एदुआर्दो गालेआनो / अनुवादक : पी. कुमार मंगलम
अनुवादक का नोट
“Mujeres” (Women-औरतें) 2015 में आई थी। यहाँ गालेआनो की अलग-अलग किताबों और उनकी लेखनी के वो हिस्से शामिल किए गए जो औरतों की कहानी सुनाते हैं। उन औरतों की, जो इतिहास में जानी गईं और ज्यादातर उनकी भी जिनका प्रचलित इतिहास में जिक्र नहीं आता। इन्हें जो चीज जोड़ती है वह यह है कि इन सब ने अपने समय और स्थिति में अपने लिए निर्धारित भूमिकाओं को कई तरह से नामंजूर किया।
उत्सव जो नहीं रहा
पातागोनिया के अर्जेंटीना में पड़नेवाले हिस्से के खेत-मजदूरों ने लम्बे होते काम के घंटों और लगातार छोटी पड़ती पगार के खिलाफ हड़ताल शुरू की थी। सेना ने तब हालात ‘ठीक’ करने का जिम्मा संभाल लिया था।
गोली चलाने से, जाहिर है, ‘थकान’ हो ही जाती है। 17 फरवरी, 1922 की उस रात हत्याएँ करने से थके सैनिक सान खुलियान बंदरगाह के वेश्याघर गए। वे वहाँ अपनी इस ‘मेहनत’ के बदले मिलने वाला ईनाम वसूलने गए थे।
लेकिन, वहाँ काम करने वालीपाँचों औरतों ने देखते ही दरवाजे उनके मुहँ पर मारे थे और “हत्यारों, खूनियों, यहाँ से बाहर...” चीखते हुए इन सैनिकों को खदेड़ दिया था।
ओसवाल्दो बाइएर ने उन औरतों का नाम संभाल कर रखा है। उनके नाम थे: कोंसुएलो गार्सिया, आन्खेला फोर्तुनातो, आमालिया रोद्रीगेज़, मारिया खुलियाचे और माउद फ़ॉस्टर।
रंडियाँ! गैरत वालियाँ!
लुई
मैं वह जानना चाहती हूँ, जो वे जानते हैं-उसने कहा।उसके साथ देश-निकाला भुगत रहे साथियों ने उसे चेताया कि वे जंगली लोग इंसानों का मांस खाने के सिवाय कुछ और नहीं जानते:
-तुम वहाँ से ज़िंदा नहीं निकलोगी।
लेकिन लुई मिशेल ने न्यू कालेदोनिया के मूलवासियों की जबान सीखी, उनके जंगल गई और ज़िंदा वापस लौटी।
उन लोगों ने उससे अपने दुःख बताए और पूछा कि उसे वहाँ क्यूँ भेज दिया गया था।
-क्या तुमने अपने पति का क़त्ल किया था?
तब उसने उन्हें पेरिस कम्यून के बारे में बताया:
-ओह!- तब तुम भी हमारी ही तरह हारी हुई हो। उन्होंने कहा।
छपने का ख़तरा
2004 में ग्वातेमाला की सरकारने सत्ता के कानून से ऊपर बैठे होने की ‘रवायत’ एक बार तोड़ी थी। तब सरकारी तौर पर यह स्वीकार किया गया कि मिरना माक की हत्या राष्ट्रपति के आदेश पर की गई थी।
मिरना ने एक ‘प्रतिबंधित’ खोज कों अंजाम दिया था। धमकियों की परवाह न कर वह उन जंगलों और पहाड़ों में गई थी, जहां अपने ही देश में बेदखल, सेना के नरसंहारों में ज़िंदा बचे आदिवासी मारे-मारे फिरते थे। उसने उनकी आवाजों और अभिव्यक्तियों को दर्ज भी किया था।
उसी समय यानी 1989 में सामाजिक विज्ञान पर हुई एक कांग्रेस में सयुंक्त राज्य अमरीका से आए एक मानवशास्त्री ने वहाँ के विश्वविद्यालयों की शिकायत की थी। नाराजगी विद्यार्थियों पर लगातार कुछ न कुछ प्रकाशित करते रहने के दबाव से थी।
-मेरे देश में- उसने कहा- अगर आप छपते नहीं हैं तो समझो गए।
तब मिरना ने कहा था:
-मेरे देश में आप की खैर नहीं गर आप छपते हैं।
उसके बाद वह छपी थी।
उसे चाकुओं से गोदकर मार डाला गया था।
साँस लेती संगमरमर
आफ्रोदिता यूनानी मूर्तिकला केइतिहास की पहली निर्वस्त्र स्त्री थी। संगतराश प्राक्सितेलेस ने उसे तराशते वक्त देह का कपड़ा उसके पैरों के पास गिरा दिखाया था।। कोस शहर ने प्राक्सितेलेस से यह मांग की कि वह आफ्रोदिता को कपड़े पहनाए। एक दुसरे शहर स्नीदो ने, हांलाकि, आफ्रोदिता का स्वागत किया और उसके लिए एक मंदिर भी बनवाया। और तब देवियों में सबसे ज्यादा औरत और औरतों में सबसे ज्यादा देवी यहाँ रही थी।
स्निदो में हांलाकि उसे घेरे में बंदऔर कितने ही पहरे में रखा गया था, चौकीदार उसके लिए पागल लोगों को पहरा तोड़ने से रोक नहीं पाते थे। इतने पहरे और इतनी बंदिशों से आजिज़ आकर आफ्रोदिता आखिर आज ही की तरह एक दिन भाग गई थी।
लेखक के बारे में
एदुआर्दो गालेआनो (3 सितंबर, 1940-13 अप्रैल, 2015, उरुग्वे) अभी के सबसे पढ़े जाने वाले लातीनी अमरीकी लेखकों में शुमार किये जाते हैं। साप्ताहिक समाजवादी अखबार एल सोल (सूर्य) के लिये कार्टून बनाने से शुरु हुआ उनका लेखन अपने देश के समाजवादी युवा संगठन से गहरे जुड़ाव के साथ-साथ चला। राजनीतिक संगठन से इतर भी कायम संवाद से विविध जनसरोकारों को उजागर करना उनके लेखन की खास विशेषता रही है। यह 1971 में आई उनकी किताब लास बेनास आबिएर्तास दे अमेरिका लातिना (लातीनी अमरीका की खुली धमनियां) से सबसे पहली बार जाहिर हुआ। यह किताब कोलंबस के वंशजों की ‘नई दुनिया’ में चले दमन, लूट और विनाश का बेबाक खुलासा है। साथ ही,18 वीं सदी की शुरुआत में यहां बने ‘आज़ाद’ देशों में भी जारी रहे इस सिलसिले का दस्तावेज़ भी। खुशहाली के सपने का पीछा करते-करते क्रुरतम तानाशाहीयों के चपेट में आया तब का लातीनी अमरीका ‘लास बेनास..’ में खुद को देख रहा था। यह अकारण नहीं है कि 1973 में उरुग्वे और 1976 में अर्जेंटीना में काबिज हुई सैन्य तानाशाहीयों ने इसे प्रतिबंधित करने के साथ-साथ गालेआनो को ‘खतरनाक’ लोगों की फेहरिस्त में रखा था। लेखन और व्यापक जनसरोकारों के संवाद के अपने अनुभव को साझा करते गालेआनो इस बात पर जोर देते हैं कि "लिखना यूं ही नहीं होता बल्कि इसने कईयों को बहुत गहरे प्रभावित किया है"।
अनुवादक का परिचय : पी. कुमार. मंगलम जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय से लातिनी अमरीकी साहित्य में रिसर्च कर रहे हैं .
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नीलेश झाल्टे जलगाँव स्थित पत्रकार हैं और दैनिक लोकमत समाचार से जुड़े हैं . संपर्क: 9822721292