पूजा सिंह

जब्या (सोमनाथ अवघडे) एक दलित किशोरहै जो महाराष्ट्र के एक गांव में रहता है और गांव की ही पाठशाला में सातवीं कक्षा में पढ़ता है. जब्या का परिवार बेहद गरीब है और मेहनत करके अपना पेट पालता है. जब्या को जब तक अपना स्कूल छोड़कर परिवार के काम में हाथ बंटाना पड़ता है. जब्या का अपनी कक्षा में पढऩे वाली एक सवर्ण लड़की शालू से इकतरफा लगाव है और वह मन ही मन उसे चाहता है. वह उसे अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए वशीकरण अपनाना चाहता है और इस कोशिश में हमेशा लगा रहता है कि उसे कहीं से काली गौरैया मिल जाए जिसे जलाकर वह उस लड़की पर छिड़क सके ताकि वह उसकी ओर आकर्षित हो.
जब्या का परिवार दलित है और यही वजहहै कि दिन रात होने वाले अपमान में उनको कुछ भी अस्वाभाविक नहीं लगता लेकिन जब्या स्कूल में पढ़ता है और वह अपने आत्मसम्मान को लेकर बेहद सजग है. उस गांव में जहां सुअर से छू जाने पर शालू और उसकी सखी को घरवालों द्वारा गोमूत्र छिड़ककर पवित्र किया जाता है वहां जब्या और उसके परिवार को एकदिन एक सुअर को पकडऩे का जिम्मा सौंपा जाता है. यह फिल्म का क्लाइमेक्स है जहां जब्या को न चाहते हुए भी परिवार वालों के साथ सुअर पकडऩे जाना पड़ता है जहां सारा स्कूल उसे ऐसा करते देखता है और ठहाके लगाता है. साथ पढऩे वाले बच्चे उसे फैंड्री (सुअर) कहकर चिढ़ाते हैं. हंसने वालों में जब्या की प्रिय शालू भी शामिल है.
फिल्म के आखिर में परेशान जब्या जब अपनेपरिवार की बेइज्जती और बरदाश्त नहीं कर पाता तो वह हंसने वाले लोगों पर पत्थर फेंकना शुरू कर देता है. एक किशोर बालक द्वारा उछाले गए पत्थर से भला किसे चोट लग सकती है लेकिन लगती है. जब्या का फेंका गया पत्थर सीधा परदे से बाहर निकलता है और दर्शक के भीतर घुसे बैठे सवर्ण जातिवादी व्यक्ति के सीने में नश्तर सा धंस जाता है.फिल्म की खास बात यह है कि यह लाउड नहीं है. न गैर जरूरी गीत संगीत, न लंबे चौड़े संवाद या भाषण. बस ऐसा लगता है कि किसी ने एक कैमरा उठाया और महाराष्ट्र के एक गांव में घटने वाली घटनाओं का अंकन कर लिया. साथ में चलती इकरफा मूक प्रेम कहानी जिसका नायक के मन से बाहर आना उतना ही असंभव है जितना कि किसी सवर्ण का भाग-भागकर सुअर पकडऩा.
कुछ दृश्य हैं जो आंखों में अटक जाते हैं औरकिरच की तरह चुभते हैं. कपड़े की दुकान पर गोरे चिट्टे नायक को देखकर हताश जब्या का अपनी नाक को उसी के जैसा नुकीला बनाने के लिए क्लिप से दबाना, सुअर पकड़ते वक्त अचानक स्कूल में जन-गण-मन शुरू हो जाने पर जब्या का और उसे देखकर उसके पूरे परिवार का ठिठक कर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना. यह दृश्य देखकर जेहन में रघुवीर सहाय की कविता गूंजती है- राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है, फटा सुथन्ना पहने जिसका गुण हरचरना गाता है. याद आती है किसी की कही बात कि राष्ट्रगीत में तो पूरे पूर्वोत्तर का जिक्र तक नहीं. लेकिन जिन प्रांतों का जिक्र है क्या उनमें रहने वाले कचरू और जब्या का भी ध्यान यह देश रखता है?
जब्या के उछाले पत्थर के जिक्र के बिनाबात खत्म नहीं होगी. वह पत्थर अंतरिक्ष में उछाला गया है और अगर हमारा समाज यूंही अपने जन के आत्म सम्मान को अपने लिए पोषक तत्व बनाए रहा तो एक दिन वह पत्थर तोप के गोलों की तरह बरसेगा और खत्म कर देगा उस समाज को जहां बी आर अंबेडकर और ज्योतिबा फुले केवल तस्वीर हैं और भाईचारा और सद्भाव केवल किताबों के चैप्टर.