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वेद निरर्थक ध्वनियां मात्र

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मुद्राराक्षस 

वे हमारे बीच नहीं रहे, मुद्राराक्षस ने हिन्दू धर्म की  स्थापित 'ईश्वर की सत्ता'को चुनौती दी. उन्हें नमन.  

देश की वर्तमान सामाजिक स्थितियों परपड़ोस के एक राज्य में धार्मिक सम्मेलन था. सम्मेलन आर्यसमाजी विचारकों था. आयोजक ने मुझे भी आमंत्रित किया था. कोई भी धार्मिक संगठन देश के किसी भी मुद्दे पर चर्चा करे,अंतत: वह उनकी धार्मिक आस्थाओं पर केन्द्रित हो जाती है. यहां भी यही हुआ. दो वक्ताओं की बात अयोध्या में राममंदिर निर्माण की बाधाओं तक जा पहुंची. मैं नहीं जानता स्वयं स्वामी दयानंद सरस्वती की इन भाषणों पर क्या प्रतिक्रिया होती जो कृष्ण-राम को खारिज करते थे और उनके साहित्य को नदी में फेंकने की बात कहते थे.जिस राम मंदिर को वे उत्साही वक्ता हिन्दुत्व की अस्मिता से जोड़ रहे थे उसी 'हिंदू'शब्द को खारिज करके स्वामी दयानंद ने आर्य को जातीय संज्ञा दी थी. वे जानते थे कि किसी भी वैदिक ग्रंथ में हिंदू शब्द नहीं है. फारसी भाषियों ने इसका प्रयोग इसलिए किया था कि उनके शब्द कोषों में 'हिंदू'का अर्थ 'काला'जैसे अर्थ में हुआ था.

उक्त सेमिनार में यह भी कहा गया कि वेदसृष्टि के आदि में ईश्वर द्वारा रचे गए थे और वे दुनिया की प्राचीनतम पुस्तक हैं. दोनों ही बातें किसी तार्किक व्यक्ति के गले नहीं उतर सकतीं. स्वयं स्वामी दयानन्द ने ऋग्वेदादि भाष्य-भूमिका में लिखा था- सकल जगत ईश्वर द्वारा रचा गया तो वेदों की रचना में क्या शंका? माना जाता है कि वेद सृष्टि की रचना के साथ ही रचे गए और जैसे रचे गए थे वैसे ही आज भी हैं. उनमें कभी कोई फेरबदल नहीं हुआ. यहां यह याद दिलाना अप्रासंगिक नहीं होगा कि उत्तरवैदिक काल के एक वैयाकरण कौरस ने कहा था कि वेद अर्थहीन किताबें हैं. खैर, हम संक्षेप में यह देखेंगे कि क्या वेदों का स्वरूप वैसे का वैसा है या उसमें फेरबदल हुई है.एक शाखा के अनुसार ऋग्वेद में 8 अष्टक, 64 अध्याय और 2006 वर्ग हैं लेकिन एक अन्य शाखा के अनुसार 10 मंडल, 85 अनुवाक और हर अनुवाक में सूक्त हैं. सूक्तों की संख्या 1017 मानी जाती है पर इनमें बालखिल्य के 11 सूक्त छोड़ दिए गए हैं. क्यों? ऋ ग्वेद के मंत्रों की कुल संख्या 10472 मानी गयी है लेकिन शौनक मंत्रों की संख्या 10528 मानते हैं. ऋ ग्वेद शाकल संहिता के दसवें मंडल में मंत्रों की संख्या कुल 15,000 बतायी गयी है. बाष्कल शाखा में तो 10वां मंडल है ही नहीं.

शाकल संहिता में कुल मंत्र 10,517 हैं तब बाकी 4,483 मंत्र कहां और क्यों गायब हुए? वेद ईश्वर कृत हैं इसके बावजूद एक आदमी (या ऋषि ) उनमें इतने फेरबदल कैसे कर देता है? दुनिया में किसी भी धर्मग्रंथ में कभी कोई फेरबदल नहीं की गई-न बाइबिल में, न कुरान में. इनमें कभी किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया. लेकिन वेद की 31 शाखाएं हो गर्इं और हर शाखा में पाठ भेद है. शाखाओं की उपशाखाएं भी हैं और उनमें भी भारी अन्तर हैं.
आधुनिक समय के वेदों के सबसे बड़े अध्येता सत्यव्रत सामाश्रमि भट्टाचार्य की टिप्पणी देखनी चाहिए-जैसे अध्यायभेद होता है उस तरह शाखाभेद नहीं समझना चाहिए. अलग-अलग समय और अलग-अलग स्थान पर महत्त्वपूर्ण पुस्तक में जैसे हो जाता है उसी तरह पाठ भेद को समझा जाना चाहिए. लेकिन सामाश्रमि यह भूल जाते हैं कि यह पाठभेद लगभग एक ही क्षेत्र के विद्वानों ने किया था.


वैदिक साहित्य में एक दिलचस्प किताबहै- विकृति बल्लरी. इसके लेखक थे व्याडि. उन्होंने यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि कैसे शाकल की जो पांचों शाखाओं में पाठभेद हैं वे पाठ भेद नहीं हैं. क्या कुरान की भी कोई शाखाएं और पाठभेद हैं? जो कुरान को ईश्वरीय मानते हैं, वे उसमें पाठभेद करने की हिम्मत नहीं करते. ऋग्वेद की बाष्कल संहिता के सूक्तों से शाकल में आठ सूक्त कम हैं. यह कैसे हुआ? ऋग्वेद में बालखिल्य के कहीं तो 11 सूक्त हैं कहीं आठ.एक तथ्य और हैरान करता है-ऋ ग्वेद के अनेक भाष्यकारों ने सिर्फ शाकल संहिता का ही भाष्य किया है पर हर भाष्यकार हर मंत्र का अलग अर्थ देता है. सायण, महीधर, स्कंद स्वामी, माधव भट्ट यहां तक कि स्वामी दयानंद ने भी वेद मंत्रों के जो भाष्य किए हैं वे एक दूसरे से बहुत अलग और परस्पर विरोधी भी हैं. तब वेद किस तरह के ईश्वरीय धर्मग्रंथ है? क्या अन्तत: कौत्स ही सही है कि वेद निरर्थक ध्वनियां मात्र हैं?

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