ज्योति प्रसाद
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अपराजिता राजा |
सुर्खियों में रहने वाले जवाहरलाल विश्वविद्यालय में आगामी 8 सितंबर को छात्र संघ चुनाव होने वाला है। चुनाव में हिस्सा ले रहे छात्र संगठनो ने महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनमें अधिकांश दलित-ओबीसी लडकियां हैं। यह वास्तव में एक सकारात्मक सक्रिय कदम भी है जिसमें महिलाओं को एक पूरी पिक्चर वाला फ्रेम मिल रहा है। महिला उम्मीदवारों के चुनाव में भाग लेने से विश्लेषण, परिस्थिति और शब्दावली बदलती है या नहीं इसका पता धीरे धीरे चल जाएगा। फिर भी यह चुनाव दिलचस्प साबित होने जा रहा है।
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव इसलिए भी खासहोगा क्योंकि ‘9 फरवरी’ की घटना होने के बाद यहाँ पढ़ने वाली छात्राओं को लेकर अभद्र टिप्पणियाँ तो की ही गईं साथ ही साथ कुछ फुरसतिए नेताओं द्वारा कूड़ा करकट में झांक कर कंडोम भी गिने गए। छात्र-छात्राओं को निशाना भी बनाया गया और उन पर देशद्रोह का लेबल भी चिपकाया गया। छात्राओं के लिए उन तमाम शब्दों का इस्तेमाल हुआ जो किसी भी सभ्य समाज में निंदनीय हैं। इसलिए हर मुश्किल का सामना करते हुए भी मुद्दों के साथ अपनी पार्टी की सोच को ये महिला उम्मीदवार रख रही हैं साथ ही साथ एक औरत की नज़र में तमाम विषय किस रूप में ढल जाते हैं, यह भी सामने निकल कर आ रहा है। आइये छात्रसंघ चुनाव में खड़ी होने वाली सभी महिला उम्मीदवारों से एक परिचय किया जाये। सबसे महत्वपूर्ण है कि छात्रसंघ के अध्यक्ष पद के लिए तीन छात्र संगठनों की उम्मीदवार दलित-पसमांदा छात्राये हैं.
1. अपराजिता राजा- प्रेसिडेंट पद के लिएऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) की उम्मीदवार अपराजिता राजा हैं। वह राजनीति विभाग में ही पीएचडी की द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। उनके मुताबिक़ जेएनयू प्रबंधन के खराब प्रबंधन, इस साल एम. फ़िल. एवं पीएचडी सीट कट को बड़ा मुद्दा मानती हैं। बहुत बड़ी संख्या में सीटों की कटौती को वह बड़ा मसला मानती हैं। वे यह भी मानती हैं कि यह चुनाव बेहद कठिन दौर में हो रहा है जबकि विश्वविद्यालयों पर लगातार हमले हो रहे हैं। अपनी बातचीत में वह विभिन्न विषयों पर आलोचना और आत्म आलोचना जैसे शब्दों की बात करती हैं। उनके मुताबिक उनके पास राजनीति में रहने का और करीब से देखने का लंबा अनुभव भी है। वे पिछले दिनों जेएनयू में चले सारे छात्र आन्दोलन के अगले दस्ते में थीं और दिल्ली तथा दिल्ली के बाहर भी छात्र आंदोलनों में काफी सक्रिय रहीं, कई बार पुलिस की बेरहम लाठियों की मार उन्हें झेलनी पड़ी थी. अपराजिता कम्युनिष्ट माँ (एनऍफ़आईडवल्यू की महासचिव एनी राजा) और पिता (सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव नेता और राज्यसभा सांसद डी राजा) की इकलौती संतान हैं. अपराजिता अपने चुनावी संबोधनों और सवालों में कश्मीर से लेकर जेंडर जस्टिस के सारे सवाल कैम्पस, के भीतर और बाहर दो से जुड़े सवाल उठा रही हैं. जेएनयू से गायब हो गया छात्र नजीब एबीवीपी को छोड़कर सभी छात्र संगठनों का मुद्दा है. अपराजिता अपने छात्र संगठन एआईएसएफ के भीतर भी विभिन्न मुद्दों पर बहसें तेज करने की बात कह रही हैं, यदि वे जीत कर आती हैं.
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अपराजिता अपने कामरेड के साथ |
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शबाना अली |
3.गीता कुमारी- ऑल इंडिया स्टूडेंट असोशिएशन(आइसा), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डमोक्रेटिक स्टूडेंट फेडरेशन (डीएसएफ) जैसे छात्र संगठनों ने एक साथ मिलकर छात्रसंघ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। इस गठबंधन की उम्मीदवार गीता कुमारी हैं। वह हरियाणा से ताल्लुक रखती हैं और उनके पिता आर्मी में है। उनकी पढ़ाई इलाहाबाद से हुई है और उनके मुताबिक जेएनयू की अफोर्डेबल फीस और हॉस्टल की व्यवस्था ने उन्हें इस विश्वविद्यालय में आने के लिय प्रेरित किया। वह जेएनयू की तीन पार्टियों के गठबंधन की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार हैं। उनके लिए इस चुनाव में अहम मुद्दे नीति के स्तर पर किए जा रहे बदलाव जैसे यूजीसी गज़ेट, हॉस्टल सुविधा, जीएस कैश, डेपरिवेशन पॉइंट्स आदि जैसे मुद्दे हैं। वह खुले तौर पर एबीवीपी को अपना प्रतिद्वंदी मान रही हैं और विश्वविद्यालय के वर्तमान वीसी द्वारा उठाए कदमों के सख्त खिलाफ हैं।
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गीता कुमार |
4.निधि त्रिपाठी- एबीवीपी ने अपना उम्मीदवार निधि त्रिपाठी को बनाया है। वह जेएनयू के संस्कृत विभाग की छात्रा हैं। उनका मानना है कि वह स्टूडेंट्स मुद्दों को चुनाव में उठाएंगी। इसके अलावा बीते समय में उनके संगठन द्वारा कैम्पस में की गई भूख हड़ताल और वीसी से अपनी मांगों को मनवाने जैसी बातों को अहम उपलब्धि मान रही हैं। राष्ट्रवाद निधि का प्रमुख एजेंडा है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं. यह छात्र संगठन कैम्पस में अति उग्र दक्षिणपंथ और बाहरी लोगों के दखल को बढाने का आरोप झेल रहा है.
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निधि त्रिपाठी अपने साथियों के साथ |
5.वृष्णिका सिंह-कॉंग्रेस पार्टी की छात्र इकाई एनएसयूआई ने अध्यक्ष पद की उम्मीदवार वृष्णिका सिंह को बनाया है। ये भी सीट कट को एक बड़ा मुद्दा मान रही हैं और इसके अलावा जेएनयू के स्टूडेंट्स को दिये गए लेबल्स जैसे देशद्रोही या नक्सली आदि नामों के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि विश्वविद्यालय की एक इमेज बनाई गई है जो खतरनाक है और इससे यहाँ के विद्यार्थियों को पास आउट होने के बाद नौकरी व अन्य जगहों पर दिक्कत का सामना करना पड़ा है। अपना प्रतिद्वंदी लेफ्ट और एबीवीपी दोनों को मान रही हैं।
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वृष्णिका सिंह अपने साथियों के साथ |
जोड़, तोड़ और मरोड़ कर देखें तो सभी संगठनों के मुद्दों में बहुत बड़ा फेरबदल नहीं है। सीट कट और यूजीसी गज़ेट जैसे बड़े मुद्दों पर सभी के अपने अपने तर्क हैं। राइट विंग को लगभग सभी छात्र नेत्रियाँ अपना बड़ा प्रतिद्वंदी मान कर चल रही हैं। वहीं बापसा जैसा नया संगठन अपनी धमक कैम्पस में मजबूती से दर्ज़ करवा रहा है। इसलिए पहले से ही चुनाव के परिणाम का अंदाज़ा लगाना कठिन है। हालांकि अपराजिता का चुनाव मैदान में होना बापसा और जेएनयू के वाम गठबंधन दोनो के लिए चुनौती होगी. अपराजिता का वामपंथी होना और दलित मुद्दों को एक इंसाइडर की तरह देखना और उसपर लगातार सक्रिय रहना दोनो संगठनों के पारम्परिक वोट के बीच एक चुनौती होगा, वहीं एआईएसफ के कन्हैया कुमार की उपस्थिति भी मायने रखती है.म कि चुनाव के बाद परिणामों का इंतज़ार किया जाये और उन दो पुरुष उम्मीदवारों को भी न अनदेखा किया जाये जो कैम्पस में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
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