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तुम मेरे साथ रहो मेंरे कातिल मेरे दिलदार

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निवेदिता
पेशे से पत्रकार. सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनों में भी सक्रिय .एक कविता संग्रह ‘ जख्म जितने थे’. भी दर्ज कराई है. सम्पर्क : niveditashakeel@gamai

मेरे लिये प्रेम उतना ही सहज हैजितना धूप, बारिश ,बादल, पानी. प्रेम तो घटा की तरह उमड़ कर आता है, आप भीतर तक भीग जायें. बारिश की झिर-झिर जैसे सुनायी देती है प्रेम आपके भीतर वैसे ही बजता है. मैंने हर दिन प्रेम किया है. मुझे राम रधुराई के सांवले रंग से प्यार है. मुझे कामदेव से प्यार है. जिनकी वजह से पूरी कायनात मुहब्बत में गिरफ्तार है. जब आपको लगे दरख्त झुककर बेलों पर छा गए, नदियां समंदर में जा मिलीं,, जल , थल एक  हुए, कोकिल की आवाज खुद मुहब्बत की आवाज बन गई. तो यकीनन आप प्रेम में हैं. प्रेम यही तो है. जो आपको यकीन दिलाये कि आप जिंदा कौम है.

अगर आप मनुष्य हैं तो प्रेम तो होगाही. क्या कोई प्रेम विहीन दुनिया में जी सकता है? मनुष्य होने की पहली शर्त प्रेम ही है. इस देश के संविधान ने भी दो वालिग लोगों को प्रेम करने, अपने प्रेम के साथ रहने और जीने की आजादी दी है. फिर क्या वजह है कि आज हमारे देश में प्रेम के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है. प्रेम को अपराध की तरह देखा जा रहा है. कौन लोग हैं,जो प्रेम को हिंसा में बदलने की साजिश कर रहे हैं. कौन लोग है जो प्रेम को हिंसक और बदबूदार विचारों की आग में जला देना चाहते हैं.

जब जरा गरदन झुका ली देख ली तस्वीरें यार

प्रेम का जादू एक ऐसा विविधतापूर्ण कथानक है ,जिसे कितने ही स्वरों में गाया जा सकता है. और हर एक आदमी का प्रेम दूसरे आदमी के प्रेम से उतना ही अलग होगा जितने संगीत के दो स्वर. प्रेम का यह स्वर हर युग में हम सुनते रहे हैं. सोहनी-महीवाल,हीर-रांझा,शीरीं-फरहाद,लैला-मजनू,सस्सी-पुन्नु और मिर्जा गालिब-जैसे प्रेमी युगल सदियों से हमारे देश के जनमानस में रचे बसे हैं, जिनका प्रेम सांस्कृतिक प्रतीकों में बदल गया जिसे ना तो सामाजिक निषेध  दुनियाबी रस्मों-रिवाज छू पाते हैं. उसी देश में प्रेम एक अपराध है. उसी देश में प्रेम को लव जेहाद कहा जा रहा है. उसी देश में प्रेमियों पर पहरा बिठाया जा रहा है. जिस रोमियों को इतिहास में हम प्रेम के लिए मर मिटने के लिए जानते है उसे हमारी सत्ता प्रेम पर पहरा बिठाने के लिए इस्तेमाल कर रही है. ये हमारी सभ्यता और इतिहास के साथ बलात्कार है. जो लोग प्रेम के विरुद्ध खड़े हैं वे भाषा,जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग विभेद के साथ खड़े हैं. जब आप किसी से प्रेम करते हैं तो उस समय सारी दिवारें टूट जाती हैं. प्रेम करने का मतलब है एक -दूसरे के लिए सर झुकाना. एक-दूसरे की खुशी  में शामिल होना. महान नाटककार कामू कहते हैं- प्यार तो धीरे-धीरे सर झुका देता है. जिनकी गर्दन अकड़ी हुई हो, सिर उठा हुआ हो, आंखें जमी हुई हों उनके अभिमानी दिल में प्यार क्या करेगा?

रक्त शुद्धता, स्त्री दासता और लव जेहाद

महान नर्तकी  इजाडोरा कहती है.- कितनाअजीब और परेशानी भरा है एक मनुष्य के हाड़-मांस के माध्यम से उसकी आत्मा तक पहुंचना. हांड, मांस के आवरण के जरिये आंनद,उत्तेजना और मोह को तलाशना. सबसे बढ़कर इस आवरण के जरिये उस चीज को तलाशना, जिसे लोग खुशी कहते हैं-और उस चीज को , जिसे लोग प्रेम कहते हैं. प्रेम दरअसल तमाम सत्ता को चुनौति देता है. इसलिए प्रेम उनलोगों के लिए खतरा है जो अपनी अपनी सत्ता बनाये रखना चाहते हैं. जब आप प्रेम करते हैं तो वे तमाम दीवारें दरकती हैं जिन्हें धर्म ने समाज के ठेकेदारों ने अपने फायदे के लिये बनाया. सबसे पहले घर की जंजीरे टूटती हैं. यही वजह है जब यूपी में प्रेम पर पहरा बिठाया गया तो मां, बाप खुश हुए. क्या हम ऐसा माहौल नहीं बना सकते जहां हमारी नयी पीढ़ी खुली हवा में सांस लें. वे जान सके की प्रेम का सही मतलब  होता है. एक जिम्मेदार प्रेमी होना. पर कुछ लोग प्रेम को अपराध साबित करने में लगे हैं. इसलिए अब यूपी के शिक्षण संस्थानों में पुलिस सादे वेश में पहरा देगी. ये पहरा सिर्फ प्रेम पर नहीं है. ये पहरा हमारे खान, पान, पहने, ओढ़ने, सोचने, विचारने और बोलने -लिखने पर भी है. यह संयोग नहीं है कि जब कोई लड़की कविता लिखती है तो उसे बलात्कार की धमकी दी जाती है. जब प्रेम में रहती है तो उसपर हमला किया जाता है.


हमारा समाज स्त्री को एक माल कीतरह देखता है. उसे लगता है कि किसी कौम, समुदाय या व्यक्ति से बदला लेने का यह तरीका सबसे कारगर है कि एक स्त्री के साथ बलात्कार कर दिया जाय. स्त्री गुलाम है, भोगने की वस्तु है इसलिए उसपर हमला परिवार के पौरुष पर हमला है. इतने हिंसक और धृणा के इस वातावरण में मुझे लगता है प्रेम ही है जो हमें बचा सकता है. प्रेम ही है जो हमें मनुष्य बने रहने में मददगार हो सकता है. मेरी उम्मीद नयी पीढ़ी है. मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि ये पीढ़ी प्रेम के पक्ष में रहेगी. ये पीढ़ी सारी वर्जनाओं के विरुद्ध खड़ी होगी. मैं फैज की तरह कहना चाहती हूं अपनी नयी पीढ़ी से-तुम मेरे साथ रहो मेंरे कातिल मेरे दिलदार.

स्त्रीकाल का संचालन 'द मार्जिनलाइज्ड' , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : 

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