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कोई अपना और अन्य कविताएँ

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प्रिया

कोई अपना

सुबह के पाँच बजे होंगे शायद
एक हाथ उठा
और शरीर पर रेंगने लगा
पहले छातियों और पेट से होता हुआ
नीचे तक पहुंचा...
अचानक नींद से जागी
स्वप्न नहीं था यह
हडबड़ाई
सिसकी
और दहाड़ मार कर रोई
अपने ही अंतर्मन में
चीखना चिल्लाना तो दूर
कुछ कर भी ना सकी
क्योंकि जब देखा वो हाथ किसका है?
तो......
कोई बहुत अपना
लेटा हुआ था पास में.

कठपुतलियों ने उड़ना सीख लिया है

एक स्त्री हूँ मैं
माँ, बहन, बेटी, पत्नी
बस यही है मेरी नियति !
इससे ज्यादा ना सोचा गया
और न ही समझा गया
और सोचा भी गया
तो सिर्फ इतना
कि बस एक कठपुतली हूँ.....
पिता, भाई, पति और बेटे की
एक कठपुतली
ना मुझे बैठने दिया
और ना ही चलने दिया
पंख लगा के उड़ना
तो बस स्वप्न ही था
पर कब तक ठहरना था.....
हां हूँ मैं एक स्त्री
अब मैंने उड़ना सीख लिया है
शुरू शुरू में
डर लगता था
पंख फैलाने से
काट दिए थे उन्होंने
हमारी सोच में ही पंखों को
पर जब पहली बार कोशिश की
तो फड़फड़ाकर ही रह गयी
जो छोटे छोटे पंख
तैयार किये थे मैंने
उन्हें कुतर दिया गया था
हर बार
बड़ी निर्ममता से
तमाम कोशिशों के बावजूद
कुतर दिए जाते मेरे पंख
पर हार मानना
कब सीखा है
चिड़िया ने
उड़ना ही था एक दिन
पंख फैलाकर
सारे बन्धनों को तोड़
स्पर्श करनी थी
खुले आकाश की
स्वच्छ और स्वतंत्र हवा
देखना था
सम्पूर्ण संसार को
उस उंचाई पर जाकर
जहाँ अनंत आकाश
हमारे सामने हो
जहाँ सब कुछ बहुत खुला,
बहुत साफ़,
सुन्दर
और स्वतंत्र नजर आता है |

एक लड़की के लिए प्रेम के मायने

प्रेम
क्या है?
स्वतंत्रता......
क्यों चाहिए?
जीने के लिए !
जीना क्यों है?
प्रेम करने के लिए.....
प्रेम क्यों करना है?
स्वतंत्रता के लिए.....
स्वतंत्रता क्यों चाहिए?
जीने के लिए..........

परिचय : शोधार्थी(पी-एच.डी.), हिंदी विभाग, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय
संपर्क : ई.मेल-mailtourmipriya@gmail.com

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संपर्क: राजीव सुमन: 9650164016,themarginalisedpublication@gmail.com

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