वारा चलाये जा रहे शेल्टर  होम की कुछ रोज पहले जाँच हुई थी, फिर 9 और कॉन्ट्रैक्ट मिले थे। यह बेहद अफसोसनाक है। उसके अख़बार का सर्कुलेशन मिनिमम था। लेकिन उसके पास सरकारी विज्ञापन लाखों लाख के आते थे। इसपर सवाल होने ही चाहिए। वह कई अधिकारियों, पत्रकारों के साथ दिल्ली जता था, वे सब बिहार भवन में रुकते थे। अगर सिविल सोसायटी अपनी आँख बंद करके रखेगा तो यही होगा। ।

पढ़ें: बच्चों के यौन उत्पीड़न मामले को दबाने, साक्ष्यों को नष्ट करने की बहुत कोशिश हुई: एडवोकेट अलका वर्मा 

जाति मायने रखती है लेकिन चिंताजनक और भी कुछ है। बच्चों के लिए हम लोग बहुत सारा प्रोग्राम चलते हैं, और उसमें बहुत सारा फंड आता है। दलित वर्ग के लोग भी आईएएस हैं, और उन्हें भी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बनाया जाता है। लेकिन वे लोग भी अपने ही लोगों का फंड खा जाते हैं। एसएम राजू को अभी तक बेल नहीं मिला है। कीर्ति रमैया हैं, उन्हें बच्चों को कंप्यूटर चलाने के लिए फंड मिला था पर उन लोगो ने उसका पूरा गबन कर लिया। और उसमें लगभग 90 प्रतिशत लोग अनुसूचित जातिके ही थे। यह एक मानवीय प्रवृत्ति बन गयी है, जैसे मिले लूट लो।ये एक ईमानदार सुपरविजन से ही रोकी जा सकती है।

आख़िरी बात कि हमें बच्चियों को न्याय मिलने तक लड़ना होगा. इस घटना को सबक के लिए एक उदाहरण बनाना होगा

सुशील मानव से बातचीत पर आधारित 


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एनएसडी में छेड़छाड़, मामले को दबाने की कोशिश, मीडिया में स्त्रीविरोधी रिपोर्टिंग

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सुशील मानव 

वर्कशॉप के दौरान एनएसडी के पूर्व  शिक्षक और वर्तमान में गेस्ट शिक्षक  सुरेश शेट्टी द्वारा छात्रा से छेड़छाड़ करने का आरोप



नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के एक गेस्ट टीचर सुरेश शेट्टी पर एक लड़की ने गलत ढंग से निजी अंगो को छूने का आरोप लगाया है। छात्राका आरोप है कि संस्थान के अतिथि शिक्षक शेट्टी ने एक सीन में एक्ट करने की प्रक्रिया के दौरान उसके साथ कई बार छेड़छाड़ करते हुए उसके निजी अंगों को छुआ था। बता दें कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 2-6 जुलाई के बीच पाँच दिवसीय एक्टिंग स्किल टेस्ट नाम से कार्यशाला आयोजित की गई थी। पीड़िता के मुताबिक ये घटना कार्यशाला के पहले ही दिन यानि 2 जुलाई की है जिसके बाद लड़की ने 3 जुलाई को एनएसडी में शिकायत की थी। जबकि 15 जुलाई को रिजल्ट आया जिसमें पीड़ित लड़की को फेल कर दिया गया। शिकायत मिलने के बाद स्त्रीकाल को इसकी सूचना मिल गयी थी, हमने कोशिश की कि लडकी से या आरोपी शिक्षक से कांटेक्ट हो. लेकिन ऐसा लगा पूरा एनएसडी और उससे जुड़ा समूह गुप्तता बरतकर मामले को निपटना चाहता है. एनएसडी के डायरेक्टर का भी यही रवैया था.



बता दें कि पीड़ित लड़की ने एनएसडी में एक्टिंगके तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स के लिए अप्लाई किया था। इस कोर्स में दाखिले के लिए हर छात्र-छात्रा को दो फेज के टेस्ट से गुजरना होता है। पहले फेज में आवेदन करनेवाले अभ्यर्थियों का इंटरव्यू लिया जाता है और फिर दूसरे फेज में पाँच दिन का वर्कशॉप करवाया जाता है जोकि आवेदन करनेवाले अभ्यर्थियों के एक्टिंग स्किल की जाँच के लिए होता है। वर्कशॉप के दौरान संबंधित छात्र-छात्राओं को कैंपस में ही रहना होता है। इस साल के वर्कशॉप (2 से 6 जुलाई) के दौरान पहले ही दिन गेस्ट टीचर सुरेश शेट्टी ने हॉल में 20-20 के ग्रुप में अभ्यर्थियों को खड़ा करके ड्रामा के दौरान दिये जाने वाले पोज भाव भंगिमा और हाव-भावदर्शाने के लिए अलग-अलग सीन क्रिएट करके अभ्यर्थियों को उस पर अभिनय करने को दिए थे। अभ्यर्थियों के गलत एक्ट करने पर सुरेश शेट्टी उन्हें छूकर सही पोज करने के लिए गाइड करते। पीड़ित लड़की के मुताबिक इसी दैरान आरोपी शिक्षक सुरेश शेट्टी ने बार बार गलत तरीके से जानबूझकर उसके निजी अंगो को छुआ। जिसके कारण उसका पोज बिगड़ जाता था और शेट्टी महोदय बार-बार उसका पोज सही करने का बहाने फिर से उसके साथ छेड़-छाड़ करने लग जाते थे। एक बार फिर से स्पष्ट कर दूँ कि ये वर्कशॉप के पहले दिन ही की बात है। और उसके ठीक अगले दिन यानी 3 जुलाई को पीड़ित लड़की ने एनएसडी में उक्त शिक्षक सुरेश शेट्टी की शिकायत की थी।

दूसरे दिन की कार्यशाला समाप्त होने के बाद पीड़िता के ग्रुप की लड़कियों को बुलाकर एनएसडी प्रबंधन द्वारा पूछताछ की गयी थी और कैंपस में या कैंपस के बाहर किसी से कुछ न कहने और बात न करने की हिदायत दी थी। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान पीड़ित लड़की के माता-पिता भी एनएसडी कैंपस में आये थे और पुलिस रिपोर्ट करवाने की बात बोल रहे थे। इस बीच एनएसडी कैंपस में पुलिस के आने की भी सूचना है। वे पीड़िता के माता-पिता की शिकायत पर ही आये होंगे। एनएसडी में आरोपी शिक्षक शेट्टी के परिवार वालों के भी कैंपस में आने की सूचना मिली है। तो क्या पुलिस एनएसडी कैंपस में आरोपी और पीड़िता के बीच समझौता करवाने के लिए ही आई थी। क्योंकि उसके बाद ये मामला कैंपस के भीतर ही दबा दिया गया। इस बीच 23 जुलाई 2018 को मैं एनएसडी के डायरेक्टर वामन केंद्रे जी से उनकी प्रतिक्रिया लेने के लिए दो बार उनके मोबाइल नंबर पर कॉल किया, दोनो ही बार उन्होंने मेरा कॉल रिसीव करने के बाद मेरे बाबत पूछकर बिना कोई जवाब दिये मीटिंग में होने की बात कहकर कॉल डिसकनेक्ट कर दिए। थक हारकर मैंने उन्हें दो बार उनके वाट्सएप नंबर पर मेसेज किया कि वो इस मामले पर एनएसडी संस्थान के डायरेक्टर होने के नाते अपनी प्रतिक्रिया और सुरेश शेट्टी के पक्ष को हमारे सामने रखें लेकिन दोनो ही बार उन्होंने मेसेज को देखकर (वाट्सएप पर मेरे द्वारा भेजे मेसेज पर लगी दोनो टिक नीली दिख रही थी)अनदेखा कर दिया और कोई जवाब देने की ज़रूरत ही नहीं समझी।
इस बीच 15 जुलाई को एनएसडी में एक्टिंग कोर्स के एडमीशन टेस्ट का रिजल्ट आया जिसमें गेस्ट टीचर सुरेश शेट्टी पर आरोप लगानेवाली उक्त लड़की फेल हो गई या फेल कर दिया गया। दोनो ही संभावना है। पीड़ित लडकी ने1 अगस्त को तिलक मार्ग थाने में आरोपी शिक्षक के खिलाफ़ छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज करवाया है। बता दें कि आरोपी गेस्ट शिक्षक सुरेश शेट्टी एनएसडी में ही शिक्षक थे और रिटायर होने के बाद संस्थान ने उन्हें दोबारा बतौर गेस्ट टीचर के रूप में नियुक्ति दे रखा है। नाम न जाहिर करने की शर्त पर कई छात्राओं ने सुरेश शेट्टी को गलत आचरण वाला आदमी बताते हुए कहा है कि हाँ वो ऐसे ही रहे हैं हमेशा से। उस रोज यानि 2 जुलाई को सुरेश शेट्टी द्वारा पीड़िता लड़की को गलत तरीके से छूने की बात वर्कशॉप में पीड़िता के ग्रुप में रहे कुछ अभ्यर्थियों ने कही है। सुरेश शेट्टी मंडी हाउस स्थित श्री राम सेंटर में भी बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहां कि कई पूर्व छात्राओं ने स्वीकारा है कि इस आदमी ने कई लड़कियों के साथ पहले भी बदतमीजी की है। एनएसडी में उनसे जुड़े छेड़छाड़ के और कई मामले पहले भी उठने के बाद कैंपस में ही दबा दिए गए ये कहकर कि इससे कैंपस का नाम खराब होगा। एक पूर्व छात्रा बताती हैं कि एनएसडी में सिर्फ सुरेश शेट्टी ही नहीं हैं उन जैसे और भी कई लोग हैं जो छात्राओंसे छेड़छाड़ कर चुके हैं।
सुरेश शेट्टी : शिक्षक जिसपर आरोप है 

इस मामले में रंगकर्मी कार्यकर्ता रंग-आलोचक और ‘समकालीन रंगमंच’ पत्रिका के संपादक राजेश चन्द्र गंभीर सवाल खड़े करते हुए पूछते है कि,  ‘एनएसडी में भी कोई सेक्सुअल हरासमेंट कमेटी होगी। ये सभी संस्थानों में कानूनन ज़रूरी हैं। इसमें कौन लोग हैं? उसकी क्या भूमिका रही इस मामले में ? क्या उसने उत्पीड़क के पक्ष में काम किया ? या उसका अस्तित्व ही नहीं है? ’ राजेश आगे कहते हैं ‘क्या कारण है कि एनएसडी के लोग अपने परिवार की महिलाओं को यहाँ पढ़ाना उचित नहीं समझते.’ इस बीच महिला कानून के जानकारों का मानना है कि यदि संस्थान में आंतरिक शिकायत की गयी थी और शिकायत के बाद प्रबंधन ने कोई कार्रवाई नहीं की तथा पीडिता को ही समझाने की कोशिश की तो महिला उत्पीड़न क़ानून के दायरे में उनपर भी कार्रवाई होनी चाहिए
वहीं इस मामले में पीड़िता लड़की को ही आरोपी बनाकर पेश करने वाले अख़बारों की  रिपोर्टिंग पर सवाल खड़े करते हुए अभिनेता, निर्देशक कवि और शिक्षक ईश्वर शून्य कहते हैं कि- ‘अख़बार वाले सब बिके हुए हैं। वो जानबूझकर लड़की पर आरोप लगा रहे हैं कि लड़की ने फेल होने के बाद एडमीशन के लिए ड्रामा किया है जबकि लड़की ने 3 जुलाई को ही एनएसडी में आरोपी टीचर के खिलाफ शिकायत की थी तब तो रिजल्ट भी नहीं आया था।’


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