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शैली किरण की कविताएँ

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शैली किरण
प्रवक्ता, हिंदी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला धनेटा
1

सुनो मित्र, मेरे अन्तर्मन की....

मुझे नहीं बनना तुम्हारी रोल माडल,
मुझे नहीं सजना किंगफ़िशर के कैलेंडर पर,
मुझे नहीं चाहिए,तुम्हारे प्रेम अश्वाशन,

मुझे नहीं बनना वनवास पाने को सीता,
मुझे नहीं बँटने के लिए होना द्रोपदी,
मुझे नहीं होना मीरा ,तुम्हारी स्तुति पाने को,

मैं ख़ुश हूँ,
प्रकृति होकर,हँसकर ,रोकर,
कुछ नहीं पाना मुझे,
तुम्हारे विचार तुम्हारी संस्कृति ढोकर,

मित्रता का अर्थ है,स्वीकार्य,
स्वतंत्रता का सम्मान,
मैं दोस्त हूँ तो इंसान मुझे,
बराबर हर स्तर पर मान..।

2

बीमारी ..
बीमारी एक कला फ़िल्म है,
ब्लैक एंड वाइट ,
जिसका अंत लेखक नहीं,
निर्देशक तय करता है ।
बीमारी एक गीत है,
शोक गीत,
अनचाहा अलाप,
जिसकी तान ,
गीतकार नहीं,
संगतकार तय करता है ,
बीमारी एक खरपतवार है,
विचार का कुपोषण,
जिसका बढ़ना ,
किसान नहीं,
मौसम तय करता है,
बाहर सब समान्य है,
भीतर टूट रहा होता है जीवन,
दीमक की तरह,
शोर नहीं करती बीमारी,
पर बीमार हो जाता है खोखला ।

3

सुनो साथी,
खंड खंड टूटेंगे,
वो जुगत लगाकर तोड़ेंगे,
हम अमीबा की तरह,
बढ़ेंगे,
जितना तोड़ेंगे,
उतना बढ़ेंगे,
वे रक्तबीज कहकर,
उपहास करेंगे,
हम अणु अणु,
बिखर विध्वंस रचेंगे,
ये दुनिया ख़ूबसूरत होगी,
इक दिन,
जागती आँख से,
हम कीड़े मकोड़े,
मकड़ी के विरुद्ध,
जाल बुनेगे..!

4

सुनो प्रिय,
जब मैं कहती हूँ,
लौट जाओ,
उस वक़्त भी,
राह तुम्हारी ताक रही होती हूँ,,
गिनकर क़दमों की आहट,
खिड़की से झाँक रही होती हूँ,,
तुमने कहा प्रेम,
और खो गए उसमें,
हो गए मौन,
मैं तलाश करने लगी वजूद,
समझ स्वयं को गौण,
और एक दिन समझ आया,
तुम प्रेम हो,
नहीं हो साया,,!
प्रेम करता है स्वतंत्र,
करता नहीं पराया,,!

5

सुनो सखी,
तुमसे बात करने को,
आज शब्द नहीं मेरे पास,
मन को यूँ समझा लेना,,
बस ये की अनंत शून्य,
पूरा करने ख़ुद को,
निगल जाता है,
कई सूर्य और चंद्रमा,
बस अमावस की रात में,
तारों सी टिमटिमा लेना,
आसमा की बाँहों में सर धर,
आँसू बहा लेना !
हम औरतें सुख की चाबी,
तलाश करती है तमाम उम्र,
पर दुःख का ताला,
हमारी क़िस्मत का दरवाज़ा,उसके भीतर क्रांति है,

6

गरीब ने दूसरे गरीब की थाली ,
ईर्ष्या से देखी,
बादशाह की थाली,
देखने की हिम्मत,
किसी में नहीं थी,
संत्री ने मंत्री की थाली देखी,
और थूक दिया रसोइये पर,
मंत्री पर थूकने की हिम्मत,
किसी में नहीं थी,
बादशाह बदले ,
प्रजा नहीं,
थाली में युगों परोसा गया ताज,
सब मूक घृणा में जले,
क्योंकि बलिदान की आग में,
जलने की हिम्मत किसी में नहीं थी.



सुनो प्रिय,
प्रेम और महत्वाकांक्षा में,
जब द्वंद्व हो,
तुम महत्वाकांक्षा चुनना,
क्योंकि मैं सदियों से,
प्रेम चुनते आई हूँ ।
पलकों के करघे पर,
रेशमी सपने,
आँसुओं की बाढ़ में,
बुनते आई हूँ,,।सुनो प्रिय,
प्रेम और महत्वाकांक्षा में,
जब द्वंद्व हो,
तुम महत्वाकांक्षा चुनना,
क्योंकि मैं सदियों से,
प्रेम चुनते आई हूँ ।
पलकों के करघे पर,
रेशमी सपने,
आँसुओं की बाढ़ में,
बुनते आई हूँ,,.

8

सुनो प्रिय,
शिकायतों की एक पोटली है,
मेरे पास,
जिसे तुम्हें दिखाना है,
पर जग से छिपाना है,
जैसे बचपन में सुंदर कंचे,
रखने पडते थे,
छिपाकर सबकी नज़र से,
जैसे बचपन में इकठ्ठा रेजगारी समेटे,
बचा ली गुल्लक मँहगाई के असर से,
जैसे माँ छिपाकर रखती थी,
कँवलनयन काजल की डिब्बी,
और लिपस्टिक ,
बचा जाती थीं दीवारें,
रंगीन तस्वीरों से,
जैसे बची रहती थी,
पेसिंल छीलने के बाद,
जियोमैटरी बाक्स में,
छील से बनी कलाकृतियाँ,
चाक के छोटे टुकड़े,
हो सकता है,इक उम्र में,
जज्बात हो जाते हैं कचरा,
बढप्पन निगल जाता है बचपना,
गंभीरता का चश्मा,
देखने लगता है,
सबकुछ साफ़ ,
चाहता है सबकुछ संपूर्ण,
सब हो उजला,
पर फिर भी लिखना,
एक बचकाना प्रेम पत्र,
किसी दिन शिकायतों की पोटली खोलेंगे,
गुड्डी गुड्डे के साथ घर घर खेलेंगे.

स्त्रीकाल का संचालन 'द मार्जिनलाइज्ड' , ऐन इंस्टिट्यूट  फॉर  अल्टरनेटिव  रिसर्च  एंड  मीडिया  स्टडीज  के द्वारा होता  है .  इसके प्रकशन विभाग  द्वारा  प्रकाशित  किताबें  ऑनलाइन  खरीदें : 

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