बस्तर के आदिवासियों के बीच कामकर रही सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया को कुछ अज्ञात लोगों ने बस्तर छोड़ देने की धमकी दी थी. भाटिया के अनुसार सोमवार सुबह लगभग 30 लोग कई गाड़ियों में उनके घर पहुंचे और उनसे तुरंत बस्तर छोड़ चले जाने के लिए कहा था और 24 घंटे में ऐसा नहीं करने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी.छत्तीसगढ़ में काम कर रहे मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह के अनुसार बेला भाटिया के मकान मालिक को कुछ दिन पहले ही धमकी दी गई थी.बस्तर में फ़र्जी मुठभेड़ और आदिवासी महिलाओं के यौन उत्पीड़न को उजागर करने में बेला भाटिया की मुख्य भूमिका रही है. राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन और दूसरे संगठनों ने बस्तर पुलिस पर लगे आरोपों को सही पाया
रेप पीड़िता की मदद करने पर मिली धमकी
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बस्तर जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पंडरीपानी में अक्टूबर 2015 से जनवरी 2016 के बीच एक स्थानीय महिला का कई बार रेप किया गया. इसी मामले में बेला भाटिया मानवाधिकार आयोग के साथ पीड़िता का बयान दर्ज कराने पहुंची थी. यही बात कुछ लोगों को नागंवार गुजरी और उनपर नक्सल गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा दिया.
बेला की सुरक्षा में पुलिसबल तैनात
सहायक पुलिस महानिरीक्षक पीएचक्यूअभिषेक पाठक ने बताया कि कुछ लोग बेला भाटिया पर नक्सल गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा रहे थे. इसी के विरोध में वे उनके घर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे थे. मौके पर पुलिस बल के पहुंचते ही वे वहां से चले गए. बेला भाटिया की सुरक्षा में उपनिरीक्षक कृपाल सिंह गौतम के नेतृत्व में 4 महिला पुलिस कर्मचारियों सहित 15 पुलिस कर्मचारियों का बल तैनात किया गया है.
प्रदर्शन करने वाले लोगों का आरोप है कि बेला के पति जॉन द्रेज विदेशी मूल के हैं और वे देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं.
धमकियों पर बेला ने कहा ''मैं किसी धमकी से नहीं डरती हूं, मैं बस्तर में ही रहूंगी और बस्तर छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।''पूरे मामले पर पुलिस का कहना है कि धमकी मिलने के बाद बेला को सुरक्षा मुहैया कराई गई है। इधर इस घटना के बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के छत्तीसगढ़ के राज्य सचिव संजय पराते ने कहा कि “बेला भाटिया पर यह हमला इसलिये किया गया है कि विगत दिनों बस्तर में आदिवासी महिलाओं के मानवाधिकारों और उनके साथ बलात्कार किये जाने की घटनाओं की जांच के लिये आये मानवाधिकार आयोग की टीम की उन्होंने मदद की थी. अब यह एक चलन ही बन गया है कि मानवाधिकार हनन की जांच में जो कोई भी मदद करेगा, उन पर ऐसे ही हमले किये जायेंगे. नंदिनी सुन्दर के प्रकरण में भी ऐसा ही देखने को मिला है. मानवाधिकार आयोग द्वारा सरकार और पुलिस की पेशी किये जाने का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.”
जा रहा था. हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि वे बस्तर इलाके से बाहर नहीं जाएंगी.
बस्तर में सक्रिय रही हैं बेला
बेला नक्सल प्रभावित इलाकों में लंबे समय से काम रही हैं। बीजापुर सहित अन्य इलाकों में वे कई बार फोर्स की ज्यादतियों की खबर उठाती रही हैं और लीगल एड की शालिनी गेरा के साथ भी काम कर चुकी हैं। कुछ ही समय पहले शालिनी गेरा और उसके साथियों ने भी बस्तर छोड़ दिया था और इसके लिए उन्होंने सुरक्षागत कारणों का हवाला देते हुए बस्तर पुलिस को जिम्मेदार ठहाराया था। बेला नक्सल प्रभावित इलाकों में लंबे समय से काम रही हैं। बीजापुर सहित अन्य इलाकों में वे कई बार फोर्स की ज्यादतियों की खबर उठाती रही हैं और लीगल एड की शालिनी गेरा के साथ भी काम कर चुकी हैं। कुछ ही समय पहले शालिनी गेरा और उसके साथियों ने भी बस्तर छोड़ दिया था और इसके लिए उन्होंने सुरक्षागत कारणों का हवाला देते हुए बस्तर पुलिस को जिम्मेदार ठहाराया था। हालांकि सोमवार को पंडरीपानी के ग्रामीणों ने ही बेला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
उत्पलकान्त अनीस मीडिया शोधार्थी हैं और सूचना तकनीक का आदिवासी महिलाओं पर प्रभाव पर शोध कर रहे हैं।