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एचएमटी-सोना धान की खोज करने वाले दलित किसान का परिनिर्वाण

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स्त्रीकाल डेस्क 


एक छोटे से प्लाट पर एचएमटी-सोना सहित धान की विविध किस्मों के आविष्कार कर्ता दलित किसान दादाजी रामजी खोबरागड़े ने महाराष्ट्र के शोधग्राम के अस्पताल में रविवार को आखिरी सांस ली। खोबरागड़े पैरालिसिस से जूझ रहे थे। आज देश भर में उगाया जाने वाला एचएमटी-सोना का आविष्कार उन्होंने ही किया था। लेकिन दुनिया की तिकडमों से वे लड़ते रहे और मुफलिसी में जिये एवं मरे पेटेंट नियमों की विशेष जानकारी न होने और उसकी दावेदारी के लिए सरकारी सहूलियत न होने की स्थिति में वे अपने अविष्कारों से ख़ास आर्थिक हासिल नहीं कर सके



पंजाबराव कृषि विद्यापीठ ने किया था उन्हें सम्मानित 

79 साल के अम्बेडकरवादी खोबरागड़े चंद्रपुर के नांदेड़ गांव के रहने वाले थे। पंजाबराव कृषि विद्यापीठ ने उन्हें सम्मानित किया था लेकिन इसी ने उनके आविष्कार को एचएमटी  के नाम से अपना बना लिया और उन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया था।  वे इसके लिए सिस्टम से एक असफल लड़ाई जीवन के अंतिम दिनों तक लड़ते रहे।

विद्यापीठ का दावा रहा है कि उसने खोबरागड़े से बीज लिए और उन्हें विकसित किया जबकि इन्डियन एक्सप्रेस, लोकसत्ता आदि के अनुसार खोबरागड़े ने सात अन्य धान की प्रजातियां विकसित कीं। उन्हें 2005 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अवॉर्ड भी मिला।

HMT घड़ी के नाम पर रखा धान की प्रजाति का नाम

खोबरागड़े के पास डेढ़ एकड़ जमीन थी। रिसर्च की प्रेरणा  उन्हें पिता से विरासत में मिली। उनके पिता कुछ खास तरह के अनाज को बचाकर रखते थे। 1983 के आस-पास खोबरागड़े को कुछ ऐसे चावल दिखे जो ग्रे और पीले रंग के थे और साइज में छोटे थे। उन्होंने इसे संरक्षित कर दिया और अगले सीजन में उनकी बुआई की। उनकी पैदावार बढ़ती गई और 1988 तक क्षेत्र के कई किसानों ने इसकी बुआई की। पास की मार्केट के एक व्यापारी ने बीज के कुछ बैग खरीदे। खोबरागड़े ने तब एक एचएमटी घड़ी खरीदी थी। इसी के नाम पर उन्होंने चावल को एचएमटी नाम दिया। इसके बाद अपने अलग टेस्ट और खुशबू की वजह से यह एचएमटी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। पूरे जिले के लोग इसे उगाने लगे।

'गोल्ड मेडल'की जगह सरकार ने दे दिया तांबा

 2006 में महाराष्ट्र सरकार ने खोबरागड़े के कृषि भूषण पुरस्कार दिया। यह अवॉर्ड विवादित हो गया क्योंकि इसमें जो ‘गोल्ड मेडल’ दिया गया था वह तांबे का निकला। बाद में सरकार ने जांच बिठाई और इसे असली सोने से बदला गया।

आखिरी दिन मुफलिसी में बीते

जीवन के आखिरी साल खोबरागड़े ने गरीबी और बीमारी में बिताए। फेसबुक क्राउड फंडिंग की मदद से सुखदा चौधरी ने उनकी सहायता की। 15 दिनों में 7 लाख रुपए जमा किए गए लेकिन दादाजी खोबरागड़े की बीमारी ठीक न हो सकी। उनके पोते दीपक कहते हैं, 'उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर 20 एकड़ जमीन और एक घर की मांग की थी। लेकिन अब सरकार की तरफ से सिर्फ इलाज के लिए 2 लाख रुपए ही दिए गए थे।'सोमवार को उत्तरी नागपुर में दादाजी खोबरागड़े का अंतिम संस्कार किया गया।


इनपुट: आउटलुक, वेलीवाड़ा.कॉम 

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