प्रवेश सोनी
रंगों से बचपन से ही लगाव था ,पत्रिकाओं में आये चित्र कापी करके उनमे रंग भरना अच्छा लगता था |लेकिन निपुणता के लिए कही कोई प्रशिक्षण नहीं ले पाई |विवाह उपरान्त सामूहिक परिवार में पर्दा प्रथा के साथ तो संभव ही नहीं था की अपने शौक को निखारती |लेकिन जहा चाह वहा राह ...बच्चो की ड्राइंग बुक मेरी गुरु बनी |
मेरी बड़ी बेटी जो आज सोफ्ट्वेअर डेवलोपर है ,उसकी नर्सरी की ड्राइंग बुक आज तक सहेजी हुई है मैंने |यह सफ़र जारी रहा और मेरे शौक ने जूनून की हद्द पा ली थी |केनवास पर कई पेंटिंग्स बनाई ,जिन्हें सबने सराहा ,विशेषकर फेसबुक पर काफी प्रोत्साहन मिला |वहाँ ही कई प्रेरक गुरु भी मिले जिन्होंने मुझे मीडियम की जानकारिया दी |
पेंटिग्स से रेखांकन बनाने की भी अजीब ही कहानी है |अक्सर आढी ,तिरछी रेखाये खीचने की आदत हो चली थी रेखायें भी बोलती है ,बतियाती है हमसे |दीवारों के उखड़े प्लास्टर में उभर आई आकृतियां |जाने क्यों मुझे आकर्षित करती है |ढूढती रहती हूँ उनमे कुछ | पढ़ते -पढ़ते अक्सर किताब के पन्नो के कोनो पर कलम चल पढ़ती ,और फूल पत्तियाँ बन जाती है | लिखते वक़्त भी ऐसा ही होता है ,जब लिखते –लिखते कही रुकावट आ जाती है ,कलम अनायास ही शब्दों को फूल पत्तियों से सजाने लग जाती है |डायरी में जगह जगह अजीबोगरीब आकृतियां बनी मिलेंगी |
तभी एक फेसबुक मित्र ने ,जो नई पत्रिका का संपादन कर रहे थे ,मुझे पत्रिका के लिए रेखांकन बनाने को कहा |मैंने उन्हें नहीं बना पाने की असमर्थता जताई ,लेकिन उन्होंने ही पूरे विश्वास से कहा की आप बेहतर बनायेंगी |अब दुविधा वही नया काम ,.........कैसे शुरू करूं |
फिर वही किताबे ही गुरु बन कर मेरे साथ रही |मैंने प्रत्रिकाओ में छपे रेखांकन का अध्यन किया और लगभग २० चित्र बनाये |मित्र को देने से पहले उन्हें फेसबुक पर अपनी वाल पर साझा किये | उल्लास और उर्जा से भर गई जब उन्हें अधिकांश मित्रों ने सराहा |आज लगभग १०० से अधिक रेखाचित्र बना चुकी हूँ |कई पत्रिकाओ के संपादक चित्र बनाने के लिए कहते है | उनके कहे अनुसार बनाती हूँ |
संपर्क : praveshsoni.soni@gmai.com
रंगों से बचपन से ही लगाव था ,पत्रिकाओं में आये चित्र कापी करके उनमे रंग भरना अच्छा लगता था |लेकिन निपुणता के लिए कही कोई प्रशिक्षण नहीं ले पाई |विवाह उपरान्त सामूहिक परिवार में पर्दा प्रथा के साथ तो संभव ही नहीं था की अपने शौक को निखारती |लेकिन जहा चाह वहा राह ...बच्चो की ड्राइंग बुक मेरी गुरु बनी |
मेरी बड़ी बेटी जो आज सोफ्ट्वेअर डेवलोपर है ,उसकी नर्सरी की ड्राइंग बुक आज तक सहेजी हुई है मैंने |यह सफ़र जारी रहा और मेरे शौक ने जूनून की हद्द पा ली थी |केनवास पर कई पेंटिंग्स बनाई ,जिन्हें सबने सराहा ,विशेषकर फेसबुक पर काफी प्रोत्साहन मिला |वहाँ ही कई प्रेरक गुरु भी मिले जिन्होंने मुझे मीडियम की जानकारिया दी |
पेंटिग्स से रेखांकन बनाने की भी अजीब ही कहानी है |अक्सर आढी ,तिरछी रेखाये खीचने की आदत हो चली थी रेखायें भी बोलती है ,बतियाती है हमसे |दीवारों के उखड़े प्लास्टर में उभर आई आकृतियां |जाने क्यों मुझे आकर्षित करती है |ढूढती रहती हूँ उनमे कुछ | पढ़ते -पढ़ते अक्सर किताब के पन्नो के कोनो पर कलम चल पढ़ती ,और फूल पत्तियाँ बन जाती है | लिखते वक़्त भी ऐसा ही होता है ,जब लिखते –लिखते कही रुकावट आ जाती है ,कलम अनायास ही शब्दों को फूल पत्तियों से सजाने लग जाती है |डायरी में जगह जगह अजीबोगरीब आकृतियां बनी मिलेंगी |
तभी एक फेसबुक मित्र ने ,जो नई पत्रिका का संपादन कर रहे थे ,मुझे पत्रिका के लिए रेखांकन बनाने को कहा |मैंने उन्हें नहीं बना पाने की असमर्थता जताई ,लेकिन उन्होंने ही पूरे विश्वास से कहा की आप बेहतर बनायेंगी |अब दुविधा वही नया काम ,.........कैसे शुरू करूं |
फिर वही किताबे ही गुरु बन कर मेरे साथ रही |मैंने प्रत्रिकाओ में छपे रेखांकन का अध्यन किया और लगभग २० चित्र बनाये |मित्र को देने से पहले उन्हें फेसबुक पर अपनी वाल पर साझा किये | उल्लास और उर्जा से भर गई जब उन्हें अधिकांश मित्रों ने सराहा |आज लगभग १०० से अधिक रेखाचित्र बना चुकी हूँ |कई पत्रिकाओ के संपादक चित्र बनाने के लिए कहते है | उनके कहे अनुसार बनाती हूँ |
संपर्क : praveshsoni.soni@gmai.com